शी जिनपिंग के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं इमरान खान, चीन से इतना क्यों डर गया पाकिस्तान ?
नई दिल्ली- पाकिस्तान इस समय चीन का सबसे बड़ा कर्जदार है। उसपर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से भी कहीं ज्यादा चीन का बकाया है। पाकिस्तान सरकार को समझ नहीं आ रहा है कि वो आईएमएफ और चीन का बकाया चुकाने के लिए अब किसके सामने हाथ फैलाएगी। आतंकवाद को पेशा बना लेने के चलते फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पहले ही उसपर ब्लैक लिस्ट करने की तलवार लटका रखी है। इसलिए पाकिस्तानी पीएम इमरान खान और उनके मंत्री बार-बार चीन का चक्कर काट रहे हैं। खुद इमरान खान 7-8 सितंबर को फिर से चीन दौरे पर जाने वाले हैं। क्योंकि, उन्हें पता है कि तबाही की कगार पर खड़ी पाकिस्तानी अर्थव्यस्था के दौर में अगर चीन ने भी नजरें चुरानी शुरू कर दीं तो वे कहां जाएंगे। क्योंकि, अब अमेरिका भी पाकिस्तान पर ज्यादा दरियादिली दिखाने की स्थिति में नहीं है।
आईएमएफ से भी ज्यादा चीन का कर्जदार है पाकिस्तान
इस समय पाकिस्तान ने आईएमएफ से दोगुने से भी ज्यादा चीन से कर्ज ले रखा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक पाकिस्तान के पास चीन का 6.7 अरब डॉलर का कॉमर्शियल लोन बकाया है, जिसे उसको 2022 के जून महीने तक चुकता करना है। जबकि, पाकिस्तान को आर्थिक तंगहाली से उबारने के लिए रहम के तौर पर आईएमएफ ने इसी साल जो 2.8 अरब डॉलर की सहायता दी है, उस रकम को भी उसे इन्हीं तीन वर्षों में वापस करना है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक कराची स्थित ऑप्टिमस कैपिटल मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड के रिसर्च हेड हाफिज फैजान अहमद ने बताया है कि, "बेल्ट एंड रोड शुरू होने के बाद कर्ज बढ़ता चला गया।.....चीन से ज्यादा कर्ज दो साल पहले लिया गया जब डॉलर रिजर्व खत्म होता जा रहा था, इसलिए सरकार ने कर्ज पर कर्ज लेना शुरू कर दिया।"
शी जिनपिंग के सामने तीसरी बार गिड़गिड़ाएंगे इमरान
पाकिस्तानी पीएम इमरान अगले हफ्ते चीन की यात्रा पर जाने वाले हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ ये उनकी तीसरी मुलाकात होगी। इसके अलावा इमरान महीने-दो महीने पर अपने विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को भी बीजिंग भेजते रहे हैं। दरअसल, चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) चीन की बहुत ही महत्वाकांक्षी परियोजना है। पाकिस्तान एक तो चीन का सबसे बड़ा कर्जदार है और ऊपर से इमरान सरकार के आने के बाद इन प्रोजेक्ट्स पर काम की गति बहुत धीमी पड़ गई है, जिससे चीन बेहद नाखुश बताया जा रहा। यही वजह है कि इमरान खुद या अपने मंत्रियों के जरिए बार-बार चीन को समझाने-बुझाने या गिड़गिड़ाने के लिए बीजिंग पहुंच रहे हैं। चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की मौजूदा स्थिति पर हम आगे बात करेंगे, लेकिन उससे पहले ये बता देना जरूरी है कि वह चीनी राष्ट्रपति के संभावित भारत दौरे से भी घबरा गए हैं। इसलिए, वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात से पहले खुद शी जिनपिंग के सामने अपना रोना रो लेना चाहते हैं।
चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर में रुकावट पर नाखुश है चीन
अरबों डॉलर की चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) परियोजना 2015 में शुरू हुई थी। इसके पहले चरण की कई परियोजनाएं पूरी भी होने वाली हैं। लेकिन, पिछले साल जबसे इमरान खान सत्ता में आए हैं, परियोजना का दूसरा चरण लगभग ठप पड़ चुका है। शी जिनपिंग के साथ अपनी मुलाकात में इमरान 60 अरब डॉलर की इसी अवरुद्ध चरण के बारे में अपनी सफाई पेश करने वाले हैं। वो अब इस परियोजना को फिर से पुनर्जीवित करना चाहते हैं ताकि पाकिस्तान की आर्थिक गतिविधि में थोड़ी तेजी आ सके। इस मुलाकात से पहले चीन में पाकिस्तान की एंबेसडर नगमा आलमगीर हाशमी ने चीन को भरोसा दिलाया है कि चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) में उनका देश अब कोई देरी नहीं होने देगा। उन्होंने इन अटकलों को भी खारिज करने की कोशिश की है कि इसमें जानबूझकर देरी की गई। चीन के इकोनॉमिक नेट को दिए इंटव्यू में उन्होंने कहा है कि 'सभी प्रोजेक्ट्स को सरकार और पाकिस्तान की जनता और राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर सभी पार्टियों का भी पूरा समर्थन है।' हाशमी ने ये भी बताया कि इस मुद्दे पर इमरान पहले भी दो बार शी जिनपिंग से मिल चुके हैं और सीपीईसी और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को पाकिस्तान कितना तबज्जो दे रहा है ये बता चुके हैं। बता दें कि सीपीईसी चीन के राष्ट्रपति जिनफिंग की महत्वाकांक्षी योजना ‘बेल्ट एंड रोड' इनिशिएटिव का हिस्सा है। यह भारत-चीन संबंधों में भी विवाद की वजह है, क्योंकि इसे पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) से होकर ही गुजारा जा रहा है।
चीन को खुश करने के लिए पाकिस्तान ने बनाई उइगर मुसलमानों से दूरी
जम्मू-कश्मीर में हुए संवैधानिक बदलाव को लेकर पाकिस्तान जिस तरह बेगानी शादी में अब्दूल्ला बनने की कोशिश कर रहा है, उसके पीछे उसका एक ही तर्क है कि कश्मीर में मुसलमान हैं और मुस्लिम राष्ट्र होने के नाते पाकिस्तान का इस मामले में भारत के आंतरिक मसले में भी दखल देने का हक है। यही नहीं वह मुस्लिम आतंकवाद से परेशान दुनिया की हकीकत को भी झुठलाना चाहते हैं। लेकिन, जब चीन के शिंजियांग प्रांत में लाखों उइगर मुसलमानों का मुद्दा उठाया जाता है तो पाकिस्तान और इमरान की मुस्लिम-परस्ती को सांप सूंघ जाता है। पाकिस्तान को पता है कि उइगर मुसलमानों के साथ चीन में जानवरों की तरह सलूक किया जा रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अगर रमजान के दौरान कोई मुसलमान वहां रोजा रख लेता है तो उसपर भी उसे सजा भुगतनी पड़ती है। लेकिन, चीन के डर से इमरान उइगर मुसलमानों की चर्चा करना भी पसंद नहीं करते। उन्हें पाकिस्तान की बदहाली से ज्यादा कश्मीर की चिंता तो रहती है, लेकिन उइगर का सवाल उठते ही उन्हें अपने देश की परेशानियां दिखने लगती हैं।
अमेरिका का बदलता रवैया
शीत युद्ध के दौर से पाकिस्तान, अमेरिका का चहेता रहा है। इमरान आज आतंकवाद की सबसे बड़ी शरणस्थली बन गया है तो उसमें अमेरिका से मदद के नाम पर आए अरबों-खरबों डॉलर ही लगे हुए हैं। इमरान खुद मान चुके हैं कि अल-कायदा और तालिबान जैसे संगठनों को पाकिस्तान ने बनाया है और वहां अभी भी 40-42 हजार सक्रिय आतंकी मौजूद हैं। ओसामा बिन लादेन जैसा आतंकी भी पाकिस्तान में ही मिल चुका है। ये सब अमेरिका की जानकारी में हुआ है। लेकिन, अब अमेरिका की नीति बदल रही है। ह्यूस्टन में हाउडी मोदी कार्यक्रम से पहले और बाद में भी अमेरिकी राष्ट्रपति की भाषा से जाहिर है कि अब वह पाकिस्तान की कीमत पर भारत को नाराज करने के लिए तैयार नहीं हैं। हाउडी मोदी में डॉनल्ड ट्रंप ने ही मुस्लिम आतंकवाद का जिक्र छेड़ा था, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने उन्हें पाकिस्तान की असलियत बताकर नींद से जगाने की कोशिश की थी। ऐसे में पाकिस्तान को लगता है कि अमेरिका का साथ तो छूट चुका है, अगर चीन ने भी किनारा कर लिया तो अपने देश को संभल पाना मुश्किल ही नहीं असंभव हो सकता है।
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