सैन्य तानाशाह से सजा-ए-मौत तक, कैसा रहा जनरल परवेज मुशर्रफ का सफर
नई दिल्ली- पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ को वहां की एक स्पेशल कोर्ट ने सजा-ए-मौत सुनाई है। खुद मुशर्रफ अभी दुबई में निर्वासन का जीवन जी रहे हैं और इलाजे के नाम पर पिछले तीन वर्षों से मुल्क से गायब हैं। अदालत उन्हें पहले ही भगोड़ा घोषित कर चुकी थी। हालांकि, मुशर्रफ की दलील रही है कि उन्हें बीमारी की हालत में देश से बाहर रहने की वजह से सुनवाई का पूरा मौका नहीं मिला है। वह खुद को बेकसूर भी बताते रहे हैं। आइए जानते हैं कि एक सैन्य तानाशाह से लेकर पाकिस्तान की सत्ता की कमान सबसे ज्यादा वक्त तक अपने हाथों में रखने वालों से एक मुशर्रफ का सजा-ए-मौत तक का सफर कितना उतार-चढ़ाव भरा रहा है।
सैन्य तानाशाह के रूप में मुशर्रफ
परवेज मुशर्रफ ने 1999 में पाकिस्तान के तत्कालीन नवाज शरीफ सरकार का तब तख्तापलट करके वहां की सत्ता पर कब्जा किया, जब प्रधानमंत्री नवाज श्रीलंका की सरकारी यात्रा पर गए हुए थे। वे इस्लामाबाद लौटकर आते उससे पहले ही उनकी सत्ता छीन ली गई थी। मुशर्रफ खुद को पाकिस्तान का सैन्य तानाशाह घोषित कर चुके थे। तब पाकिस्तान में बहुत बड़ी संख्या में लोग इस तख्तापलट को अर्थव्यवस्था के लिए चौपट करने वाले प्रशासन से छुटकारा के तौर पर देख रहे थे। 11 सितंबर, 2001 में अमेरिका में हुए अल-कायदा के आतंकी हमले के बाद अमेरिका का साथ देकर मुशर्रफ ने खुद को उसके बेहद करीबी बना लिया। इसके बाद मिली अमेरिकी आर्थिक मदद से उन्होंने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में तेजी लाने में कामयाबी हासिल की। उनके इसी रोल ने उन्हें आगे पाकिस्तान का राष्ट्रपति बनाने में सहायता पहुंचाई।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में मुशर्रफ
2001 में मुशर्रफ ने पाकिस्तानी आर्मी चीफ रहते हुए ही खुद को राष्ट्रपति भी घोषित किया और 2002 में एक विवादित जनमत संग्रह के जरिए पूरे पांच साल के लिए खुद को स्थायी तौर पर राष्ट्रपति पद पर स्थापित कर लिया। लेकिन, जब वादे के मुताबिक जब राष्ट्रपति बनने के बाद आर्मी चीफ पद छोड़ने की बारी आई तो वे साफ मुकर गए। इस तरह से वे 2001 से 2008 तक पाकिस्तान पर शासन करने वाले देश के सबसे लंबे कार्यकाल वाले शासको में से एक बन गए। हालांकि, इस दौरान वे तब तक आर्मी चीफ के पद पर बने रहे जब तक नवंबर, 2007 में वे रिटायर नहीं हो गए। दरअसल, आर्मी चीफ के पद से हटने के बाद से ही उनकी सियासी ताकत का अंत होना भी शुरू हो गया।
मुशर्रफ के बुरे दिन की शुरुआत
2007 तक पाकिस्तान में सब कुछ मुशर्रफ के मुताबिक ही होता रहा। लेकिन, जैसे ही उस साल उन्होंने चीफ जस्टिस को पद से हटाने की कोशिश की उनके खिलाफ देशव्यापी विरोध शुरू हो गया। हालात इतने बिगड़े कि आखिरकार उन्होंने इमरजेंसी की घोषणा कर दी और संविधान को निलंबित कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने पाकिस्तान के सैकड़ों नेताओं और जजों को भी नजरबंद करना शुरू कर दिया कई को नौकरियों से बर्खास्त कर दिया। दिसंबर, 2008 में बेनजीर भुट्टो की हत्या ने माहौल को पूरी तरह से उनके खिलाफ कर दिया और वह अलग-थलग पड़ते चले गए। 2008 के फरवरी में हुए चुनावों में उनकी सहयोगी पार्टियों की बुरी तरह से हुई हार ने उन पर सत्ता से बाहर होने का दबाव बढ़ा दिया। आखिरकार जब नई गठबंधन सरकार में उनके महाभियोग का रास्ता साफ हुआ तो उन्होंने 2008 के अगस्त में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद इन्होंने लंदन में कुछ वक्त खुद से निर्वासित का जीवन बिताया।
देशद्रोह के आरोपी और मुल्क से भगोड़ा मुशर्रफ
2013 में नवाज शरीफ की सरकार ने देश पर संवैधानिक- आपातकाल थोपने, सैकड़ों जजों को बर्खास्त करने और बड़ी अदालतों के कई जजों को नजबंद करने के आरोपों में उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दायर किया। हालांकि, केस के अपीलों में फंसे होने के चलते सुनवाई में देरी हुई और उन्होंने मार्च, 2016 में इलाज कराने के नाम पर पाकिस्तान छोड़ दिया। बाद में जब एंटी-टेररिज्म कोर्ट में सुनवाई के दौरान वह उपस्थित नहीं हुए और कई समन का जवाब नहीं दिया तो उन्हें अदालत ने भगोड़ा घोषित कर दिया और कोर्ट ने फेडरल इंवेस्टिगेशन एजेंसी को उनकी गिरफ्तारी का आदेश जारी कर दिया। हालांकि, उन्होंने स्पेशल कोर्ट के फैसलों को चुनौती दी और अपनी गैर-मौजूदगी में ट्रायल रोकने की भरपूर कोशिश की। उन्होंने लाहौर हाई कोर्ट से ये भी गुजारिश की थी कि जब तक वह अदालत में हाजिर होने लायक स्वस्थ न हो जाएं इस केस की कार्रवाई बंद कर दी जाए। इस दौरान वे अपने ऊपर लगाए आरोपों को खारिज करते रहे।
सजा-ए-मौत की सजा पाने वाले मुशर्रफ
पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह और पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ अभी भी इलाज के नाम पर दुबई में खुद से निर्वासित जीवन जी रहे हैं। उनकी गैर-मौजूदगी में ही अदालत ने उन्हें पाकिस्तान के संविधान के आर्टिकल-6 के उल्लंघन का दोषी माना है। अदालत ने उनकी ओर से दी गई बेहुनाही की सारी दलीलों को खारिज कर दिया है। अदालत ने उन्हें देशद्रोही मानते हुए सजा-ए-मौत सुना दी है। पाकिस्तान में सजा-ए-मौत का एक ही कानूनी तरीका है- फांसी। और अब वहां के पूर्व तानाशाह फांसी पाने वाले दोषियों की कतार में खड़े हो गए हैं। हालांकि, अभी भी वे दुबई में ही मौजूद हैं । पिछले महीने एक विडियो मैसेज में उन्होंने दुबई के एक अस्पताल की बेड से कहा था कि उन्हें सुनवाई का उचित मौका नहीं मिल रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक पाकिस्तान में 2017 में 60 लोगों को फांसी दी गई थी और 2018 में यह संख्या घटकर 14 रह गई थी।