IL&FS संकट: क्या डूब जाएंगे 91 हज़ार करोड़ रुपये
दिल्ली स्थित एक रिसर्च फ़र्म से जुड़े आसिफ़ इक़बाल इसे वित्तीय मोर्चे पर बड़ी गड़बड़ी के रूप में देखते हैं. उनका कहना है, "जब तक कंपनी की माली हालत उजागर नहीं हुई थी तब तक रेटिंग एजेंसियों ने इसे हाई रेटिंग दी थी और अब अचानक इसे घटा दिया है. ये उन निवेशकों के साथ धोखा है, जो रेटिंग देखकर अपना पैसा निवेश करते हैं."
-कंपनी पर कुल मिलाकर तकरीबन 91 हज़ार करोड़ का कर्ज़
-कई प्रोजेक्ट्स अधूरे, जिस वजह से नहीं मिल रहा पैसा
-सरकार से भी मिलने वाले 17 हज़ार करोड़ रुपये लटके
-कंपनी की कुल 250 से अधिक सब्सिडियरीज़ और ज्वाइंट वेंचर्स
-बहुत अधिक प्रोजेक्ट्स के लिए बोलियां लगाने से बैलेंसशीट पर दबाव
-ज़मीनी विवादों में अधिक मुआवज़ा चुकाने से प्रोजेक्ट्स लागत बढ़ी
-कई नामी म्यूचुअल फंड्स और पेंशन स्कीम्स की रकम दांव पर
भारत में क्या सबकुछ अचानक होता है, या फिर अचानक होता हुआ दिखता है, कम से कम आर्थिक मामलों के लिए तो ये बात सही ही लगती है.
विजय माल्या की कंपनी किंगफ़िशर एयरलाइंस की हालत खस्ता थी, उसके जितने विमान यात्रियों को हवाई सफ़र करा रहे होते थे, उससे कहीं अधिक ईंधन न भर पाने और दूसरी वित्तीय वजहों से एयरपोर्ट पर खड़े रहते थे.
फिर भी न तो इसकी गंभीरता का पता लगा या लगने दिया गया. बात तब सामने आई जब विजय माल्या ने बैंकों के भारी भरकम कर्ज़ की किश्त देने में असमर्थता जताई और फिर अचानक किंगफ़िशर का ऑपरेशन भी बंद हो गया.
कुछ इसी तरह भारतीय बैंकिंग इतिहास के सबसे बड़े फ्रॉड पंजाब नेशनल बैंक में भी हुआ और अचानक पता लगा कि जिस बैंक पर करोड़ों लोग अपना भरोसा जताए हुए थे, उसे हीरे की परख रखने वाला एक कारोबारी नीरव मोदी और उसके कुछ रिश्तेदारों ने साढ़े तेरह हज़ार करोड़ रुपये की चपत लगा दी.
ऐसा ही कुछ इंफ्रास्ट्रक्चर, फ़ाइनेंस, ट्रांसपोर्ट और दूसरे कई क्षेत्रों में काम कर रही इंफ्रास्ट्रक्चर एंड लीजिंग फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़ यानी आईएलएंडएफ़एस के मामले में सामने आई.
सोमवार को पता चला कि इस महीने में ऐसा तीसरी बार हुआ जब कंपनी लिए गए कर्ज़ पर ब्याज की किश्त नहीं चुका सकी और मुश्किल ये है कि अगले छह महीने में उसे 3600 करोड़ रुपये से अधिक चुकाने हैं. कंपनी की मुश्किल ये है कि उसने जिन्हें कर्ज़ दिया है, वो इसे लौटा नहीं पा रहे हैं और नतीजा कि कंपनी सिडबी के 1000 करोड़ रुपये के कर्ज़ की किश्त नहीं चुका पाई.
विभिन्न प्रोजेक्ट्स की बढ़ती लागत और अधर में लटके प्रोजेक्ट्स ने हालात और बिगाड़ दिए हैं, ऐसे ही प्रोजेक्ट्स के कारण कंपनी का 17 हज़ार करोड़ रुपये सरकार पर बक़ाया है, जिसे वो वसूल नहीं कर पा रही है. ब्लूमबर्ग न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक स्मॉल इंडस्ट्रीज़ डेवलपमेंट बैंक ऑफ़ इंडिया यानी सिडबी ने अपना कर्ज़ा वसूलने के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल का दरवाज़ा खटखटाया है.
विपक्षी दल कांग्रेस ने भी कहा है कि 2017-2018 में इस कंपनी का घाटा 2395 करोड़ रुपये था जिसके कर्ज में पिछले 36 महीने में 44 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि आईएलएंडएफएस कंपनी दिवलिया हुई तो बाज़ार में भूचाल आ जाएगा.
इस कंपनी पर 91 हज़ार करोड़ का कर्ज है जो माल्या, चौकसी और नीरव मोदी के घोटाले से कई गुना बड़ा मामला है. तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कई एजेंसियों से इस मामले की जांच की मांग की.
नोमुरा रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी पर छोटी अवधि का करीब 13,559 करोड़ रुपये का कर्ज़ है और लंबी अवधि में उसे 65,293 करोड़ रुपये का कर्ज़ चुकाना है. यानी कुल मिलाकर कंपनी पर करीब 90 हज़ार रुपये का कर्ज़ है.
इसमें से 60 हज़ार करोड़ रुपये के आसपास का कर्ज़ सड़क, बिजली और पानी की परियोजनाओं से जुड़ा है. नोमुरा इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार आईएलएंडएफएस समूह पर कुल 91,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ है.
आईएलएंडएफएस पर अकेले 35,000 करोड़ रुपये, आईएलएंडएफएस फाइनेंशियल सर्विसेज पर 17,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ है.
क्या है आईएलएंडएफएस?
आईएलएंडएफएस सरकारी क्षेत्र की कंपनी है और इसकी कई सहायक कंपनियां हैं. इसे नॉन बैंकिंग फ़ाइनेंस कंपनी यानी एनबीएफसी का दर्जा हासिल है.
1987 में सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया और हाउसिंग डेवलपमेंट फ़ाइनेंस कंपनी ने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को कर्ज़ देने के मक़सद से एक कंपनी बनाई और इसे नाम दिया गया आईएलएंडएफ़एस.
आईडीबीआई और आईसीआईसीआई का ध्यान क्योंकि कॉर्पोरेट प्रोजेक्ट्स पर ही था, इसलिए आईएलएंडएफ़एस को सरकारी प्रोजेक्ट्स मिलते रहे. 1992-93 में कंपनी ने जापान की ओरिक्स कॉर्पोरेशन के साथ तकनीक और वित्तीय साझेदारी के लिए क़रार किया.
1996-97 में आईएलएंडएफ़एस तब सुर्ख़ियों में आई जब कंपनी ने दिल्ली-नोएडा टोल ब्रिज का निर्माण किया. उदारीकरण के दौर में जब भारत ने बुनियादी ढाँचे पर भारी-भरकम निवेश की घोषणा की तो देखते ही देखते छोटी-मोटी सड़कें बनाने वाली ये कंपनी इंफ्रास्ट्रक्चर की दिग्गज कंपनी बन गई.
2014-15 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय राजमार्गों को तेज़ी से बनाने, सड़कों, सुरंगों और सस्ते घरों को बनाने की महत्वाकांक्षी योजनाओं को ऐलान किया तो आईएलएंडएफ़एस ने भी इस मौके को हाथों-हाथ लपका और इस दौर में उसे कई प्रोजेक्ट्स मिले और कई दूसरे प्रोजेक्ट्स में उसने ज्वाइंट वेंचर किया.
कंपनी कुछ महीनों पहले तक रेटिंग एजेंसियों की भी दुलारी थी और अगस्त तक कई कंपनियों ने इसे 'एएए' रेटिंग दी थी.
दिल्ली स्थित एक रिसर्च फ़र्म से जुड़े आसिफ़ इक़बाल इसे वित्तीय मोर्चे पर बड़ी गड़बड़ी के रूप में देखते हैं. उनका कहना है, "जब तक कंपनी की माली हालत उजागर नहीं हुई थी तब तक रेटिंग एजेंसियों ने इसे हाई रेटिंग दी थी और अब अचानक इसे घटा दिया है. ये उन निवेशकों के साथ धोखा है, जो रेटिंग देखकर अपना पैसा निवेश करते हैं."
इंडिया रेटिंग ने समूह की एक कंपनी आईएलएंडएफएस एनवायर्नमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर एंड सर्विसेज की रेटिंग गिरा दी है और उसकी रेटिंग को निगरानी में रखा है. एजेंसी ने कंपनी के विभिन्न ऋणपत्रों की रेटिंग घटा कर 'बीबी' कर दी है. एक और भारतीय रेटिंग एजेंसी इक्रा ने पिछले महीने समूह की अधिकांश कंपनियों की रेटिंग गिरा दी थी.
गड़बड़ क्या हुई?
गड़बड़ी ये हुई कि कंपनी ने छोटी अवधि में लौटाने वाला बहुत अधिक कर्ज़ ले लिया और उसकी आमदनी उतनी नहीं हो रही है.
बैंकों के बढ़ते एनपीए के कारण रिज़र्व बैंक ने नियम कड़े किए हैं और बैंकों से कहा है कि अगर जोख़िम बहुत अधिक है तो कर्ज़ को रोलओवर यानी कर्ज़ चुकाने की अवधि को और अधिक न बढ़ाया जाए.
कंपनी ने अपनी सालाना रिपोर्ट में भी कहा है कि उसे विभिन्न प्रोजेक्ट्स से लंबी अवधि में आमदनी होगी और कर्ज़ को ठीक तरीके से सुलझाने के लिए उसे दो-तीन साल चाहिए होंगे.
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क्या है जोखिम
कंपनी को भारतीय रिज़र्व बैंक से फाइनेंस का दर्जा प्राप्त है. कंपनी अधिकतर सरकारी प्रोजेक्ट्स से जुड़ी है और इसने अपना कर्ज़ भी अधिकतर सरकारी कंपनियों को ही दिया है. यानी कुल मिलाकर आम लोगों का पैसा डूबने का जोख़िम है.
जहाँ तक कंपनी पर मालिकाना हक़ की बात है तो इसमें भारतीय जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी सबसे बड़ा निवेशक है. ब्लूमबर्ग के मुताबिक एलआईसी और जापान की ओरिक्स कॉर्पोरेशन की कंपनी में 20 फ़ीसदी से अधिक हिस्सेदारी है, जबकि अबु धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी और आईएलएंडएफ़एस वेलफ़ेयर ट्रस्ट का कंपनी में 10 फ़ीसदी से अधिक हिस्सा है.
कंपनी ने सबसे अधिक 10,198 करोड़ का कर्ज़ डिबेंचर्स के रूप में लिया है और इन डिबेंचर्स में बड़ा हिस्सा जीआईसी, पोस्टल लाइफ़ इंश्योरेंस, नेशनल पेंशन स्कीम ट्र्स्ट, एलआईसी, एसबीआई इंप्लाईज़ पेंशन फंड के अलावा कई नामी म्यूचुअल फंड्स का है. सवाल ये है कि क्या आईएलएंडएफ़एस में चल रहे संकट का असर ईपीएफ़ पर भी पड़ेगा?
आसिफ़ इक़बाल कहते हैं, "ऊपरी तौर पर ये भले ही एक कंपनी के डिफॉल्ट (कर्ज़ न चुका पाने) करने का मामला लग रहा हो, लेकिन अगर ग़ौर से देखेंगे तो इससे कहीं न कहीं आम निवेशक भी प्रभावित तो होगा ही. क्योंकि इसमें कई म्यूचुअल फंड्स, बीमा कंपनियों और पेंशन स्कीम्स का पैसा लगा हुआ है."
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्यूचुअल फंड कंपनियों से आवास वित्त कंपनियों डीएचएफएल और इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस में उनके निवेश का ब्योरा मांगा है. प्रणाली में नकदी संकट को लेकर चिंता बनी हुई है.
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