2020 Delhi Assembly Polls:7 वर्ष में दिल्ली में ढंग का एक नेता भी नहीं ढूंढ पाई बीजेपी!
बेंगलुरू। दिल्ली विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है और दिल्ली की मौजूदा केजरीवाल सरकार को हराने के लिए मुख्य विपक्षी पार्टी में शुमार बीजेपी की तैयारी 7 साल के लंबे अंतराल के बाद भी जीरो ही दिखाई दे रही है। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी की छवि अभी भी उनके पुराने कैरियर की संगत नहीं छोड़ पाई है और अगर बीजेपी दिल्ली सीएम कैंडीडेट की घोषणा नहीं करती है, तो दिल्ली की जनता में यह संदेश जाएगा कि मोदी के नाम पर वोट लेकर बीजेपी मनोज तिवारी को दिल्ली को थोप देगी।
हालांकि बीजेपी आलाकमान बीजेपी ने मनोज तिवारी को दिल्ली के भावी सीएम कैंडीडेट के तौर पर प्रोजेक्ट नहीं किया है, लेकिन विरोधियों ने उन्हें बीजेपी के सीएम कैंडीडेट के रूप प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है। सोशल मीडिया में उनके खिलाफ खूब मीम्स भी बनाए जा रहें है। समय रहते बीजेपी को एक बेहतर सीएम कैंडीडेट की तलाश कर लेनी चाहिए। फिलहाल डा. हर्ष वर्धन एक बेहतर चेहरा है, जिनके नाम पर जनता बेहिचक वोट करेगी।
डा. हर्ष वर्धन दिला सकते हैं बीजेपी को दिल्ली की सत्ता
मौजूदा समय में दिल्ली बीजेपी में डा. हर्ष वर्धन से बेहतर सीएम कैंडीडेट मैटेरियल बीजेपी के पास नहीं है, जिन्होंने वर्ष 2013 में तब बीजेपी को 32 सीट दिलाने में सफल हुए जब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी उफान पर थी, लेकिन वर्ष 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा में बीजेपी जब 3 सीटों पर सिमट गई तो माना गया कि अचानक पैराशूट के जरिए उतारी गई सीएम कैंडीडेट किरण बेदी का दांव उल्टा पड़ गया। हालांकि वर्ष 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की दुर्गति के कई बड़े कारण थे, जिनमें निगेटिव पब्लिसिटी प्रमुख था। फलस्वरूप बीजेपी को दिल्ली में मोदी मैजिक और मोदी लहर भी नहीं बचा पाई थी।
7 वर्ष के लंबे अंतराल में दिल्ली में सीएम कैंडीडेट नहीं ढूंढ पाई बीजेपी
दिल्ली विधानसभा का चुनाव 8 फरवरी होना तय है और 11 फरवरी को मतदान के नतीजे आएंगे। आम आदमी पार्टी जहां पिछले छह महीनों में विज्ञापन पर किए खर्च करके माहौल अपने पक्ष में बनाने में सफल होती दिख रही है। वहीं, दिल्ली बीजेपी एक फिर प्रधानमंत्री मोदी के कंधे पर सवार होकर दिल्ली के सत्ता पर काबिज होने का सपना पाले हुए है। दिल्ली में बीजेपी के पास सीएम कैंडीडेट नहीं होना सबसे बड़ी परेशानी का सबब हो सकता है, क्योंकि दिल्ली की जनता केजरीवाल के मुकाबले बीजेपी के सीएम कैंडीडेट को वोट देते समय परखेगी।
दिल्ली बीजेपी के युवा नेता प्रवेश सिंह वर्मा हो सकते थे बेहतर विकल्प
दिल्ली में सीएम कैंडीडेट के लिए बीजेपी के विकल्पों पर गौर करेंगे, तो डा. हर्ष वर्धन के बाद एक और बड़ा चेहरा मौजूद था, जिसे बीजेपी पिछले 7 वर्षों में तैयार कर सकती थी और वो हैं दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहेब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश सिंह वर्मा। दिल्ली के युवा चेहरे में शामिल प्रवेश वर्मा वर्ष 2014 लोकसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में लगातार दो बार संसद के लिए चुने गए हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में महरौली लोकसभा सीट से प्रवेश वर्मा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी को रिकॉर्ड 578486 मतों से हराया था। यही नहीं, वर्ष 2013 दिल्ली विधानसभा चुनाव में युवा नेता और सांसद प्रवेश वर्मा ने दिल्ली विधानसभा के स्पीकर और वरिष्ठ कांग्रेस नेता योगानंद शास्त्री को महरौली विधानसभा में हराया था।
प्रवेश सिंह वर्मा सीएम कैंडीडेट के रूप में तैयार किए जा सकते थे
ऐसे में कहा जा सकता है कि दिल्ली बीजेपी के लिए प्रवेश सिंह वर्मा सीएम कैंडीडेट के रूप में तैयार किए जा सकते थे, लेकिन दिल्ली बीजेपी पिछले 7 वर्षों में बतौर सीएम कैंडीडेट किसी को तैयार करने में बुरी तरह नाकाम रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्ष वर्धन के बाद प्रवेश सिंह वर्मा दूसरे ऐसे नेता थे, जिसे दिल्ली की जनता स्वीकारने में देर नहीं लगाती और दिल्ली को जाट वोट भी एकमुश्त मिलने की पूरी गांरटी है। साहेब सिंह वर्मा के पुत्र होने के नाते प्रवेश सिंह वर्मा को अपनाने में दिल्ली की जनता देर नहीं लगाती।
एक बार फिर दिल्ली में केजरीवाल सरकार बनाते दिख रहे हैं
अब चूंकि बहुत कम समय बचा है, लेकिन अगर बीजेपी अभी नहीं चेती और मनोज तिवारी के नेतृत्व में ही दिल्ली विधानसभा में उतरती है, तो बीजेपी का हारना लगभग तय है। दिल्ली में मोदी फैक्टर का लाभ बीजेपी इस बार भी मिलता नहीं दिख रहा है, क्योंकि दिल्ली की जनता एक क्रांतिकारी नेता के रूप में केजरीवाल मिला हुआ है। बीजेपी अगर मोदी के भरोसे चुनाव में उतरती है और सीएम कैंडीडेट की घोषणा नहीं करती है तो बीजेपी की सीटो की संख्या जरूर बढ़ सकती है, लेकिन सरकार एक बार केजरीवाल ही बनाते दिख रहे हैं।
मनोज तिवारी की तुलना में अरविंद केजरीवाल की छवि बेहतर है
क्योंकि दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी के प्रशासक वाली छवि अभी दिल्ली में नहीं बन पाई है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी दिल्ली के सातों लोकसभा सीट जीतने का श्रेय मनोज तिवारी को इसलिए नहीं दे सकती है, क्योंकि पूरे देश में मोदी के पक्ष में वोट किया है और दिल्ली से अछूता नही है, लेकिन जब बात मुख्यमंत्री चुनने की आएगी तो दिल्ली शख्सियत चुनेगी और ऐसे में मनोज तिवारी की तुलना में अरविंद केजरीवाल की छवि बेहतर है। बीजेपी द्वारा सीएम कैंडीडेट का नाम नहीं घोषित करने से भी आम आदमी पार्टी को फायदा हो रहा है। अगर बीजेपी डा. हर्ष वर्धन और प्रवेश सिंह वर्मा में से किसी एक सीएम कैंडीडेट घोषित कर देती है, तो केजरीवाल की चुनावी स्ट्रेटेजी बदलनी पड़ सकती है।
रघुवर दास झारखंड में मोदी फैक्टर के सहारे नहीं पार कर सके चुनावी वैतरणी
बीजेपी को झारखंड विधानसभा चुनाव में मिली हार से सबक लेना चाहिए, जहां मुख्यमंत्री रघुवर दास मोदी फैक्टर के सहारे इस बार भी चुनावी वैतरणी पार करना चाहते थे, लेकिन बीजेपी का क्या हश्र हुआ यह इतिहास बन चुका है। रघुवर दास जब भी चुनावी कैंपेन में गए, उनके चुनावी भाषणों में पांच साल तक उन्होंने झारखंड में क्या किया उसकी लिस्ट नहीं होती थी बल्कि लिस्ट मोदी सरकार के केंद्रीय योजनाओं की होती थी। रघुवर दास झारखंड के क्षेत्रिय मुद्दों को नकार कर झारखंड में दोबारा सत्ता पर काबिज होना चाहते थे, लेकिन जनता ने उनका साथ छोड़कर हेमंत शोरेन को अपना मुख्यमंत्री चुन लिया।
दिल्ली चुनाव भी PM मोदी के कामकाज से जीतने की कोशिश
कमोबेश दिल्ली बीजेपी में मनोज तिवारी की भी रघुवर दास जैसी हालत है। मनोज तिवारी भी दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने की रणनीति प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज और राष्ट्रवाद के नाम पर जीतने की है। मनोज तिवारी अच्छी तरह जानते होंगे कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली में मिली बड़ी जीत का कारण वो खुद नहीं थे, लेकिन मनोज तिवारी दिल्ली विधानसभा का चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल करने पर इसलिए भी अमादा है, क्योंकि उन्होंने पिछले पांच वर्ष उन्होंने दिल्ली के लिए क्या किया है, उन्हें खुद नही पता है। मोदी फैक्टर के सहारे मनोज तिवारी दिल्ली विधानसभा में बीजेपी को कितनी सीट दिला पाएंगे, यह तो 11 फरवरी को आने वाले नतीजो से पता चलेगा, लेकिन अगर बीजेपी अभी नहीं चेती तो दिल्ली की सत्ता एक बार उससे दूर ही रहने वाली है।
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