भारत अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने में विफल- Human Right Watch
नई दिल्ली। देश में जिस तरह से दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमले के मामले सामने आए हैं उसपर मानवाधिकार हनने के मामलों पर नजर रखने वाली संस्था ह्युमेन राइट वाच ने कहा है कि सरकार इस तरह की घटनाओं को रोकने में विफल रही है, इन मामलों की जांच में ढिलाई बरती गई। वर्ष 2017 में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय पर हुए हमलों में कुल 10 लोगों की मौत हुई है। मानवाधिकार को लेकर वर्ल्ड रिपोर्ट 2018 ने अपनी रिपोर्ट पेश की है , जिसमे कहा गया है कि कई वरिष्ठ भाजपा नेता लोगों के बीच इस हिंदुओं की वरिष्ठता व अति राष्ट्रवाद को बढ़ावा देते हुए देखे गए।
10 लोगों की जान गई
अतिवाद हिंदू संगठनों, जिसमे में कई का ताल्लुक भाजपा के साथ है, इन लोगों ने मुसलमानों व अल्पसंख्यक समुदाय पर काफी भड़काऊ भाषण दिए, जिसकी वजह से लोगों में अफवाह फैली, जिसके बाद लोगों को गोहत्या के आरोप में मौत के घाट उतार दिया गया। इन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की बजाए पुलिस ने पीड़ितों के खिलाफ ही मामला दर्ज किया और गो हत्या पर पाबंदी लगा दी, 2017 में इस तरह की कम से कम 38 घटनाएं हुई , जिसमे 10 लोगों को मार दिया गया।
लोगों पर देशद्रोह सहित कई मामले दर्ज किए गए
ह्युमेन राइट वाच की साउथ एशिया डायरेक्टर मीनाक्षी गांगुली ने कहा कि भारतीय संस्थाओं ने इन अल्पसंख्यक समुदाय को बचाने के लिए कुछ नहीं किया, जिसकी वजह से उनपर हमले काफी बढ़े। इस तरह के भविष्य में हमलों को रोकने के लिए गंभीर कदम उठाने की जरूरत है, हिंसा में लिप्त लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारतीय संस्थाओं ने लोगों का शोषण किया और उनपर फर्जी मामले दर्ज किए, इनपर देशद्रोह, मानहानि के मामले दर्ज किए गए। इसमे एक्टिविस्ट, पत्रकार, शिक्षाविद, सरकार की आलोचना करने वाले भी शामिल हैं, जिनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए।
मीडिया पर भी दबाव
ह्यूमन राइट वाच की रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्रकारों और मीडिया पर कानूनी कार्रवाई की धमकी दी गई और उनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए, जिससे उनपर लगाम लगाई जा सके। पिछले वर्ष नवंबर माह तक 60 जगहों पर इंटरनेट पर पाबंदी लगाई गई, जिसमे से 27 बार जम्मू कश्मीर में यह पाबंदी लगाई गई। सरकार ने फॉरेन कॉट्रिब्यूशन रेग्युलेशन का भी इस्तेमाल किया जिससे कि विदेश से एनजीओ को मिलने वाली फंडिंग को रोका जा सके, इसके जरिए मानवाधिकार संस्थाओं, एनजीओ पर लगाम लगाने की कोशिश की गई। यहां तक कि कानून में बदलाव के बाद भी महिला यौन शोषण के खिलाफ महिलाएं व लड़कियां शिकायत करने से डरती हैं, क्योंकि उनके साथ पुलिस स्टेशन पर सही व्यवहार नहीं किया जाता है, इन पीड़िताओं के साथ पुलिस स्टेशन व अस्पताल में सही व्यवहार नहीं किया जाता है।
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