अगर हों ये पांच क्वालिटी तो झुग्गी वाली लड़की भी बन सकती है आईएएस
जेएनयू की स्टूडेंट उम्मुल खेर ने यह साबित कर दिया कि जिंदगी में कितनी भी कठिन परिस्थितियां हो, अगर हौसला हो तो शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद इंंसान बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है।
दिल्ली। हर साल देश का सबसे प्रतिष्ठित करियर मानी जाने वाली भारतीय सिविल सेवा यानि आईएएसस की परीक्षा का रिजल्ट आने के बाद कई सक्सेस स्टोरी सामने आती हैं। किसी गरीब का बेटा सफल होता है तो कोई बेटी कठिन परिस्थितियों से लड़ती हुई इस परीक्षा को पास कर मिसाल कायम करती है। इस बार की आईएएस परीक्षा में 28 साल की ऐसी लड़की सफल हुई है जिसके सामने शारीरिक चुनौतियों के साथ-साथ, पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां भी थीं लेकिन वह इन सबसे डरी नहीं। दिल्ली में झुग्गियों से जिंदगी की शुरुआत करनेवाली उम्मुल खेर ने इन सब चुनौतियों का मुकाबला किया और साबित किया कि एक झुग्गी वाली लड़की भी बन सकती है आईएएस, अगर उनमें ये खूबियां हो तो। आइए जानते हैं वो पांच खूबियां जिनकी वजह से उम्मुल खेर ने यह ऊंचा मुकाम पाया।
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1. परिस्थितियों से निडर होकर लड़ना
उम्मुल की जिंदगी में हर तरफ कठिन परिस्थितियां रहीं। राजस्थान के एक कंजर्वेटिव गरीब मुस्लिम परिवार में जन्मीं उम्मुल की जिंदगी दिल्ली की झुग्गी बस्ती से शुरू हुई थी। परिवार दिल्ली आकर बस गया था और पिता गली में ठेले पर कपड़े बेचते थे। घर में कोई पढ़ा-लिखा नहीं था और कोई पढ़ानेवाला भी नहीं था। यही नहीं उम्मुल शारीरिक तौर भी फिट नहीं है। उनको ऐसी बीमारी है जिसमें हल्की चोट से भी हड्डियों के टूटने का खतरा रहता है। उम्मुल के घरवाले उसको आठवीं के बाद पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। घर में सौतेली मां थी। लेकिन उम्मुल पढ़ना चाहती थीं। उन्होंने आठवीं के बाद घर छोड़ दिया, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगीं और खुद अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। उम्मुल जीवन की हर चुनौतियों से लड़ीं और डीयू से ग्रेजुएशन करने के बाद पीजी के लिए जेएनयू चली गईं जहां से फिर वो आईएएस जैसी कठिन परीक्षा को पास करने में सफल रही।
2012 में उम्मुल एक बड़े हादसे का शिकार हुई जिसमें उनकी हड्डियों में 16 फ्रैक्चर हुए और एक साल तक वह ह्वीलचेयर पर रहीं। उनको आठ ऑपरेशन से गुजरना पड़ा। उम्मुल जीवन की किसी भी परिस्थिति से कभी डरी नहीं।
2. निराशा का नामोनिशान नहीं
उम्मुल को देखकर कोई कह नहीं सकता है कि 28 साल की उम्र में उन्होंने जीवन में कितना कुछ झेला है। उनका मुस्कुराता चेहरा इस बात की गवाही देता है कि बेहद चुनौतीपूर्ण जीवन जीने के बावजूद उम्मुल ने निराशा को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। उन्होंने हर सिचुएशन को सहजता से झेला। झुग्गियों में बिताई गई जिंदगी पर भी उम्मुल को कई अफसोस नहीं होता। अपनी शारीरिक अक्षमताओं की वजह से छोटे कद की उम्मुल एक खास तरह के जूते पहनती है। वह झुग्गियों से निकलकर जापान जैसे देश की सैर कर चुकी है। जेएनयू में पढ़ाई के दौरान उनको यह मौका मिला। निराश करने वाले पलों में भी उम्मुल ने आशा के साथ काम किया। जब मां-बाप ने आठवीं के बाद पढ़ाने से मना किया तो खुद अपने दम पर पढ़ाई करने की ठानी और घर से निकल गई। बच्चों को पढ़ाकर कमाना शुरू किया और पढ़ाई भी जारी रखी।
3. अहम मौकों पर ठोस फैसला
उम्मुल की सफलता में अहम मौकों पर लिए गए उनके ठोस फैसलों का बड़ा योगदान है। आठवीं के बाद पढ़ाई के लिए घर छोड़ना एक बड़ा फैसला था। मां-बाप उसे पढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। एक ट्रस्ट की मदद से उम्मुल ने 12वीं की परीक्षा 91 प्रतिशत अंकों से पास की। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में एडमिशन लिया और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर जीविका चलाती रही।
मनोविज्ञान में ग्रेजुएशन के बाद इस विषय में पीजी करना चाहती थीं लेकिन इसके लिए उनको हॉस्पिटल में ज्यादा समय देना पड़ता जिससे वो ट्यूशन नहीं पढ़ा पातीं। इस अहम मोड़ पर भी उन्होंने विषय बदलने का फैसला लिया और इंटरनेशनल रिलेशन में मास्टर्स डिग्री के लिए जेएनयू चली गईं। यहां उन्होंने जेआरएफ निकाला जिससे उनको हर महीने 25,000 रुपए मिलने लगे। यहीं से एम फिल के बाद वो पीएचडी कर रही हैं। इसी बीच आईएएस की परीक्षा भी पास कर ली।
4. लक्ष्य पर हमेशा नजर
उम्मुल पढ़ाई कर जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल करना चाहती थीं इसलिए उन्होंने हमेशा लक्ष्य को साधा। परिजनों ने पढ़ाई पर रोक लगाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने लक्ष्य को पाने के लिए घर छोड़ा। लक्ष्य के रास्ते में आर्थिक समस्या आई तो ट्यूशन पढ़ाया। वह आगे बढ़ती गई और आखिरकार उसने बड़ी सफलता हासिल की। ग्रेजुएशन, पीजी के बाद नेट जेआरएफ और उसके बाद अब पीएचडी तक का सफर उन्होंने तय किया है। पढ़ाई को लक्ष्य बनाकर चलने की वजह से वह झुग्गी से निकलकर बड़े सरकारी ओहदे तक पहुंच गई।
5. सफलता के पीछे अथक मेहनत
बिना मेहनत के कोई मुकाम हासिल नहीं होता। उम्मुल की सफलता की कहानी में भी उसके निरंतर किए गए प्रयासों का अहम योगदान है। वह लगातार पढ़ाई करती रहीं और इसी के दम पर बच्चों को पढ़ाकर आजीविका भी कमाती रहीं। लगातार परिश्रम की वजह से वह डीयू और जेएनयू जैसे संस्थानों में जगह बनाने में सफल रहीं और आखिरकार सिविल सेवा में भी कामयाबी हासिल कर उन्होंने साबित कर दिया कि परिस्थितियां कैसी भी हों, झुग्गी वाली लड़की भी आईएएस बन सकती है।
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