अगर 23 तारीख को गलत साबित हुए एग्जिट पोल, तो ये होंगे बहाने
नई दिल्ली- इस बार एक बात खास है कि सभी एग्जिट पोल्स (exit polls) में कम से कम एक बात पर आम सहमति है कि सबने एनडीए (NDA) को पूर्ण बहुमत दिखाया है। अलबत्ता, अगर अलग-अलग राज्यों और सीटों के लिए की गई भविष्यवाणियों को देखते हैं, तो यह भी साफ है कि सबके अनुमानों में काफी विरोधाभास भी है। लेकिन, फिर भी इसने लोगों के दिमाग पर इतना ज्यादा असर डाला है कि उसपर लोग यकीन कर रहे हैं। यह भी कहना गलत होगा कि ये अनुमान 23 तारीख को पूरी तरह से गलत ही हो जाएंगे। लेकिन, यह भी दावे के साथ नहीं कहा जा सकता कि वो पूरी तरह सही और सटीक ही होंगे। हो सकता है कि किसी का कोई अनुमान सही हो जाए और किसी का कोई और। लेकिन, इसका असर इस बार इतना ज्यादा हो चुका है कि सत्ताधारी बीजेपी (BJP) और एनडीए (NDA) के लोग बिन दूल्हे के अभी से बारात निकाल रहे हैं, तो विपक्षी खेमे में ईवीएम (EVM) के नाम का मातम पसरा है। ऐसे में सोचने लायक बात है कि अगर नतीजे अनुमानों के मुताबिक नहीं रहे, तो एग्जिट पोल करने वालों के पास बहाने क्या रहेंगे?
इसलिए गलत भी हो सकते हैं एग्जिट पोल
भारत विविधताओं से भरा एक बहुत विशाल देश है, जहां इस बार 90 करोड़ से ज्यादा वोटर हैं। कोई भी एग्जिट पोल को चाहे कितना भी साइंटिफिक मेथड बताए, लेकिन यहां इसकी एक्युरेसी को लेकर संदेह बना रहता है। एक तो वैज्ञानिक तरीके से सटीक नतीजों के लिए जितने बड़े सैंपल साइज की दरकार होती है, उतना कर पाना हर बार मुमकिन नहीं होता। इसका परिणाम ये होता है कि जितने वोटरों की राय ली जाती है, वे सभी तरह के मतदाताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते। एक बात ये भी है कि अपने देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यह बात कत्तई जाहिर नहीं होने देना चाहते कि उनका वोट किसको गया है। इसलिए, वे माहौल देखकर गलत जानकारी भी दे देते हैं, ताकि बाद में उन्हें किसी विवाद में न फंसना पड़े। इससे किसी नतीजे तक पहुंचने में बहुत बड़ी चूक की गुंजाइश रहती है। इसके अलावा बड़ी बात ये भी है कि एग्जिट पोल्स (exit polls) को पार्टियों को मिले वोट शेयर जानने के लिहाज से डिजाइन किया जाता है, सीट शेयरिंग के हिसाब से नहीं। इसके कारण वोट शेयर सीट में कितना कन्वर्ट होता है, इसका सटीक अनुमान लगाना थोड़ा मुश्किल होता है। खासतौर पर जब मुकाबला बहुकोणीय हो, तो फिर वोट शेयर के आधार पर सीट शेयर का अंदाजा लगाना बहुत कठिन हो जाता है। इस बार के एग्जिट पोल में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जिसमें एक एग्जिट पोल वाली संस्था किसी सीट पर जिस पार्टी को बढ़त दिखा रही है, दूसरे ने ठीक उसके उलट भविष्यवाणी की है।
गलते साबित हुए तो ये होंगे बहाने
ये भी तय है कि सारे के सारे एग्जिट पोल पूरी तरह से सही साबित नहीं होने जा रहे, क्योंकि सबके अनुमानों में काफी अंतर है। अलबत्ता एनडीए को अगर भविष्यवाणी के मुताबिक बहुमत मिल गया, तो लोग इसपर ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे कि किसका अनुमान पूरी तरह से गलत साबित हुआ। लेकिन, अगर एनडीए (NDA) बहुमत से दूर रह गया, तो एग्जिट पोल पर निश्चित तौर पर चौतरफा उंगलियां उठेंगी। ऐसे में उनके पास खुद का चेहरा बचाने के लिए कुछ खास तरह के बहाने होंगे। मसलन भ्रमित वोटरों को ज्यादा प्रिफरेंस मिल गया, एग्जीक्यूटिव्स ने जिन वोटरों से सवाल पूछे उसने जानबूझ कर गलत जवाब दिया, सैंपलिंग में एरर रह गया, आदि। एक और बहाना हो सकता है कि आम मतदाताओं की अपेक्षाओं के अनुसार राय दिखाने के लिए किया गया सैंपल का रैशनलाइजेशन, जिसमें शायद कुछ कमी रह गई।
अनुमानों पर इसलिए रहता है संदेह
अपने देश में एक-दो बार नहीं कई बार एग्जिट पोल के नतीजे गलत साबित हो चुके हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में ये अनुमान पूरी तरह गलत साबित हो चुके हैं। 2009 में भी यह वास्तविकता से काफी दूर रहे थे। 2014 में भी एक ही एग्जिट पोल ने आए परिणाम के मुताबिक ही सबसे सटीक अनुमान लगाया था। लेकिन, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से उसकी हवा निकल गई थी। इसलिए, गुरुवार तक इंतजार कीजिए और देखिए कि इस बार के एग्जिट पोल दुनिया भर के लोगों की नजरों में सच के कितने करीब होते हैं।