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महाराष्‍ट्र: शिवसेना भी पुत्रमोह में खो सकती है अपना वज़ूद!

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बेंगलुरु। महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर पिछले 12 दिनों से सस्‍पेंस बना हुआ है। महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा -शिवसेना के गठबंधन ने कांग्रेस-एनसीपी को हरा दिया लेकिन जनता का बहुमत मिलने के बाद भी अभी तक मुख्‍यमंत्री पद को लेकर सरकार नहीं बन सकी हैं। भाजपा से 50-50 फॉमूले पर पेंच फंसने के कारण शिवसेना अब अपनी विचारधारा के खिलाफ विचारधारा वाली एनसीपी पार्टी के साथ हाथ मिलाकर गठबंधन की सरकार बनाने जा रही हैं। माना जा रहा है कि यह सब शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने पुत्र आदित्‍य ठाकरे को मुख्‍यमंत्री पद पर देखने की जिद के कारण कर रहे हैं। अगर वास्‍तव में ऐसा होता है तो शिवसेना भी कांग्रेस समेत अन्‍य पार्टियों की तरह पुत्रमोह में पड़ कर अपना वजूद भी खो सकती हैं। वहीं विरोधी विचाराधारा वाली पार्टी के साथ सरकार तो बना सकती हैं लेकिन यह सरकार चलेगी कैसे ?

बाल ठाकरे की छवि को सबसे अधिक नुकसान होगा

बाल ठाकरे की छवि को सबसे अधिक नुकसान होगा

शिवसेना और भाजपा दोनों की ही विचाराधारा एक हैं इसके बावजूद महाराष्‍ट्र में पिछली सरकार के कार्यकाल में सत्ता में सहयोगी होने के बावजूद शिवसेना भाजपा पर हमले करती रही। पांच वर्षों तक भाजपा का जमकर विरोध करने के बावजूद 2019 में विधानसभा शिवसेना और भाजपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा क्योंकि दोनों की विचारधारा एक थी। भाजपा और शिवसेना दोनों ही हिंदूवादी छवि के साथ राजनीति करते हैं । अब अगर शिवसेना कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन के साथ जा रही है तो ये फैसला शिवसेना की विचारधारा के खिलाफ होगी, जिसकी वजह से उसकी छवि को नुकसान होना तय है। अगर इस बार 5 साल के लिए शिवसेना ने ऐसा कर के सरकार बना ली और आदित्य ठाकरे को सीएम की कुर्सी पर बैठा भी दिया तो अगले विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

इसके विपरीत इसका फायदा शिवसेना को मिलेगा इसमें कोई दो राय नही है। क्योंकि शिवसेना का एनसीपी के साथ जाना गठबंधन को दरकिनार करना है जिसको जनता ने पसंद कर वोट दिया था और सरकार के रुप में देखना चाहती थी। लेकिन उद्धव ठाकरे ने पुत्रमोह में पड़कर आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए सेकुलर छवि वाली कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाने पर बाल ठाकरे की छवि को सबसे अधिक नुकसान होगा। वह कभी झुकते नहीं थे, जो कह देते थे उसे कर के दिखाते थे।

भाजपा-शिवसेना के गठबंधन में सीएम कुर्सी बनी रोड़ा

भाजपा-शिवसेना के गठबंधन में सीएम कुर्सी बनी रोड़ा

आपको बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना और बीजेपी में गठबंधन था और दोनों दलों को चुनाव में बहुमत हासिल हुआ लेकिन इसके बाद पिछले 12 दिनों से दोनों पार्टियों में सीएम पोस्ट को लेकर खींचतान चल रही है । दरअसल, महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के गठबंधन की सरकार बनाने का सारा मामला मुख्यमंत्री के पद को लेकर अटका हुआ है। भाजपा पूरे 5 साल तक अपने मुख्‍यमंत्री पद के उम्मीदवार देवेन्‍द् फडणवीज को ही मुख्‍यंत्री बनाना चाहती है जबकि शिवसेना 50-50 फॉर्मूले की जिद लेकर अड़ी हुई है। उसकी जिद है कि ढाई वर्ष भाजपा के देवेन्‍द्र फडणवीज मुख्‍यमंत्री बने और अगले ढाई वर्ष आदित्‍य ठाकरे को मुख्‍यमंत्री बनाया जाए।

उद्वव ठाकरे का पुत्रमोह

उद्वव ठाकरे का पुत्रमोह

गौरतलब है कि शिवसेना के इतिहास में पहली बार ठाकरे परिवार से किसी सदस्‍य ने विधानसभा चुनाव मैदान में उतारा गया था। आदित्‍य ठाकरे न केवल चुनाव उतरे उन्‍होंने जीत भी हासिल की इसलिए अब उद्वव ठाकरे अपने पुत्र को मुख्‍यमंत्री की कुर्सी पर राजतिलक करवाना ठाकरे परिवार की प्रतिष्‍ठा और बढ़ाना चाहते हैं। इसके जिद के पीछे उद्दव ठाकरे का पुत्रमोह ही हैं। जिसके साथ गठबंधन करके चुनाव जीता उसको ही ठेंगा दिखाकर विरोधी विचारधारा वाली पार्टी से हाथ मिला रही है। भारत में कई पार्टियों का इतिहास गवाह है कि पुत्रमोह की राजनीति सब तबाह कर देती है ! हर पिता अपने पुत्र को सफल होते देखना चाहता है, जिसके लिए वह उसकी पूरी मदद भी करता है लेकिन राजनीति में पुत्रमोह ने सब तबाह ही किया है। शिवसेना का भविष्य क्या होगा ये तो आने वाला कल बताएगा, लेकिन कई पार्टियों में पुत्रमोह की वजह से काफी कुछ बर्बाद हुआ है। वर्तमान में इसका सबसे बड़ा उदाहरण भारत में सबसे अधिक समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी है।

कांग्रेस के पतन की वजह बना सोनिया का पुत्रमोह

कांग्रेस के पतन की वजह बना सोनिया का पुत्रमोह

बता दें कांग्रेस की पुरानी परंपरा रही है पार्टी का मालिकाना हक गांधी परिवार के पास ही रहा। इसी परंपरा को कायम रखते हुए वर्षों पहले सोनिया गांधी ने भी अपने पुत्र राहुल गांधी को कांग्रेस पार्टी की बागडोर दे दी। लेकिन वर्षों से राहुल गांधी अपनी जिम्मेदारी उठाने में असफल रहें लेकिन इसके बावजूद उनकी जगह किसी और को नहीं लाया जा रहा है। पार्टी के अंदर चल रहे विद्रोह के कारण राहुल गांधी ने कांग्रेस पद से इस्‍तीफा तो दे दिया लेकिन किसी नये चेहरे को पार्टी को बांगडोर देने के बजाय सोनिया गांधी स्‍वयं अंतरिम अध्‍यक्ष बन बैठी।
राहुल गांधी की असफलाओं के बावजूद सोनिया गांधी पुत्रमोह में कांग्रेस को नुकसान होते देख रही हैं। महज 5-6 साल पहले तक कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी थी और आज के समय में हालात ऐसे हो गए हैं कि वह धीरे-धीरे सिमटती जा रही है. यानी पार्टी को लगातार नुकसान तो हो रहा है, लेकिन फिर भी सब राहुल गांधी को ही पार्टी का आलाकमान बनाने पर तुले हैं, जबकि खुद राहुल गांधी की रुचि राजनीति में नहीं दिखती। पिछले रविवार को कांग्रेस की करीबी रहे पंकज शंकर ने यहां तक कह दिया कि राहुल गांधी राजनीति में इतने साल बाद भी नौसिखिया हैं और पिछले 15 साल से वह राजनीति में इटर्नशिप कर रहे हैं। उनके प्रतिनिधित्व में कांग्रेस दो सीटों के अंको तक सिमट कर रह गयी है। उन्‍होंने यह भी कहा कि यह इंटर्नशिप है जो खत्म ही नहीं हो रहा है सोनिया गांधी पर निशाना साधा और कहा कि पुत्रमोह ही तो है ये।

लालू के पुत्रमोह में आरजेडी का ये हुआ हाल

लालू के पुत्रमोह में आरजेडी का ये हुआ हाल

वहीं बिहार में लालू यादव जो बिहार के सवोसर्वा थे लेकिन 2015 के चुनाव जेडीयू और लालू यादव की आरजेडी ने गठबंधन करके भाजपा को हरा दिया। इस चुनाव में लालू यादव के दोनों बेटे चुनाव जीते और छोटे बेटे तेजस्‍वी को डिप्टी सीएम और बडे़ बेटे तेज प्रताप को कैबिनेट मंत्री बना दिया। कुछ दिनों बाद भ्रष्‍टाचार के आरोप के कारण नीतीश यादव से तनातनी हुई और नीतीश ने आरजेडी का साथ छोड़ दिया और इस्‍तीफा दे दिया और फिर भाजपा ने नीतीश से दोस्‍ती का हाथ बढ़ा दिया। आज बिहार में लालू जहां जेल में है वहीं आरजेडी को जो हाल है उससे सब वाकिफ हैं।

सपा और जेडीएस का पुत्रमोह में ही हुआ ये हाल

सपा और जेडीएस का पुत्रमोह में ही हुआ ये हाल

वहीं उत्तर प्रदेश की राजीति में समाजवादी पार्टी जो टूटी उसकी प्रमुख वजह अखिलेश यादव थे। मुलायम सिंह ने पुत्र मोह में आकर अखिलेश यादव को सत्ता पर काबिज होते देखने के लिए पार्टी हितों को दरकिनार कर दिया और मुलायम की अपने ही भाई शिवपाल के साथ संबंधों में दरार पड़ गयी और पार्टी का जो हाल हुआ उसे सबने देखा ही।

कनार्टक में पुत्रमोह में ही जेडीएस का आस्तित्व खतरे में पड़ा

कर्नाटक में भी जेडीएस प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा अपने बेटे कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने के चक्कर में पार्टी को तबाह कर रहे हैं।पहले कुमारस्वामी ने 2004 में कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई और करीब दो साल बाद गठबंधन तोड़ा और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई और आधे-आधे टाइम मुख्यमंत्री बनने को लेकर डील हुई। कुमारस्वामी ने अपना समय पूरा कर दिया लेकिन भाजपा के येदियुरप्पा की बारी आई तो गठबंधन से बाहर निकल गए। 2014 में कुमारस्वामी ने कांग्रेस के साथ सरकार बनाई और पूरे टाइम कांग्रेस के साथ उनकी पटी नहीं और जो हुआ सबको पता है। इसके बावजूद देवेगौड़ा सिर्फ उन्हें ही आगे बढ़ाना चाहते हैं, भले ही उनकी पार्टी जेडीएस का अस्तित्व ही खतरे में क्यों ना पड़ जाए।

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English summary
Shiv Sena is going to form a government in Maharashtra by joining hands with its anti-ideology NCP. You can form a government with an anti-ideology party, but how will this government run? ShivSena may lose its existence
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