Hyderabad election:भाजपा का 'भाग्य' चमका, क्या बदलेगा तेलंगाना का अगला निजाम ?
नई दिल्ली- बिहार विधानसभा चुनाव की तरह ही एक बार फिर से हैदराबाद के निकाय चुनाव में भी एग्जिट पोल के नतीजों से रुझानों में काफी अंतर नजर आ रहा है। हालांकि, बैलट पेपर की गिनती हो रही है, इसलिए रुझानों और परिणामों में काफी उलट-फेर की गुंजाइश अंतिम वक्त तक रहेगी। लेकिन, इतना तो तय है कि हैदराबाद को 'भाग्यनगर' बनाने का रास्ता दिखाने वाली भारतीय जनता पार्टी को दक्कन में 'भाग्य' चमकने की झलक मिल चुकी है। क्योंकि, 2016 में 150 सदस्यों वाले ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में भाजपा के पास सिर्फ 4 सीटें थीं, लेकिन इस बार रुझानों में उसे इससे कहीं ज्यादा सीटें मिलने की संभावना नजर आ रही है। खासकर तब जो हाई-वोल्टेज प्रचार के बावजूद वोटिंग महज 46 फीसदी हुई और आईटी फिल्ड के लोग और प्रवासीयों ने पोलिंग बूथ जाने की जहमत ही नहीं उठाई।
हाई-वोल्टेज प्रचार का भाजपा को मिला फायदा
ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में भाजपा ने जो हाई-वोल्टेज प्रचार किया और जो मुद्दे उठाए, उसने हैदराबाद के वोटरों को काफी हद तक प्रभावित किया है, कम से कम इस बात से तो कोई इनकार नहीं कर सकता। वैसे रुझानों में कई बार ऐसा भी लगा कि पार्टी अप्रत्याशित रूप से सदन में बहुमत का आंकड़ा भी पार कर लेगी। हालांकि, अगर ऐसा होता भी तो भी उसका मेयर बन पाना लगभग नामुमकिन सा ही था। क्योंकि, सिर्फ 150 प्रतिनिधि ही सीधे निगम के लिए चुनकर आते हैं, जबकि, 50 के करीब विधायक-पार्षद-सांसद पदेन और दूसरे नामित सदस्य भी होते हैं। इस तरह से निगम के सदस्यों की प्रभावी संख्या 200 के करीब हो जाती है; और इस संख्या के हिसाब से बहुमत से तय होता है। राज्य में सरकार टीआरएस की है और एआईएमआईएम के साथ उसका कभी प्रत्यक्ष और कभी परोक्ष तौर पर तालमेल बना रहता है। ग्रेटर हैदराबाद निगम क्षेत्र से कुल 24 विधायक चुने जाते हैं, जिसमें भाजपा के पास सिर्फ 1 विधायक है।
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दक्कन में भाजपा का 'भाग्य' चमका
आखिरी नतीजे आने में अभी वक्त लगेगा, लेकिन इतना जरूर तय लग रहा है कि बीजेपी को जितनी सीटें मिलने की उम्मीद जगी हैं, वह एग्जिट पोल के अनुमानों से ज्यादा है। एग्जिट पोल में उसे अधिकतम 21 सीटें दी जा रही थीं। ये अनुमान ज्यादातर हैदराबाद के बाहरी इलाकों के लिए थी। अब पूरे चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा कि इसने पुराने हैदराबाद में ओवैसी को कितना नुकसान पहुंचाया है या फिर वह अपना किला बचा पाने में कामयाब रहे हैं। क्योंकि, चाहे हैदराबाद को भाग्यनगर करने की बात हो या फिर निजाम-नवाब की संस्कृति पर प्रहार, भाजपा ने माहौल गर्म करने के लिए एआईएमआईएम को ही निशाना साधा था। अगर कम वोटिंग के बावजूद बीजेपी ने अपना वोट शेयर बढ़ाया है तो तय है कि उसकी किस्मत का रास्ता इस दक्षिणी राज्य में भी खुल चुका है, लेकिन यह ओवैसी से ज्यादा केसी राव के लिए खतरे की घंटी है।
भाजपा ने टीआरएस को 'ट्रेलर' दिखाया?
तेलंगाना राष्ट्र समिति के लिए भाजपा की ओर से पैदा हुई चुनौती सिर्फ ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के लिए नहीं है। यह तो सिर्फ एक ट्रेलर है। भाजपा असल तैयारी तो 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए कर चुकी है। जिसमें पिछले महीने डुब्बाका सीट पर विधानसभा का उपचुनाव जीतकर पार्टी ने सिर्फ अपनी उभरती ताकत का इजहार किया था और हैदराबाद में उसकी शॉर्ट फिल्म दिखा दी है। जहां तक एआईएमआईएम की बात है तो वह न तो पहले कभी पुराने हैदराबाद से बाहर थी और ना ही भविष्य में उसकी ऐसी कोई ऐसी संभावना नजर आ रही है।
भाजपा की एंट्री ने बदली तेलंगाना की सियासत
पिछले कुछ चुनावों को देखें तो लगता है कि कांग्रेस ने जैसे तेलंगाना की राजनीति में हथियार डाल दिए हैं। इसका परिणाम ये हुआ है कि प्रदेश की राजनीति दो पार्टियों के बीच केंद्रित होती जा रही है। इसका परिणाम ये हो रहा है कि आर्थिक रूप से संपन्न रेड्डी समाज जो परंपरागत तौर पर कांग्रेस के साथ था और टीआरएस में उपेक्षित महसूस कर रहा है, वह धीरे-धीरे भाजपा में अपनी संभावनाएं तलाशने लगा है। किशन रेड्डी को हाई प्रोफाइल गृहमंत्रालय में अमित शाह ने अपना डिप्टी बनाकर रेड्डियों को यही बताने की कोशिश की है कि उनका ख्याल रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी आ चुकी है। दूसर ओर क्रिश्चियन भी कांग्रेस का साथ छोड़कर धीरे-धीरे टीआरएस से पूरी तरह से सट चुके हैं। दलित भी अभी केसी राव के प्रभाव में हैं, लेकिन उस समाज में भी बीजेपी को अपने विस्तार की पूरी संभावना दिख रही है।
2023 में बदलेगा तेलंगाना का निजाम ?
वैसे लगता है कि ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव के आखिरी नतीजे राज्य की सत्ताधारी टीआरएस के पक्ष में ही जाएंगे। उसके पास बायलॉज के तहत 31 सदस्यों को बैकडोर से घुसाने का भी तगड़ा इंतजाम है, इसलिए सीटें कम भी पड़ीं तो अपने मेयर का इंतजाम हो जाएगा। लेकिन, भाजपा ने वहां जो दस्तक दी है, वह के चंद्रशेखर राव की राजनीति को एक चेतावनी की तरह है। भविष्य में भी तेलंगाना का निजाम बने रहने के लिए उन्हें जल्द ही एक और चुनौती का सामना करना है। वह है नागार्जुन सागर विधानसभा का उपचुनाव, जहां इसी हफ्ते उसके सीटिंग एमएलए नोमुला नरिसिंम्हा के निधन से उनकी सीट खाली हो गई है।