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'मैं अपने पति से भी ज़्यादा मोदी का आदर करती थी'

जीएसटी का सूरत के कपड़ा कारोबार पर असर. छलका कढ़ाई करने वाली महिलाओं का दर्द.

By BBC News हिन्दी
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सूरत कपड़ा व्यवसाय
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सूरत कपड़ा व्यवसाय

चालीस साल की कंचन सावलिया का घर हमेशा ही रंग बिरंगी साड़ियों और सजावटी कढ़ाईदार कपड़ों से भरा रहता है. अपने रोज़मर्रा के घरेलू कामों से फ़ारिग होकर कंचन साड़ियों पर कढ़ाई करने का काम शुरू कर देती हैं.

ये व्यवसाय वो अपने घर से चलाती हैं और उनके बच्चे टीवी देखते हुए उनका हाथ भी बंटाते हैं.

सूरत के तमाम रिहायशी इलाक़ों में इस तरह के दृश्य आम हैं. सूरत भारत का टेक्सटाइल हब है और यहां अधिकांश महिलाएं इस घरेलू उद्योग में लगी हुई हैं. इस तरह वो अपने परिवार का ध्यान भी रखती हैं और साथ ही पैसे भी कमाती हैं.

लेकिन जबसे वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी लागू हुआ है, सूरत में कंचन की तरह ही कढ़ाई का काम करने वाली अधिकांश महिलाओं के छोटे कारोबार प्रभावित हुए हैं.

साड़ी पर कढ़ाई कर पैसे कमाने वाली घरेलू महिलाओं को अब अपने रोज़मर्रे के ख़र्च में कटौती करनी पड़ रही है. कुछ को अपने पारिवारिक आयोजनों को स्थगित करना पड़ा है तो कुछ को ऊंची ब्याज़ दरों पर पैसे उधार लेने पड़ रहे हैं. कई महिलाएं बेरोज़गार हो गई हैं.

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सूरत कपड़ा व्यवसाय
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जीएसटी ने छीन ली आमदनी

सूरत में पुनागाम की मातृशक्ति सोसाइटी में रहने वाली लगभग हर महिला नाराज़ और पशोपेश में है और अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की जी-तोड़ मेहनत कर रही है. कंचन का परिवार भी इस मामले में अपवाद नहीं है.

उन्होंने बीबीसी गुजराती को बताया, "मैं नहीं जानती कि कहां से जीएसटी नंबर हासिल किया जाए. हालत ये हो गई है कि मेरे सारे पैसे ख़त्म हो गए हैं."

कंचन अपने परिवार में पैसा कमाने वाली एकमात्र सदस्य हैं. उनके पति के आकों की रोशनी नहीं हैं और चार सदस्यों वाले परिवार को पालने की ज़िम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है. उनकी 10 और 12 साल की दो बेटियां हैं और 9 साल का बेटा है.

बीबीसी गुजराती से बात करते हुए उन्होंने कहा कि अक्सर उन्हें केवल रोटी और अचार पर ही गुजारा करना पड़ता है क्योंकि सब्ज़ियां खरीदना उनके बस की बात नहीं.

अपनी बेटियों की मदद से वो साड़ी पर कढ़ाई करके एक दिन में 1,200 रुपये कमा लेती थीं. अब उनकी आमदनी प्रति दिन 300 रुपये तक गिर गई है क्योंकि साड़ी व्यापारी उन्हें थोक में माल नहीं दे रहे हैं.

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कंचन
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कपड़ा व्यापार का भट्टा बैठा

सूरत में बनने वाली लगभग हर साड़ी इन महिला कारीगरों के हाथ से होकर गुजरती है. सबसे पहले मिलों से ये साड़ी बाज़ार में व्यापारियों के पास पहुंचती है. यहां से ये फ़िनिशिंग वर्क के लिए कढ़ाई करने वाली महिलाओं के पास पहुंचती है.

नए कर ढांचे के मुताबिक, इन व्यवसायियों को जीएसटी नंबर लेना और अपनी कुल कमाई का पांच प्रतिशत टैक्स के रूप में देना अनिवार्य है.

लेकिन जबसे जीएसटी लागू हुआ है, सूरत के कपड़ा उद्योग में उत्पादन आधा हो चुका है और शहर के व्यापारी सरकार के इस कदम का विरोध करते रहे हैं.

मातृशक्ति सोसाइटी की महिलाएं, कढ़ाई के सामान और साड़ियों को पड़ोस के मिलेनियम टेक्सटाइल मार्केट से स्थानीय व्यापारी के जरिए हासिल करती हैं.

फ़ेडरेशन ऑफ़ सूरत टेक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मनोज अग्रावाल ने बताया कि कढ़ाई का स्थानीय काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

मनोज कहते हैं, "सूरत में लगभग 1.25 लाख कढ़ाई की मशीनें हैं और इसके अलावा महिलाओं की भी एक बड़ी संख्या है, जो अपने घरों से काम करती हैं. उनका 50 प्रतिशत काम घट गया है और कढ़ाई करने की इकाइयां बड़ी संख्या में बंद हो गई हैं."

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सूरत कपड़ा व्यवसाय
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मोदी की लोकप्रियता पर असर

एसोसिएशन के एक अनुमान के मुताबिक, क़रीब दो लाख महिलाएं कढ़ाई से अपना गुजारा चलाती हैं, लेकिन अब वे बेरोज़गार हैं.

इसमें मशीन और हाथ से की जाने वाली कढ़ाई में लगी सभी महिलाएं शामिल हैं.

सूरत में कपड़े के कम से कम 175 बड़े बाज़ार हैं, जो साड़ी पर कढ़ाई के कामों को आउटसोर्स करते हैं.

जीएसटी की वजह से, अब ये बाज़ार लगभग ठप पड़ गए हैं.

मातृशक्ति सोसाइटी में कम से कम 3300 घर हैं. इनमें अधिकांश पाटीदार रहते हैं. पाटीदारों की एक बड़ी संख्या गुजरात में नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रही है.

इस सोसाइटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर भी काफ़ी असर दिखता है.

55 साल की शांताबेन रानपेरिया आर्थिक संकटों से जूझ रही हैं. उन्होंने बीबीसी गुजराती को बताया, "मैं मोदी का आदर अपने पति से भी अधिक करती थी लेकिन जीएसटी के कारण हम बेरोज़गार हो गए हैं और अब मैं नहीं चाहती कि कोई भी बीजेपी कार्यकर्ता मेरे घर आए."

शांतिबेन पिछले दस सालों से कढ़ाई का काम कर रही हैं.

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मुक्ता सुरानी
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मुक्ता सुरानी

आमदनी आधी हुई

50 साल की मुक्ता सुरानी विधवा हैं और सूरत शहर में अपनी दो बेटियों और एक बेटे के साथ रह रही हैं. उनका बेटा एक स्थानीय दुकान में काम करता है और प्रति माह 2,000 रुपये तक कमाता है.

पिछले दिनों बीमारियों की वजह से सुरानी को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए पड़ोसियों को चंदा करना पड़ा.

वो पिछले 12 सालों से कढ़ाई के काम में लगी हुई हैं और अब वो कुछ और नहीं कर सकतीं.

वो बताती हैं, "जीएसटी से पहले मैं एक महीने में 12,000 रुपये तक कमा लेती थीं, लेकिन अब 4,500 रुपये भी कमाना भारी पड़ रहा है."

वो बीमारी से अभी अभी ठीक हुई हैं और काम की तलाश कर रही हैं.

अगर व्यापारियों की मानें तो सूरत का कपड़ा बाज़ार लगभग बैठ चुका है.

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English summary
I used to respect Modi more than my husband
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