अगर अखिलेश का नहीं मिलता साथ, तो इन 6 सीटों पर हार जाती मायावती की BSP
नई दिल्ली- मायावती ने उपचुनाव में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने का ऐलान करते समय दावा किया था, कि बहुजन समाज पार्टी (BSP) को उनके बेस वोटरों का समर्थन नहीं मिला। इसके लिए बसपा (BSP) सुप्रीमो ने बदायूं, फिरोजाबाद और कन्नौज में मुलायम (Mulayam Singh Yadav) के परिवार के लोगों की हार का उदाहरण दिया था। लेकिन, अगर यूपी (Uttar pradesh) में बीएसपी (BSP) को मिली 10 सीटों के नतीजों का विश्लेषण करें, तो बहनजी का दावा पूरी तरह से झूठा साबित हो जाता है। हमनें पाया है कि अगर इस लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीएसपी (BSP), समाजवादी पार्टी (SP) के साथ सीटों पर तालमेल नहीं करती, तो 10 में से कम से कम 6 सीटों पर उसकी हार निश्चित थी।
मायावती का दावा गलत
इस लोकसभा चुनाव के नतीजे भले ही मायावती (Mayawati) को उनकी उम्मीदों के मुताबिक नहीं लग रहे हों, लेकिन चुनाव परिणामों पर गहराई से नजर डालने से साफ हो जाता है कि महागठबंधन का फायदा सिर्फ उन्होंने ही उठाया है। अगर एसपी-बीएसपी (SP-BSP) अलग-अलग लड़ी होती तो सबसे ज्यादा नुकसान भी उन्हें ही उठाना पड़ता। सीटों के नजरिए से भी देखें तो 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा (BSP) के सबसे बेहतर प्रदर्शन के बाद उसका इसबार दूसरा सबसे बेहतर प्रदर्शन हुआ है। 2009 में जब यूपी (UP) में बसपा की सरकार थी और मायावती की लोकप्रियता अपने चरम पर थी तो उनकी पार्टी को 20 सीटें मिली थीं। जबकि, इसबार वह विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी है, फिर भी उसे 10 सीटें मिल गई हैं। 2014 में तो मायावती की पार्टी का खाता भी नहीं खुला था और उन्हें खुद राज्यसभा में घुसने के लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ी थी।
बिना गठबंधन के इन 6 सीटों पर हार जाती बीएसपी
सबसे खास बात ये है कि जिन 10 लोकसभा सीटों पर इसबार बीएसपी (BSP) जीती है, उनमें से 6 पर 2014 के चुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) दूसरे नंबर पर रही थी। यानी अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने बीजेपी (BJP) को हराने के लिए मायावती की पार्टी के साथ गठबंधन करने के मकसद से ही उन सीटों पर अपना जायज दावा छोड़ा था। दूसरे शब्दों में कहें, तो अगर इसबार भी यहां से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार होते, तो उनकी जीत भी पक्की थी। मसलन, पश्चिमी यूपी के बिजनौर (Bijnor) सीट को ही ले लीजिए। 2014 में यहां बीएसपी (BSP) के मलूक नागर (Malook Nagar) बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बाद तीसरे नंबर पर रहे थे। जबकि, नगीना (Nagina) की रिजर्व सीट पर सपा (SP) के यशवीर सिंह (Yashvir Singh), बसपा के गिरिश चंद्रा (Girish Chandra) से आगे रहे थे। इसबार यादव, जाट और मुसलमान तीनों के इकट्ठे वोट मिलने के कारण ही नागर और चंद्रा दोनों चुनाव जीत गए हैं। बिजनौर और नगीना वाला ही समीकरण अमरोहा (Amroha), श्रावस्ती (Shrawasti), लालगंज (Lalganj ) और गाजीपुर (Ghazipur) में भी काम कर गया है और यह सब महागठबंधन का संयुक्त वोट बहनजी की पार्टी में सफलता के साथ ट्रांसफर होने से ही संभव हुआ है।
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गलत दावे क्यों कर रही हैं मायावती?
मायावती (Mayawati)ने जिस तरह से अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) को गच्चा दिया है, उसको लेकर कई तरह की सियासी अटकलबाजियां हो रही हैं। सीबीआई से लेकर सीएम की कुर्सी तक और राज्यसभा में एंट्री तक सबके चर्चे हो रहे हैं। एक पॉलिटिकल एनालिस्ट अशोक त्रिपाठी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से उनके बारे में कहा है, "मायावती का अहंकार में सहयोगियों से अचानक अलग हो जाने का इतिहास रहा है। वह बीजेपी और एसपी के साथ पहले ऐसा कर चुकी हैं और अखिलेश के साथ फिर से ऐसा किया है, जिन्हें भनक तक नहीं लगी।" यानी उन्होंने एक तरह से समाजवादी पार्टी का इस्तेमाल ही किया है और फायदा उठाने के बाद उल्टे दोष अखिलेश यादव पर ही थोप रही हैं।
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