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1 अरब लोगों को नहीं मिलेगा पानी! हिमालय पर IIT प्रोफेसर की डराने वाली रिपोर्ट

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नई दिल्ली, जून 24: हाल ही में एक डराने वाली एक स्टडी रिपोर्ट सामने आई है, जो भविष्य के बड़े संकट की ओर इशारा कर रही है। IIT इंदौर के असिस्टेंट प्रोफेसर की रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय पर्वतमाला में स्थित बर्फ और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। अगर ऐसे ही पहाड़ों को नुकसान होता रहा तो इंसानों के लिए आने वाला खतरा ज्यादा दूर नहीं है।

स्टडी में आने वाले खतरे की चेतावनी!

स्टडी में आने वाले खतरे की चेतावनी!

IIT इंदौर के एक सहायक प्रोफेसर और उनकी टीम की तरफ से किए गए एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि हिमालय-काराकोरम (HK) पर्वतमाला में ग्लेशियरों को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। यह स्टडी रिपोर्ट "हिमालय-काराकोरम का ग्लेशियो-हाइड्रोलॉजी" के नए रिसर्च के अनुसार ग्लेशियरों के पिघलने से हिमालय-काराकोरम (एचके) पर्वतमाला में सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में पानी की आपूर्ति बदल रही है। यह पूरी स्टडी साइंस जर्नल में पब्लिश हुई हैं।

250 से अधिक विद्वानों के शोध पत्रों के परिणाम एकत्र

250 से अधिक विद्वानों के शोध पत्रों के परिणाम एकत्र

स्टडी को लीड करने वाले डॉ. फारूक आजम, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) इंदौर में सहायक प्रोफेसर हैं। वो एक दशक से ज्यादा के वक्त से हिमालय के ग्लेशियरों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की जांच कर रहे हैं। इसके साथ ही इस अध्ययन के लिए प्रोफेसर और उनकी टीम ने जलवायु परिवर्तन, वर्षा परिवर्तन और ग्लेशियर सिकुड़न से संबंधित 250 से अधिक विद्वानों के शोध पत्रों के परिणाम एकत्र किए हैं। उन्होंने बताया कि हिमालयी नदी बेसिन 2.75 मिलियन किमी वर्ग क्षेत्र को कवर करती है। इसका सबसे बड़ा सिंचित क्षेत्र 577,000 किमी वर्ग है और दुनिया की सबसे बड़ी स्थापित जल विद्युत क्षमता 26,432 मेगावाट है। पिघलने वाले ग्लेशियर एक अरब से अधिक लोगों की पानी की आवश्यकताओं को पूरा करता हैं।

 1 बिलियन लोगों को नहीं मिलेगा पानी!

1 बिलियन लोगों को नहीं मिलेगा पानी!

प्रोफेसर फारूक आजम के मुताबिक जब इस शताब्दी में ग्लेशियर का अधिकांश भाग पिघल जाएगा और धीरे-धीरे आवश्यक मात्रा में पानी की आपूर्ति बंद कर देगा, जिसके बाद इतनी बड़ी आबादी को पानी नसीब नहीं हो पाएगा। उन्होंने साफ कहा कि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि लगभग 1 बिलियन लोग आंशिक रूप से पानी के लिए इन ग्लेशियरों पर ही निर्भर हैं। प्रोफेसर के मुताबिक ग्लेशियर पर पिघले पानी और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव सिंधु बेसिन के लिए गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटियों के विपरीत अधिक महत्वपूर्ण पाए गए हैं, जो मानसून की बारिश पर निर्भर करते हैं और वर्षा में बदलाव से प्रभावित होते हैं।

वर्तमान स्थिति पर फोकस जरूरी

वर्तमान स्थिति पर फोकस जरूरी

अध्ययन के अनुसार नीति निर्माताओं को वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करना चाहिए। इसके साथ ही कृषि, जल विद्युत, स्वच्छता और खतरनाक स्थितियों के लिए स्थायी जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए नदियों के भविष्य के होने वाली परिवर्तनों का आकलन करना जरूरी है। अगर वक्त रहते इस पर गौर नहीं किया गया तो ग्लेशियर से पानी मिलना बंद हो जाए तो साउथ एशिया के तमाम देश, जिसमें भारत, पाकिस्तना, नेपाल, बांग्लादेश और भूटान सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

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English summary
IIT Indore assistant professor of study on Himalaya-Karakoram ranges from climate change
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