अगर चमत्कार को नमस्कार है तो महाराष्ट्र में फिर तय है देवेंद्र फडणवीस सरकार!
बेंगलुरू। महाराष्ट्र में नवनियुक्त बीजेपी और एनसीपी (अजीत पवार) समर्थित महाराष्ट्र सरकार के फ्लोर टेस्ट का फैसला कल 5 बजे से पहले हो जाएगा। आशंका है कि सुप्रीम कोर्ट से मिले कम समय में बीजेपी औ एनसीपी (अजीत पवार) सरकार गिर जाए, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या एनसीपी और कांग्रेस और शिवसेना गठबंधन सरकार बन पाएगी और अगर बन भी गई तो क्या पांच वर्ष तक चल पाएगी?
देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार के महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद की शपथ की संवैधानिता पर सवाल उठाने वाले एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना को उस वक्त बगले झांकना पड़ गया जब सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र में 23 नवंबर को देवेंद्र फडणवीस सरकार के गठन की संवैधानिकता पर उठाई उनकी दलीलें बुरी तरह से खारिज हो गईं।
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हुए तीखे बहस के दौरान यह बात पूरी तरह से साफ हो गई थी कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने किसी भी संवैधानिक नियमों को ताक पर रखे बिना देवेंद्र फडणवीस और एनसीपी लीडर अजीत पवार को क्रमशः मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवाई थी।
एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में महाराष्ट्र राज्यपाल पर आरोप था कि उन्होंने बिना राष्ट्रपति शासन हटाए ही महाराष्ट्र में नई सरकार को शपथ दिलवा दी थी। सोमवार को जब सुप्रीम कोर्ट में बहस शुरू हुआ तो बीजेपी की ओर पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी के दलीलों और तथ्यों के आगे शिवसेना की पैरवी कर रहे कपिल सिब्बल और कांग्रेस की पैरवी कर रहे वकील अभिषेक मनुसिंघवी की हवा निकल गई।
सोमवार को सभी पक्षों के वकीलों की जिरह से यह साफ हो गया था कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति हटाने और नई सरकार को शपथ दिलाने में किसी भी संवैधानिक प्रक्रिया अथवा नियम का उल्लंघन नहीं हुआ था। यही वजह थी कि सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे कांग्रेस और शिवसेना के वकीलों ने पाला बदलते हुए विधानसभा में जल्द फ्लोर टेस्ट करवाने की मांग सुप्रीम कोर्ट में शुरू कर दी।
माना गया कि अपने ही चालों में फंसे वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनुसिंघवी के पास अब एक ही चारा था कि महाराष्ट्र विधानसभा में जल्द फ्लोर टेस्ट करवाकर ही फडणवीस सरकार को सदन में गिराई जा सकती है। यही कारण था कि सोमवार को कांग्रेस और शिवसेना के वकीलों के जल्द फ्लोर टेस्ट करवाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कांग्रेस की ओर सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रख रहे वकील अभिषेक मनु सिंघवी की दलील दी थी कि ऐसे कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट 24 घंटे या 48 घंटे में बहुमत साबित करने को कह चुकी है इसलिए महाराष्ट्र मामले में भी ऐसा ही होना चाहिए। सिंघवी की ओर से कहा गया कि अगर दोनों पक्ष फ्लोर टेस्ट को तैयार हैं तो फिर देरी क्यों हो रही है।
दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में सिंघवी ने जिन 154 विधायकों के समर्थन पत्र भी सौंपा था उसे अदालत यह कहकर खारिज कर दिया था कि उन्हें विधायकों से भी जवाब लेना पड़ेगा, जिसके बाद सिंघवी को 154 विधायकों वाला समर्थन पत्र वापस लेना पड़ गया था।
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस और शिवसेना के तुरंत फ्लोर टेस्ट करवाने और अदालत को तुरंत प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति करने की अपील पर मुहर लगाते हुए फैसला उनके पक्ष में सुना दिया है और अब बुधवार यानी 27 नवंबर को महाराष्ट्र विधानसभा के सदन में फ्लोर टेस्ट तय हो गया है।
इससे पहले जीतकर आए सभी विधायक शपथ दिलाई जाएगी, जिसके बाद बुधवार शाम 5 बजे पहले फ्लोर टेस्ट में तय हो जाएगा कि महाराष्ट्र में बीजेपी-एनसीपी की सरकार रहेगी या फिर चली जाएगी। हालांकि पिछले एक महीने के घटनाक्रम में महाराष्ट्र में बेहद चौंकाऊं बातें हुई हैं और अगर एक फिर बुधवार को नतीजे चौंकाऊं आ जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में देवेंद्र फडणवीस की ओर से पक्ष रख रहे मुकुल रोहतगी ने कांग्रेस और शिवसेना के वकीलों के जल्दी फ्लोर टेस्ट करवाने के खिलाफ दलील देते हुए कहा कि फ्लोर टेस्ट के लिए विधानसभा की प्रक्रिया का पालन होना चाहिए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मुकुल रोहतगी को दलीलों पर ध्यान नहीं दिया और बुधवार को शाम 5 बजे से पहले सदन में फ्लोर टेस्ट फैसला सुना दिया।
रोहतगी ने मांग की थी कि पहले प्रोटेम स्पीकर चुना जाए, फिर विधायकों की शपथ, उसके बाद स्पीकर का चुनाव, राज्यपाल का अभिभाषण हो फिर अंत में फ्लोर टेस्ट होना चाहिए, जो कि विधानसभा की पुरानी परिपाटी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी के वकील मुकल रोहतगी के दलीलों पर पानी फेरते हुए बुधवार को फ्लोर टेस्ट का फैसला दिया है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट की वीडियो रिकॉर्डिंग भी करने का आदेश दिया है।
बुधवार को होने वाले फ्लोर टेस्ट में क्या होगा और क्या नहीं होगा, यह तो कल ही पता चलेगा जब बीजेपी, एससीपी, शिवसेना, कांग्रेस और 13 निर्दलीय सदन में वोटिंग के दौरान बटन दबाकर पक्ष और विपक्ष में फैसला करेंगे। एक तरफ बीजेपी की ओर से लगातार दावा किया जा रहा है कि उनके पास 160 से अधिक विधायकों का समर्थन हासिल है।
दूसरी ओर सोमवार रात एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना ने मुंबई स्थित हयात होटल में एक मिनी असेंबली सजाकर 162 विधायकों के समर्थन का दावा किया है। यह अलग बात है कि हयात होटल में केवल 162 विधायकों ही पहुंचने के मौजूद होने के दावे की पोल खुल चुकी है। बीजेपी महाराष्ट्र के एक नेता ने दावा किया है कि एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना द्वारा मुंबई के हयात होटल लगाई गई मिनी असेंबली में महज137 विधायक ही पहुंचे थे।
दरअसल, एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के मिनी असेंबली के दावों की सच्चाई सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में ही खुल चुकी थी जब सुनवाई के दौरान सरकारी वकील तुषार मेहता द्वारा पेश किए एक पत्र में साफ-साफ नजर आ रहा है कि अजित पवार ने एनसीपी के 54 विधायकों के समर्थन वाला पत्र हस्ताक्षर के साथ राज्यपाल को सौंपा था, जिसे गत 22 नवंबर को अजीत पवार ने महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस ने सरकार गठन के लिए राज्यपाल को सौंपा था।
वैसे, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सुनवाई के दौरान दलील रखा था कि सुप्रीम कोर्ट को फ्लोर टेस्ट के लिए आदेश देने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि अगर राज्यपाल का आदेश गैरक़ानूनी नहीं था, इसलिए फ़्लोर टेस्ट का दिन तय करने का आदेश कोर्ट को भी नहीं देना चाहिए और उसे राज्यपाल पर छोड़ देना चाहिए।
उन्होंने कोर्ट से बताया कि पिछले एक महीने में राज्यपाल ने सभी दलों को बारी-बारी से सरकार गठन के लिए आमंत्रित किया था, तब कोई भी दल सरकार गठन के लिए तैयार नहीं हुआ, क्योंकि निर्णायक सीटों वाला समर्थन पत्र सौंपने में कोई भी दल समर्थ नहीं था।
उल्लेखनीय है गत 22 फरवरी को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को बीजेपी-एनसीपी (अजीत पवार) के संयुक्त विधायकों वाले पत्र के साथ सौंपे गए एक अलग पत्र भी राज्यपाल को सौंपा गया था, जिसमें 11 स्वतंत्र और अन्य विधायकों का समर्थन पत्र भी नत्थी किया गया था और तब बीजेपी-एनसीपी के साथ 170 विधायकों का समर्थन हासिल था।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान शिवसेना के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा था कि उनके पास 154 विधायकों के समर्थन वाला हलफनामा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर उनके 154 विधायकों वाले समर्थन पत्र को खारिज कर दिया था कि उन्हें सभी समर्थित विधायकों से भी जवाब लेना पड़ेगा और सिंघवी को 154 विधायकों वाला समर्थन पत्र वापस लेना पड़ गया था।
कल महाराष्ट्र विधानसभा सदन में फ्लोर टेस्ट में क्या होता है, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा, क्योंकि विधायकों के समर्थित पत्रों की असलियत सदन के फ्लोर टेस्ट में ही खुलेगी। बीजेपी के 105 विधायक 11 निदर्लीय विधायकों को मिलाकर 116 विधायक हैं। बीजेपी-एनसीपी और शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के लिए एनसीपी के 54 विधायक निर्णायक साबित होने वाले हैं, जिनके रंग फ्लोर टेस्ट में ही दिखेंगे।
फिलहाल की तस्वीर में शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन की स्थिति मजबूत दिख रही है, लेकिन महाराष्ट्र में कल क्या होगा, कोई दावा नहीं कर सकता है। कहने का अर्थ है कि महाराष्ट्र की राजनीतिक उठापटक में कल कुछ भी हो सकता है क्योंकि ट्रेलर इतना लंबा चला है तो पूरी पिक्चर तो देखना अभी बाकी ही है। कल यानी बुधवार को 5 बजे से पहले होने वाले फ्लोर टेस्ट तक कोई चमत्कार हो जाए तो नमस्कार दोनों में से एक गठबंधन को उसे नमस्कार कहना ही पड़ेगा।
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