भारत ने 'लेहमन ब्रदर्स जैसा महासंकट' कैसे टाला
पिछले नौ साल में ये दूसरी बार है जब भारत सरकार ने ऐसी बर्बाद होती कंपनी को संभालते हुए उसका नियंत्रण अपने हाथों में लिया है.
इससे पहले साल 2009 में आईटी कंपनी सत्यम का एक कॉरपोरेट घोटाला सामने आया था. उस वक्त यूपीए सरकार ने इस कंपनी का नियंत्रण अपने हाथों में लिया था. अब बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार नौ साल बाद वही कर रही है.
भारत की अर्थव्यवस्था के लिए मौजूदा वक्त बेहद नाज़ुक है और इस नाज़ुक परिस्थिति के केंद्र में है एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी 'इंफ़्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फ़ाइनेंशियल सर्विस (IL&FS)'.
12.8 अरब डॉलर के डिफॉल्ट वाली कंपनी आईएलएंडएफएस को बचाने के लिए सरकार को बेहद दुर्लभ कदम उठाना पड़ा. सोमवार को भारत सरकार ने कंपनी को संभालते हुए आईएलएंडएफएस के बोर्ड को हटाया और इसकी जगह छह लोगों के बोर्ड को सरकार की ओर से नियुक्त किया गया जिसके नेतृत्व की ज़िम्मेदारी भारत के टॉप के बैंकर उदय कोटक को सौंपी गई है.
कई जानकार इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी घटना के तौर पर देख रहे हैं. उनका मानना है कि ऐसी बड़ी वित्तीय कंपनियों का धराशायी होना अर्थव्यवस्था में कोहराम मचा सकता है.
आईएल एंड एफ़एस के डिफॉल्ड का असर शेयर बाज़ारों पर भी नज़र आया और संदेह जताया जाने लगा कि ये लेहमन ब्रदर्स जैसा संकट न साबित हो जाए. दस साल पहले अमरीका का निवेश बैंक लेहमन ब्रदर्स तबाह हो गया था. इस आर्थिक घटना ने विश्व स्तर पर शेयर बाज़ारों को धड़ाम कर दिया था और इसे 1929 की विश्वव्यापी मंदी के बाद सबसे बड़ा वित्तीय संकट माना गया था.
आख़िर ये शुरु कैसे हुआ?
इस मामले को समझने के लिए साल 1987 में जाना होगा. ये वो दौर था जब देश में इंफ़्रास्ट्रक्चर तेज़ी से बढ़ रहा था. सड़क से लेकर पानी तक भारत के शहरों को जोड़ा जा रहा था ताकि ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सके.
उस वक़्त कई बैंक एक साथ आए और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी इंफ़्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फ़ाइनेंशियल सर्विस का गठन हुआ. इसे बनाने का उद्देश्य ना सिर्फ़ वित्तीय सहायता मुहैया कराना था बल्कि इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को तकनीकी मदद मुहैया कराना भी था.
बैंक और इस कंपनी का सबसे बड़ा अंतर ये था कि बैंकों को जमा रखने या इंटर-बैंकिंग सेवाओं पर भरोसा करने की अनुमति होती है, लेकिन यह गैर-बैंकिंग फर्म छोटी और लंबी अवधि के बांड के माध्यम से पैसा कमाती हैं.
इसके अलावा इसमें संस्थागत निवेशक भी होते हैं जो इनमें निवेश करते हैं. IL&FS की सबसे बड़ी निवेशक बीमा कंपनी एलआईसी है. एलआईसी के पास इसके 25.3 फ़ीसदी शेयर, जापान की ओरिक्स कॉपोरेशन के पास 23.5 फ़ीसदी शेयर और आबू धाबी के पास इसके 12.6 फ़ीसदी शेयर हैं.
इस कंपनी को विभिन्न सरकारी प्रोजेक्ट मिलते रहे. कई सालों में इसने अपनी 169 सहयोगी कंपनियां खड़ी कर लीं. इनके पास निवेश की एक लंबी लिस्ट थी. 31 साल तक इस कंपनी का काम बेहतरीन तरीके से चलता रहा, लेकिन अब अचानक इसके तारे ग़र्दिश में हैं.
कई रूके हुए प्रोजेक्ट और भुगतान के कारण आईएलएंडएफएस की हालत ख़स्ता हो गई है. इस समूह का रियल स्टेट का बिज़नेस बुरी हालत में हैं. वित्तीय सहायता देने वाली कंपनी अब ख़ुद वित्तीय संकट में है. कर्ज़ में डूबती कंपनी ने निवेशकों की नींद उड़ा दी.
कितना बड़ा रिस्क?
सरकारी बैंक इस वक़्त 150 अरब डॉलर के कर्ज़ में डूबे हैं. गैर-बैंकिंग कंपनियों ने कॉरपोरेट कर्ज़दारों के अंतर को कम किया है.
ख़ासकर अमरीकी फ़ेडरल रिजर्व दर में बढ़त ने इस उभरते बाज़ार से निवेशकों को दूर किया है. यही वजह है कि कर्ज़ की दर बढ़ रही है. जिसके कारण गैर-बैंकिंग कंपनियां बढ़ी हैं.
रॉयटर्स के मुताबिक भारत में लगभग 11,400 गैर -बैंकिंग कंपनियों की संयुक्त बैलेंस शीट 304 अरब डॉलर है और इनका कर्ज़ पोर्टफ़ोलियो लगभग दोगुना बढ़ा है. लेकिन आईएलएंडएफ़सी के वित्तीय संकट ने इस तरह की कंपनियों में निवेश करने वालों को हिला कर रख दिया है.
मंदी के साए से निकले शेयर बाज़ार
पूर्व बैंकर अनंत नारायण कहते हैं, ''एनबीएफ़सी के नक़द, संपत्ति की गुणवत्ता और क्रेडिट रेटिंग को लेकर कई ऐसे सवाल हैं जो असहज करते हैं.''
इसका सबसे बड़ा ख़तरा उन हज़ारों निवेशकों पर है जो म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं क्योंकि एनबीएफसी में ऐसे ही पैसे बड़ी मात्रा में लगाए जाते हैं.
एक अध्ययन के मुताबिक एनबीएफसी में म्यूचुअल फ़ंड निवेश बीते चार सालों में 2.5 गुना बढ़ा है. जानकारों का मानना है कि आएलएंडएफ संकट इस निवेश को एक चेतावनी देगा.
शेयर बाज़ार में भी इन दिनों बेहद अफ़रा-तफ़री का माहौल है. बीते हफ़्ते कई लिस्टेड एनबीएफ़सी जैसे दीवान हाउसिंग, इंडिया बुल्स जैसी कंपनियों पर दबाव रहा.
क्या इस संकट को नज़रअंदाज़ किया गया?
तीन महीने पहले ही एक पहली चेतावनी आईएलएंडएफ़एस को लेकर सामने आई जिस पर ग़ौर नहीं किया गया.
आईएलएंडएफ़एस के चैयरमैन रवि पार्थसारथी ने अपने पद से स्वास्थ्य का हवाला देते हुए इस्तीफ़ा दे दिया, इसके बाद इसकी रेटिंग गिरी. अगस्त महीने में इक़रा और मूडी जैसी संस्थाओं ने इसकी रेटिंग AAA से घटाकर AA+ कर दी थी. सितंबर महीने में ये रेटिंग फ़िर से रिवाइज़ की गई.
आर्थिक विश्लेषक प्रांजल शर्मा कहते हैं, ''सरकार, नियामक और बोर्ड ने इस संकट को न्योता दिया. कई चेतावनियां आईं लेकिन इसकी जांच नहीं कराई गई. उम्मीद है कि इस संकट से सबक लेते हुए आगे नियमक सुधार करें. ''
अब आगे क्या होगा?
हालात को देखते हुए सोमवार को भारत सरकार नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल पहुंची और आईएलएंडएफ़एस के प्रबंधन को हटाने का फ़ैसला लिया.
वित्तमंत्री अरूण जेटली ने ट्वीट किया, ''निर्णायक सरकार ने आईएलएंडएफ़एस को बचाने के लिए ज़रूरी कदम उठाया है. ''
सरकार के द्वारा नियुक्त किए गए छह लोग निम्न हैं.
उदय कोटेकः एमडी-सीईओ कोटेक महिंद्रा बैंक
जीएन बाजपेयीः सेबी के पूर्व चेयरमैन
मालिनी शंकरः डायरेक्टर जनरल, शिपिंग
विनित नायरः एक्जीक्यूटिव वीसी, टेक महिंद्रा
गिरिश चंद्र चतुर्वेदीः नॉन एक्जीक्यूटिव चेयरमैन, आईसीआईसीआई बैंक
नंद किशोरः पूर्व कैग अधिकारी
https://twitter.com/FinMinIndia/status/1046727318922645504
पिछले नौ साल में ये दूसरी बार है जब भारत सरकार ने ऐसी बर्बाद होती कंपनी को संभालते हुए उसका नियंत्रण अपने हाथों में लिया है.
इससे पहले साल 2009 में आईटी कंपनी सत्यम का एक कॉरपोरेट घोटाला सामने आया था. उस वक्त यूपीए सरकार ने इस कंपनी का नियंत्रण अपने हाथों में लिया था. अब बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार नौ साल बाद वही कर रही है.
ये बोर्ड कंपनी का पुर्नगठन करेगी और कोशिश होगी की मौजूदा प्रोजेक्ट का काम पूरा हो. इसके अलावा जांच भी शुरू की जाएगी ताकि प्रबंधन से जुड़ी खामियां सामने आ सकें.
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