2014 में इन 28 अति-पिछड़ों ने बनाया था मोदी को पीएम, 2019 में सस्पेंस बरकरार
नई दिल्ली- 19 मई को अंतम चरण में पूर्वी यूपी की बाकी बची 13 सीटों पर वोटिंग होनी है। यह सभी 13 सीटें इसबार भारतीय जनता पार्टी (BJP),महागठबंधन (Alliance) और कांग्रेस सभी के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। 2014 में भाजपा ने यहां सभी सीटें जीती थीं। इसी से समझा जा सकता है कि उसके लिए यह कितना खास चरण है। वहीं मोदी को दोबारा पीएम बनने से रोकने के लिए विपक्ष की भी यहीं से उम्मीदें लगी हुई हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि 13 में से अधिकतर सीटों पर जीत की चाबी उन 28 अति-पिछड़ी जातियों (Most Backward Castes) के पास हैं, जो हवा का रुख किसी के पक्ष में मोड़ने का दम रखते हैं।
यूपी में अति-पिछड़ों का अंकगणित
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की आबादी में अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) की संख्या 43.56% है। इनमें से 10.22% अति-पिछड़ी जातियों (Most Backward Castes)की श्रेणी में आते हैं। लेकिन, पूर्वी यूपी की बात करें तो अति-पिछड़ी जातियों (Most Backward Castes) का प्रतिशत राज्य के बाकी हिस्सों से कहीं ज्यादा है। यह जनसंख्या इतनी प्रभावी है कि इनका वोट चुनाव परिणामों पर असर डालने की ताकत रखता है। स्वाभाविक है कि सभी राजनीतिक पार्टियां इसबार भी इन्हें अपने पक्ष में गोलबंद करने में लगी हुई हैं। बीजेपी ने राजनाथ सिंह की सरकार के दौरान इन अति-पिछड़ी जातियों (Most Backward Castes) के एम्पावरमेंट के लिए एक कमेटी भी बनाई थी। बाद में मुलायम सिंह यादव की सरकार के दौरान भी इनमें से 17 जातियों को अनुसूचित जाति (SC) का दर्जा देने का प्रयास शुरू हुआ था।
इनके पास 13 सीटों की चाबी!
यूपी में जिन्हें अति-पिछड़ी जातियों (Most Backward Castes) में शामिल किया जाता है, वे हैं सैथवार (Saithwar), बिंद (Bind), गड़रिया(Gadaria), निषाद(Nishad), प्रजापति(Prajapati), तेली(Teli), साहू(Sahu), कहार(Kahar), कश्यप(Kashyap), कच्ची(Kachhi), कुशवाहा(Kushwaha), राजभर(Rajbhar), नाई(Nai), बढ़ई(Badhayi), पंचाल(Panchal), धिमान(Dhiman), लोनिया(Loniya), नोनिया(Noniya), गोले ठाकुर(Gole Thakur), लोनिया चौहान(Loniya Chauhan), मुराव(Murao), फकीर(Fakir), लोहार(Lohar), कोयरी(Koeri), माली(Mali), सैनी(Saini), भरभुजा(Bharbhuja) और तुरहा(Turaha)।
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इन सीटों पर प्रभावित कर सकते हैं चुनाव
यूपी की जिन सीटों पर अति-पिछड़े बहुतायत में हैं और चुनाव नतीजों को प्रभावित करने का माद्दा रखत हैं, उनमें से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव क्षेत्र वाराणसी भी शामिल है। वाराणसी के अलावा इनकी आबादी संत कबीर नगर, गोरखपुर, कुशीनगर, सलेमपुर, गाजीपुर और बलिया में भी अच्छी खासी है। बाकी 6 सीटों पर भी इनकी संख्या इतनी है कि इनका वोट किसी भी उम्मीदवार की जीत या हार के फासले को बदल सकता है।
2014 और 2017 में दिया था बीजेपी का साथ
जानकारों की मानें तो 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में इनमें से अधिकतर अति-पिछड़ी जातियों ने बीजेपी का खुलकर साथ दिया था और बीजेपी की उतनी बड़ी जीत में इनका बहुत बड़ा रोल था। यह भी तथ्य है कि 2014 में पूर्वांचल की सभी 13 सीटें मोदी लहर में बीजेपी के खाते में गई थी। इसबार भी माया-अखिलेश की गोलबंदी की काट में बीजेपी को इन्हीं अति-पिछड़ों का भरोसा है। निषाद पार्टी से सियासी तालमेल करना और प्रवीण निषाद को कमल का टिकट थमाना, बीजेपी की उसी रणनीति का हिस्सा है। लेकिन, ओम प्रकाश राजभर ने जिस तरह से चुनाव के वक्त में बीजेपी के साथ बगावत की है, उसकी चिंता पार्टी के मैनेजरों को जरूर सता रही होगी। कांग्रेस ने इसबार फिर से पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह को कुशीनगर से उतारा है, तो उसके भी दिमाग में सैथवारों का वोट है। जबकि, समाजवादी पार्टी ये उम्मीद लगाए बैठी है कि मुलायम के प्रयासों का कुछ फल इसबार उनके गठबंधन को भी जरूर मिलेगा।