राज्यसभा में उपसभापति पद पर सत्ता पक्ष और विपक्ष में मुकाबले की तैयारी, कौन किसपर भारी
नई दिल्ली- 14 तारीख से संसद का मानसून सत्र शुरू होगा तो पहले ही दिन राज्यसभा में उपसभापति पद के लिए चुनाव होना है। एनडीए की ओर से पिछले उपसभापति और जेडीयू सांसद हरिवंश ने नामांकन भी दाखिल कर दिया है। उन्होंने राज्यसभा में सदन के नेता थावरचंद गहलोत और शिरोमणि अकाली दल के नेता नरेश गुजराल की मौजूदी में पर्चा दाखिल किया है। उनके प्रस्तावकों में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और एलजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान शामिल हैं। कांग्रेस की ओर से जो खबरें मिल रही हैं उसके मुताबिक पार्टी हरिवंश के मुकाबले में विपक्ष का साझा उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है। आइए समझते हैं कि अगर विपक्ष के उम्मीदवार ने भी नामांकन भर दिया तो पलड़ा किसका भारी होगा?
कांग्रेस उतारना चाहती है साझा विपक्षी उम्मीदवार
बुधवार को बीजेपी की अगुवाई वाले सत्ताधारी गठबंधन की ओर से राज्यसभा के उपसभापति के पद के लिए जेडीयू सांसद हरिवंश ने नामांकन दाखिल कर दिया। अगर जरूरत पड़ी तो 14 सितंबर को इस पद के लिए वोटिंग होगी और इसके लिए भाजपा ने अपने सभी राज्यसभा सांसदों को उस दिन पूरे दिन सदन में मौजूद रहने के लिए व्हिप भी जारी कर दिया है। लेकिन, कांग्रेस जिस रणनीति पर बढ़ रही है, उसके चलते उनके निर्विरोध चुना जा पाना मुश्किल लग रहा है। कांग्रेस ने मंगलवार को तय किया है कि वह विपक्ष की ओर से साझा उम्मीदवार उतारेगी। इसके लिए पार्टी ने डीएमके सांसद तिरुचि सिवा के नाम पर विचार किया है और उसकी कोशिश होगी कि इस नाम पर अपने सभी सहयोगियों का साथ ले ले। सूत्रों की मानें तो सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस की पार्लियामेंट्री स्ट्रैटजी ग्रुप ने यह फैसला किया है कि अगर संभव हो सके तो सत्तापक्ष के उम्मीदवार को 'कड़ी चुनौती' दी जानी चाहिए। बैठक में मनमोहन सिंह भी शामिल थे। कांग्रेस की ओर से संकेत ये भी हैं कि अगर डीएमके तैयार नहीं हुई तो वह अपना उम्मीदवार भी उतार सकती है, क्योंकि पार्टी इस पद पर निर्विरोध चुनाव होने देने के पक्ष में नहीं है।
राज्यसभा में कौन किसपर भारी ?
सोनिया गांधी का मंसूबा जरूर है कि कम से कम राज्यसभा में भाजपा के वर्चस्व को जरूर तोड़ा जाना चाहिए, लेकिन सदन में अल्पमत में होने के बावजूद समीकरण ऐसा बन रहा है, जिससे पार पाना कांग्रेस की पार्लियामेंट्री स्ट्रैटजी ग्रुप के लिए मुमकिन नजर नहीं आ रहा। 245 सदस्यों वाले सदन में मौजूदा सदस्य संख्या 244 है। उपसभापति पद के उम्मीदवार को जीत के लिए 123 सदस्यों का वोट चाहिए। सत्ताधारी गठबंधन के पास कुल सदस्य संख्या 116 है यानी उसे 7 वोटों की और दरकार है। सत्ताधारी गठबंधन के मैनेजरों को पूरा यकीन है कि बीजू जनता दल (9 सांसद), वाईएसआर कांग्रेस (6 सांसद), तेलंगाना राष्ट्र समिति (7 सांसद) के सांसदों के वोट हरिवंश को ही पड़ेंगे। बीजेपी नेताओं का कहना है कि उनके उम्मीदवार को 140 के आसपास वोट पड़ने वाले हैं। यह आंकड़ा असंभव भी नहीं है। आर्टिकल-370 और सीएए के मसले पर भी सरकार को गैर-एनडीए दलों का भरपूर समर्थन मिल चुका है। यानी आंकड़े यही बताते हैं कि कांग्रेस के नेता किसी साझा उम्मीदवार को उतारकर अपनी इच्छा पूरी कर भी लें, लेकिन उनको कुछ भी हाथ लगने की उम्मीद तो नहीं ही रखनी चाहिए।
पिछले सत्र में भी हरिवंश ही थे उपसभापति
राज्यसभा के उपसभापति के पद के लिए चुनाव संसद सत्र के शुरू होने के पहले ही दिन यानी 14 सितंबर को होना है, जिसके लिए गुरुवार को नामांकन दाखिल करने का अंतिम दिन है। यानी गुरुवार को पता चल जाएगा कि ये चुनाव निर्विरोध होगा या फिर वोटिंग की औपचारिकता पूरी करनी होगी। बता दें कि पिछले सत्र तक भी इस पद हरिवंश ही मौजूद थे। लेकिन, उनका राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने के बाद वह एकबार फिर से बिहार से चुनकर ऊपरी सदन में पहुंचे हैं। पिछली बार वो 2018 में कांग्रेस के उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद को हराकर राज्यसभा के उपसभापति बने थे। तब उनके पक्ष में 125 वोट और उनके विरोधी उम्मीदवार को सिर्फ 105 वोट मिले थे। उसके बाद से जितने भी राज्यसभा चुनाव होते गए हैं, एनडीए के सदस्यों की संख्या लगातार बढ़ती ही गई है और विपक्ष की सीटें खाली होती चली गई हैं।
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