अगर ऐसा हुआ तो भारत के लिए खत्म हो जाएगा ईरान के चाबहार पोर्ट का महत्व?
बेंगलुरू। चाबहार रेल परियोजना से भारत को हटाने के पीछे ईरान ने भले ही प्रोजेक्ट में देरी का हवाला दिया है, लेकिन इसके पीछे चीन और ईरान के बीच हुए होने जा रहे 400 अरब डॉलर की डील कही जा रही है। हालांकि चाबहार रेल प्रोजेक्ट में देरी के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों का खामियाजा कहा जा सकता है, लेकिन अमेरिका द्वारा चाबहार प्रोजेक्ट में भारत में दी गई छूट के बाद मामला सुलझ गया था, लेकिन इस बीच ईरान चीन के हाथों में खेल गया है।
गौरतलब है वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे के बाद महात्वाकांक्षी चाबहार रेल परियोजना के लिए समझौता हुआ था और परियोजना की सुस्त रफ्तार के लिए भारत ने ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों को जिम्मेदार ठहराया था। यही कारण था कि भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते ईरान से कच्चे तेलों की आयात में कटौती कर दी थी, लेकिन 2019 में दोबारा अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध और कड़ा कर दिया
अमेरिका ने भारत सहित कुछ देशों को ईरान से तेल आयात करने की दी गई छूट खत्म कर दी। ईरान से अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा तेल कर रहे भारत ने धीरे-धीरे तेल आयात में कटौती करनी शुरू कर दी, इससे ईरान का भारत से नाराज होना स्वाभाविक है। इस बीच अमेरिका ने आश्वस्त किया कि सहयोगी देश सऊदी अरब तेल आपूर्ति में कमी को पूरा करने में मदद करेगा।
ईरान से तेल आयात में कटौती के साथ भारत तेल सऊदी से खरीदने लगा। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश भारत ने तेलों के आय़ात को लेकर सऊदी से कई समझौते हुए, जिसमें एक समझौता था कि सऊदी की तेल कंपनी भारत के रणनीतिक क्रूड ऑयल रिजर्व को भरेगी और भारत का क्रूड ऑयल रिजर्व 2020 आते आते भर चुका था।
माना जाता है अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते भारत ने ईरान से तेल आयात में कटौती की थी और इसका इसका असर चाबहार पर दिखाई पड़ना तय था। मंगलवार को यह खबर सुर्खियों में तब आ गई जब ईरान द्वारा चाबहार रेल परियोजना से भारत को हटा दिया। कहा जा रहा है कि ईरान चाबहार रेल प्रोजेक्ट को फिलहाल होल्ड पर डाला हुआ है।
निःसंदेह भारत और ईरान के बीच पुरानी है, जहां से भारत चीन के बाद सर्वाधिक कच्चे तेलों का आयात करता रहा है, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत द्वारा तेलों की आयात में कटौती और ठप कर देने से पीड़ित ईरान का हाथ चीन ने थाम लिया है और 400 अरब डॉलर की डील करके ईरान से चाबहार रेल प्रोजेक्ट से हटवाकर नुकसान पहुंचाने की चाल चली है।
हालांकि वर्तमान परिस्थितियों में देखा जाए तो चीन और भारत के बीच सीमा पर तनातनी के बीच भारत के लिए अमेरिका काफी महत्वपूर्ण हो गया है और उसके जरूरत के तेलों की आपूर्ति निर्बाध गति से सऊदी अरब कर रहा है, लेकिन व्यापारिक दृष्टिकोण से ईराना का चाबहार पोर्ट भारत के लिए अफगानिस्तान और यूरोप तक अपने माल सप्लाई के लिए आवश्यक थी।
चाबहार रेल प्रोजेक्ट एक बड़ा प्रोजेक्ट है और माना जा रहा है कि ईरान भारत को हटाकर पुराने संबंधों को खराब नहीं करना चाहेगा। पूरी संभावना है कि पीएम मोदी बातचीत के बात कोई रास्ता निकाल ले। क्योंकि यह ईरान में अच्छी तरह से जानता है कि भारत ने तेलों के आयात पर कटौती या रोक ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते लगाई है, जिसका भारत से उसके से कुछ लेना-देना नहीं है।
उल्लेखनीय है भारत को ईरान की जरूरत सिर्फ तब तक है जब तक पाकिस्तान के कब्जे में गिलगित बाल्टिस्तान है, जो कि पीओके का हिस्सा है और वह भारत का अभिन्न अंग है और पीओके पर पुनः कब्जे के साथ ही भारत की चाबहार पोर्ट पर निर्भरता कम हो जाएगी, क्योंकि गिलगित और बाल्टिस्तान से अफगानिस्तान सीमा जुड़ी हुई है, जिस पर फिलहाल पाकिस्तान ने कब्जा है।
भारत अच्छी तरह से जानता है कि अगर पीओके पर पुनः कब्जा प्राप्त करना है, तो इसमें उसका सबसे बड़ा सहयोगी अमेरिका होगा। इस नजरिए से देखा जाए तो भारत ने दूसरी बार अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों को स्वीकार करके पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका से रिश्ते मजबूत करके भविष्य की रूपरेखा तय की थी, जिसका असर पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीनी सेना के बीच झड़प के बाद पैदा हुए युद्ध का हालात में अमेरिकी की भूमिका से समझा जा सकता है।
5 अगस्त, 2019 को जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद मजबूत मोदी सरकार के इरादे से साफ हो गया है कि भारत पीओके को लेकर काफी गंभीर है। इसकी तस्दीक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के एक बयान से हो गया था, जब उन्होंने कहा था कि अब पाकिस्तान से बात सिर्फ पीओके पर होगी।
मोदी सरकार के इरादे और रणनीति से साफ है कि गिलगित बाल्टिस्तान पाकिस्तान के कब्जे में ज्यादा दिन तक रहेगा और गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के पराक्रम ने चीनी का हौव्वा भी लगभग समाप्त हो गया है। पीओके पर कब्जे के साथ ही चीन का सीपेक भी खतरे में आना तय है, जो गिलगित और बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है। संभवतः इसी जवाब में ईरान के चाबहार पोर्ट की रणनीति तैयार की थी।
वर्तमान समय में चीनी कोरोनावायरस से पूरी दुनिया चीन के खिलाफ खड़ी है और चीन चाहकर भी कोई कदम नहीं उठा सकता है, क्योंकि अमेरिका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इजरायल खुलकर भारत के समर्थन कर रहे है, लेकिन पीओके पर कब्जे के साथ चीन की महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सीपेक पर खतरे के साथ ही भविष्य में चीन के साथ युद्ध जैसी संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है, जो ज्यादा विनाशकारी हो सकता है। यही कारण है कि मोदी सरकार लगातार सेना को अत्याधुनिक हथियारों से लैस करने में लगी है।
मौजूदा परिदृश्य में भारत के लिए पाक के कब्जे से पीओके को आसनी से छुड़ा सकता है, जिसमें चीन पाकिस्तान की सहायता रोके देने से पहले 100 बार सोचेगा, क्योंकि महामारी से खार खाया पूरा विश्व चीन को रोकने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इनमें भारत के साथ अमेरिका, जापान, रूस जैसे महत्वपूर्ण देश खड़े हो सकते हैं। ऐसे में चीन अक्साई चिन भी उसके हाथों से जाने के डर से आगे कदम नहीं बढ़ाएगा।
माना जा सकता है कि अगर भारत एक बार फिर पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके पर अपना कब्जा कर लेता है तो उसके बाद भारत को ईरान के चाबहार पोर्ट की जरूरत ही नहीं रहेगी, क्योंकि सीपेक नहीं रहेगा, दूसरी तरफ भारत सड़क या रेल मार्ग से अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और रूस के रास्ते सीधा अपना माल यूरोप तक बेच सकता है, क्योंकि गिलगित और बाल्टिस्तान अफगानिस्तान की सीमा से जुड़े हुए हैं।
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चाबाहर रेल प्रोजेक्ट से भारत को अभी भी है उम्मीद
भारत चाबहार-जाहेदान रेल प्रॉजेक्ट को पूरा करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। इस महत्वपूर्ण प्रॉजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए भारत ईरान के संबंधित विभागों और अधिकारियों के लगातार संपर्क में है।
भारत के लिए कितना है अहम है चाबहार रेल प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट के तहत चाबहार पोर्ट से ईरान-अफगानिस्तान बॉर्डर के नजदीक जाहेदान तक 628 किलोमीटर लंबे रेल लाइन का निर्माण होना है। भारत के लिए यह व्यापारिक दृष्टि से बहुत ही अहम है। अभी पाकिस्तान भारत-अफगानिस्तान व्यापार के लिए रास्ता नहीं देता है। यह रेल प्रॉजेक्ट अफगानिस्तान के साथ ट्रेड के लिए ईरान के जरिए एक विश्वसनीय गलियारे की जरूरत को पूरा करने वाला है।
भारत ने 2019 की शुरुआत में चाबहार पोर्ट का नियंत्रण हासिल किया
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तेहरान दौरे के वक्त इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन लिमिटेड (इरकॉन) और ईरानी रेलवे ने इस रेल लाइन को बनाने के लिए एमओयू पर दस्तखत किए थे। इसे भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के मकसद से किया गया था।
अभी ईरान सरकार ने अपना काम पूरा नहीं किया है, जिससे काम में देरी
भारतीय अधिकारियों के मुताबिक जाहेदान रेलवे प्रॉजेक्ट में दो अहम चीजें हैं। जमीन को ट्रैक के लिए तैयार करना यानी 'सब स्ट्रक्चर' की जिम्मेदारी ईरान की है, जबकि सुपर स्ट्रक्चर यानी ट्रैक बिछाने और रैक्स की जिम्मेदारी भारत की है। अभी ईरान सरकार ने अपना काम पूरा नहीं किया है, जिससे काम में देरी हो रही है।
चाबहार रेल प्रोजेक्ट पर अमेरिकी प्रतिबंधों से मिली छूट से कम हुईं बाधाएं
रेल प्रॉजेक्ट का काम अभी नहीं शुरू हो पाया है। बड़ी वजह ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध है, जिससे जरूरी निर्माण सामग्रियों की उपलब्धता में देरी हो रही है। हालांकि चाबहार पोर्ट के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों से मिली छूट राहत की बात है।
ईरान ने पिछले हफ्ते ट्रैक बिछाने के काम का उद्घाटन किया
ईरान की चाबहार रेल प्रोजेक्ट को मार्च 2022 तक पूरा करने की उसकी योजना है। चीन से हुई संभावित डील के मद्देनजर अब ईरान का कहना है कि वह भारत से फंडिंग के बिना अकेले ही प्रोजेक्ट पूरा करेगा। इसके लिए उसने अपने नैशनल डिवेलपमेंट फंड से रेल प्रॉजेक्ट के लिए करीब 40 करोड़ डॉलर लगाने जा रहा है।
चाबहार पोर्ट से भारत का व्यापार बढ़ रहा है
2017 में भारत ने चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान को मदद के तौर पर गेहूं की खेप भेजी थी। पिछले साल अफगानिस्तान ने भी चाबहार के जरिए पहली बार सूखे फलों, कॉटन, कार्पेट आदि की 570 टन की खेप भारत भेजी थी। रेलवे लाइन बन जाने से माल की आवाजाही और ज्यादा आसान हो जाएगी और उसमें तेजी भी आएगी।
चाबहार रेल प्रोजेक्ट पर ईरान के फैसले के पीछे कौन?
अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत ही नहीं, बल्कि चीन ने ईरान के साथ अपने तेल आयात को लगभग जीरो कर दिया है, लेकिन पेइचिंग ने इस बीच तेहरान से एक अहम समझौता करने जा रहा है। 25 साल के लिए ईरानी तेल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए चीन 400 अरब डॉलर ( करीब 30 लाख करोड़ रुपए) का समझौता कर सकता है, जिसके बदले में चीन ईरान में एयरपोर्ट, हाई-स्पीड रेलवेज, सबवेज, बैंकिंग और 5G टेलीकम्यूनिकेशन को विकसित करने में मदद करेगा।
ईरान ने पाकिस्तान से गलबहियां बढ़ानी शुरू कर दी
भारत ने प्रतिबंध के तहत सस्ता तेल लेना बंद किया तो उधर ईरान ने भी पाकिस्तान से गलबहियां बढ़ानी शुरू कर दी है। ईरान ने कहा है कि वह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को अपने यहां स्थित चाबहार बंदरगाह से जोड़ने को राजी है और इससे दोनों देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। चाबहार बंदरगाह के लिए भारत, अफगानिस्तान और ईरान की साझेदारी है। अब पाकिस्तान के इसमें जुड़ने से भारत-ईरान संबंधों पर असर पड़ना तय है।
गिलगित-बाल्टिस्तान भी हमारा और अब बात पीओके पर होगी
भारत ने हाल ही में पाकिस्तान को साफ तौर पर फिर से बताया है कि पूरा गिलगित-बाल्टिस्तान समेत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भारत का अभिन्न हिस्सा है। विदेश मंत्रालय ने यह बयान तब दिया जब पाकिस्तान सरकार और वहां की अदालत को जबरन कब्जाए गए क्षेत्र पर पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव कराने का आदेश जारी किया था।
अब जो भी बात होगी पीओके पर होगीः राजनाथ सिंह
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने से बौखलाए पाकिस्तान को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तभी चेतावनी देते हुए साफ-साफ कहा था कि पाकिस्तान से अब जो भी बात होगी वह पाक अधिकृत कश्मीर (POK) पर होगी, जिसके बाद से ही पाकिस्तान की इमरान खान सरकार को डर लग रहा है कि अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को हटाए जाने के बाद भारत अब POK में बालाकोट से भी बड़ी कार्रवाई कर सकता है।
भारत ने कहा, पीओके पर जल्द कब्जा छोड़े पाकिस्तान
भारत द्वारा गिलगित-बाल्टिस्तान में बौद्ध धरोहर के तोड़-फोड़ और उसे नुकसान पहुंचाने की घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पाकिस्तान को एक बार फिर भारतीय इलाकों पर अवैध कब्जा तुरंत छोड़ने को कहा था। भारतीय विदेश मंत्रालय ने गिलगित-बाल्टिस्तान में बहुमूल्य भारतीय बौद्ध धरोहर को नुकसान पहुंचाए जाने पर साफ कहा है कि भारतीय इलाकों में इस तरह की गतिविधि बेहद निंदनीय है।
गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का है अवैध कब्जाः भारत
पाकिस्तान ने भारतीय क्षेत्र गिलगित-बाल्टिस्तान पर अवैध और बलपूर्वक कब्जा कर रखा है। वर्ष 1947 में देश के विभाजन के दौरान गिलगित-बाल्टिस्तान का क्षेत्र न तो भारत का हिस्सा था और न ही पाकिस्तान का था। वर्ष 1935 में ब्रिटेन ने इस हिस्से को गिलगित एजेंसी को 60 साल के लिए लीज पर दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने इस लीज को एक अगस्त 1947 को रद्द करके क्षेत्र को जम्मू एवं कश्मीर के महाराजा हरि सिंह को लौटा दिया और राजा हरिसिंह ने भारत में जम्मू-कश्मीर का विलय किया था।