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'मैंने 58 लाख रुपये देकर अपने परिवार के 10 सदस्यों को आईएस से छुड़ाया'

साल 2014 में जब तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने ख़ालिद के इलाके पर धावा बोला तो वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जान बचाकर भाग निकले.

लेकिन आईएस ने उनके परिवार के 19 सदस्यों को अपना ग़ुलाम बना लिया.

बीते चार सालों में ख़ालिद 90 हज़ार डॉलर (लगभग 58 लाख रुपये) खर्च करके अपने परिवार के 10 सदस्यों को आईएस की क़ैद से छुड़ाने में सफल हुए हैं.

By BBC News हिन्दी
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साल 2014 में जब तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने ख़ालिद के इलाके पर धावा बोला तो वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ जान बचाकर भाग निकले.

लेकिन आईएस ने उनके परिवार के 19 सदस्यों को अपना ग़ुलाम बना लिया.

बीते चार सालों में ख़ालिद 90 हज़ार डॉलर (लगभग 58 लाख रुपये) खर्च करके अपने परिवार के 10 सदस्यों को आईएस की क़ैद से छुड़ाने में सफल हुए हैं.

लेकिन आईएस की हार के बाद अब उन्हें अपने परिवार के उन लोगों को खोने का डर सता रहा है जो अब तक आईएस की कैद में ज़िंदा हैं.

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जब घर लौटीं शायमा...

बीते साल 26 सितंबर को उत्तरी इराक़ के कुर्द इलाके शरया में लाल रंग का एक पिक-अप ट्रक आकर रुका. 16 साल की शायमा इसी ट्रक में बैठकर तीन साल बाद अपने घर लौट रही थीं.

मैंने 58 लाख रुपये देकर अपने परिवार के 10 सदस्यों को आईएस से छुड़ाया

धूल भरे रास्तों से होकर गुजरता ये ट्रक जैसे ही शरया नाम के छोटे से गांव में पहुंचा तो वहां पर शायमा का इंतज़ार कर रहे उनके घरवालों ने उन्हें अपनी बाहों में भर लिया.

शायमा बीते तीन सालों से इस्लामिक स्टेट की कैद में एक गुलाम की ज़िंदगी जी रही थीं. उन्हें कई बार आईएस के लड़ाकों के बीच खरीदा-बेचा गया और इराक़ से लेकर सीरिया में मौजूद आईएस के गढ़ों में ले जाया गया.

अब उनके चाचा ख़ालिद तालो खुदुर अल-अली 16,000 डॉलर देकर उन्हें घर वापस ले आए हैं.

जब आईएस ने सिंजर पर बोला हमला

ख़ालिद उस दिन को याद करते हैं जब आईएस के चरमपंथियों ने उनके कस्बे सिंजर पर धावा बोला था.

2 अगस्त, 2014 की रात कोई भी सोने की स्थिति में नहीं था.

अपने अस्थाई घर में ज़मीन पर बिछे कालीन पर पाल्थी मारकर बैठे ख़ालिद कहते हैं, "दक्षिण में बाहरी इलाकों में कई झड़पें शुरू हो चुकी थीं और हम बेहद डरे हुए थे."

"अगली सुबह नाश्ते से पहले ही हमें बाहर से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें सुनाईं दीं. मैंने दरवाजा खोलकर लोगों से पूछा कि क्या हुआ है तो उन्होंने कहा 'आईएस यहां पर है.' सभी लोग डरे हुए थे. जिनके पास कारें थीं, वे कारों से पहाड़ों में पहुंच गए लेकिन मेरे पास कार नहीं थी."

ख़ालिद ने अपने जेनरेटर से 4 लीटर पेट्रोल निकालकर अपने पड़ोसी को दिया क्योंकि वह ख़ालिद, उनकी गर्भवती पत्नी और छह बच्चों को लिफ़्ट देने को तैयार हो गए थे.

लेकिन सिंजर पर्वत पर पहुंचने के बाद ख़ालिद को अहसास हुआ कि जल्दी निकलने के चक्कर में वह अपना लैपटॉप, व्यक्तिगत दस्तावेज़ और नकदी साथ लेना भूल गए हैं.

ख़ालिद की पत्नी इस बात के लिए तैयार नहीं थी कि ख़ालिद वापस अपने घर जाएं.

लेकिन वह अपने बेटे को भेजने के लिए तैयार हो गईं.

रास्ते में ख़ालिद के बेटे की मुलाक़ात अुने चाचा दाखील से हुई जो सिंजर से भाग रहे थे. इसके बाद दाखील का एक बेटा भी ख़ालिद के बेटे के साथ चल पड़ा.

इस तरह दाखील के बेटे की जान बच गई क्योंकि इस्लामिक स्टेट ने जल्द ही दाखील और उनके बाकी परिवार को पकड़ लिया.

लेकिन इस दौरान ये दो नौजवान उनकी नज़रों से ओझल रहे और आख़िरकार बचकर भागने में कामयाब हुए.

ख़ालिद बताते हैं, "पहाड़ पर जाने वाले लोग बच गए लेकिन जो भी नीचे रह गए थे, उन सभी लोगों को आईएस ने बंदी बना लिया."

वह याद करते हैं, "मैं अपने भाई को फॉोन करता रहा. फिर एक व्यक्ति ने ज़बाव दिया. उसने कहा, 'हम इस्लामिक स्टेट हैं.' इसके बाद उस शख़्स ने फ़ोन काट दिया.

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अपने बेटे और भतीजे से मिलने के बाद ख़ालिद को एक ट्रैक्टर मिला जिसके सहारे वह अपने परिवार को सीरियाई बॉर्डर की तरफ़ ले गए.

सिंजर छोड़ने के 24 घंटे बाद वह मोर्टार और स्नाइपर की गोलियों से बचते-बचाते किसी तरह उत्तर पूर्वी इलाके में स्थित शरया गांव पहुंचे. ये गांव इराक़ी कुर्दिस्तान का हिस्सा है.

ख़ालिद को अपने भाई के परिवार के बारे में जानकर बेहद दुख हुआ.

सिंजर के दूसरे अन्य निवासियों के तरह सभी लोग यज़ीदी समुदाय के सदस्य थे, जिन्हें आईएस शैतान का उपासक मानता है.

ऐसे में बंधकों के नसीब में ग़ुलामी और मौत ही नज़र आई.

इसके साल भर बाद ख़ालिद को स्मगलरों से जानकारी मिली कि आईएस बच्चों और महिलाओं को सीरिया भेज रहा है.

लेकिन इसके बाद चरमपंथियों ने आपस में खरीदने-बेचने का ये कारोबार शुरू कर लिया. उन्होंने मेसेजिंग ऐप्स में तस्वीरें भेजकर भाव जानना शुरू कर दिया.

राहत शिविर में एक नई शुरुआत

अब ख़ालिद इस कैंप में बायोलॉजी के अध्यापक हो गए हैं. इस कैंप में वो लोग रहते हैं जिन्होंने देश के अंदर ही अपने परिवारवालों को खो दिया है.

ख़ालिद को यहीं अहसास हुआ कि शायद इस रास्ते से वह अपने परिवार को वापस पा सकते हैं. इसके बाद उन्होंने स्मगलरों से मेलजोल बढ़ाना शुरू किया.

अगले कुछ सालों में ख़ालिद ने कई अजीबो-ग़रीब लोगों से मेलजोल बढ़ाया और आर्थिक संकटों का सामना किया.

लेकिन बीते साल जब इस्लामिक स्टेट का क़िला ढहा तब तक वह नब्बे हज़ार डॉलर देकर अपने परिवार के 10 लोगों को रिहा करा चुके थे.

इस्लामिक स्टेट की कैद से आज़ाद होने वाली शायमा आख़िरी पारिवारिक सदस्य थीं.

ख़ालिद बताते हैं कि उन्होंने चरमपंथियों से सीधे बातचीत करने की जगह दूसरे तत्वों की मदद से अपने परिवार को छुड़ाया.

ऐसे में उन्होंने ऐसे कई लोगों से संपर्क साधा जो सीरिया और इराक़ में काम कर रहे थे और अपनी सेवाओं के लिए पैसे लेते थे.

इस्लामिक स्टेट उनके कब्ज़े वाले क्षेत्रों से गुलामों को आज़ाद कराने वाले स्मगलरों की हत्या करा देते थे.

ख़ालिद को शायमा को छुड़ाने में तीन महीनों से ज़्यादा का समय लगा.

एक यज़ीदी समाजसेवी के मुताबिक़ साल 2014 में क़ैद किए गए 6500 यज़ीदियों में से 3150 यज़ीदी अभी भी लापता हैं.

वह मानते हैं कि आईएस अभी भी यज़ीदियों को इंटरनेट पर बेच रहे हैं.

अभी भी ऐसे किसी आंकड़े की पुष्टि नहीं हुई है कि आईएस की क़ैद में कितने लोग मारे गए हैं.

सिंजर में सामुहिक कब्रें पाई गई हैं.

ख़ालिद जीवविज्ञानी होने के नाते यज़ीदियों को अपनी सोच को एक तरफ़ रखते हुए शवों के डीएनए मिलान के लिए अपने सैंपल देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

आईएस की क़ैद से आज़ाद होने वाले दूसरे यज़ीदियों ने भी ख़ालिद से मिलते-जुलते रास्ते पर ही चलकर अपने परिवार को वापिस हासिल किया है.

दो एजेंटों की मदद से शायमा को वॉट्सऐप मेसेज़ भेजे गए जिसमें उसके परिवार के सदस्यों की तस्वीरें भी शामिल थीं. ऐसा इसलिए किया गया ताकि उसे आश्वासन मिल सके कि जल्द ही उसे भी सुरक्षित ढंग से आज़ाद कराया जा सकेगा.

इसके बाद ख़ालिद ने इस डील के लिए 16,000 डॉलर जुटाए और इंतज़ार किया.

इसके बाद ख़ामोशी छा गई. तीन दिन तक उसे कोई जानकारी नहीं मिली.

वह कहते हैं, "हमें पता चला कि हमारे मध्यस्थों की आईएस के साथ मुठभेड़ हो गई है जिसके बाद उन्हें जेल में डालकर प्रताड़ित किया गया."

इसके बाद मध्यस्थों के एक दूसरे समूह ने बचाव अभियान का काम अपने हाथों में लिया.

ख़ालिद बताते हैं, "इराक़ी मध्यस्थ ने दोहुक जाकर पैसा निकालने के लिए कहा. एक हफ़्ते बाद उसी व्यक्ति ने बताया कि बचाव अभियान सात दिन बाद चलाया जाएगा. मैं एक हफ़्ते तक सो नहीं सका."

अपने परिवार को छुड़ाने के लिए ज़रूरी धनराशि जुटाना ख़ालिद के लिए सबसे कठिन काम था.

उदाहरण के लिए, उन्हें अपनी साली, बहन लैला और उसके बच्चों को छुड़ाने के लिए 38,500 डॉलर खर्च करने पड़े. इसके बाद अपने बेटे की पत्नी को छुड़ाने के लिए 29,000 डॉलर चुकाने पड़े.

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ख़ालिद के पास कहां से आएइतने पैसे?

ख़ालिद कहते हैं, "मेरे पास बिलकुल पैसे नहीं थे, मैंने अपने दोस्तों से पैसे उधार लिए. कुछ लोगों ने 50 डॉलर दिए तो कुछ लोगों ने 100 डॉलर. पार्लियामेंट में एक दोस्त डिप्टी पद पर कार्यरत हैं जिन्होंने मुझे 3,000 डॉलर दिए. मेरी साली के भाई ने जर्मनी से भी पैसे भेजे. इसी तरह मैंने पैसे जुटाए."

इस तरह ख़ालिद ने 90,000 डॉलर देकर अपने परिवार के 10 सदस्यों को छुड़ाया है जो सभी महिलाएं और लड़कियां हैं. बस उनकी बहन लैला का छोटा बेटा अब तक वापस नहीं आ सका है.

हालांकि, ख़ालिद ने मध्यस्थों को धन देकर (जो कि आख़िरकार आईएस को पैसे दे देते थे) चरमपंथ की सहायता करने का आरोप झेलने का जोख़िम उठाया है.

लेकिन अपने परिवार को वापस लाने के लिए उनके पास दूसरा विकल्प नहीं था.

स्थानीय प्रशासन को पता था कि वह और दूसरे यज़ीदी परिवार क्या कर रहे थे.

अगर उन्हें सीरिया के रास्ते पैसा ट्रांसफ़र कराना होता तो सुरक्षा बलों से इजाज़त लेनी होती थी.

उत्तरी इराक़ में इसी प्रयोजन के लिए बनाए गए एक ऑफ़िस से ख़ालिद को कुछ पैसा वापस भी मिला.

आईएस की हार के बाद परिवार के अन्य सदस्यों की तलाश और भी मुश्किल हो गई है.

ये ख़ालिद के भाई दाखील, उनके चार बेटे, इन बेटों की एक पत्नी और उसके दो बच्चे और लैला के पति हैं.

इस बात की आशंका है कि ये लोग आईएस द्वारा मारे जा चुके हैं या हवाई हमलों का शिकार हुए हैं.

लेकिन ख़ालिद सोचते हैं कि कुछ लोग आईएस के चरमपंथियों के साथ कैंपों या जेलों में हो सकते हैं.

ख़ालिद कहते हैं कि कुछ भी निश्चित रूप से कहना नामुमकिन है.

वह बताते हैं, "ये संभावनाएं हैं लेकिन कुछ भी 100 फ़ीसदी पक्का नहीं है. अगर वे मर भी चुके हैं तो हमें डीएनए टेस्ट से इसकी पुष्टि करनी चाहिए. जब एक ग़ुलाम बनाया गया व्यक्ति मरता है तो हम इसके बारे में कुछ भी नहीं जानते और ये जानना बेहद मुश्किल है. मैं उन्हें देखना चाहता हूं, चाहें वे मर ही क्यों न गए हों. मैं इसकी पुष्टि करना चाहता हूं."

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English summary
I redeemed 10 members of my family from IS by paying Rs 58 lakhs
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