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अयोध्या और राम मंदिर की दक्षिण भारत में कितनी धमक

राम मंदिर को लेकर बीजेपी की राजनीति दक्षिण भारत के राज्यों में उतनी क़ामयाब होती क्यों नहीं दिखती.

By सलमान रावी
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अयोध्या और राम मंदिर की दक्षिण भारत में कितनी धमक

आम धारणाओं के बावजूद इस बार राम मंदिर के शिलान्यास के कार्यक्रम को लेकर दक्षिण भारत के लोगों में भी काफ़ी जिज्ञासा रही. ये माना जाता रहा है कि राम मंदिर विवाद से दक्षिण भारत के राज्यों का ज़्यादा लेना देना नहीं रहा.

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जानकार कहते हैं कि भले ही राम मंदिर का मुद्दा तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल में राजनीतिक मुद्दा नहीं बन पाया, लेकिन कर्नाटक में इस मुद्दे को लेकर भारतीय जनता पार्टी के अभियान ने उसे राजनीतिक लाभ दिया. हालांकि दूसरे दक्षिण भारतीय राज्यों में आस्था और राजनीति के बीच हमेशा से एक रेखा स्पष्ट देखी जाती रही.

सामाजिक अभियान का असर

बेंगलुरु में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार इमरान क़ुरैशी के अनुसार वर्ष 1990 में जब राम मंदिर का अयोध्या में शिलान्यास किया गया था, उसके बाद कर्नाटक में भी सांप्रदायिक माहौल बिगड़ा. राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा राजनीतिक भी हो गया और इसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को मिला जिसने वर्ष 2008 में पहली बार कर्नाटक में सरकार बनाने में सफलता हासिल की.

लेकिन पूरे कर्नाटक में इसको लेकर ज़्यादा राजनीतिक ध्रुवीकरण इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि इस राज्य में बसवन्ना जैसे गुरुओं द्वारा चलाए गए सामजिक अभियानों की वजह से उतनी उग्रता नहीं देखने को मिली, जितनी उत्तर भारत में दिखाई देती है.

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उनका कहना है कि मैसूर के महाराज भी प्रगतिवादी रहे. भारत में किसी गाँव में अगर सबसे पहले बिजली पहुँची, तो वो कर्नाटक के गाँव हैं, जहाँ वर्ष 1901 में ही इसकी शुरुआत हो गई थी, जब महाराज ने जल विद्युतीकरण की योजना शुरू की थी.

इसके अलावा कर्नाटक के नवायती मुसलमान जैन धर्मावलम्बियों से मिलती जुलती प्रथाएँ अपनाए हुए रहे. जैसे सूर्यास्त से पहले अन्न ग्रहण करने की प्रथा.

दूसरी तरफ़ केरल के तटवर्तीय इलाक़ों में भी संस्कृति की विभिन्नता रही. त्रावणकोर की महारानी ने पोलियो की वैक्सीन सबसे पहले ख़ुद को लगवाई ताकि वैक्सीन को लेकर लोगों के मन में डर और भ्रांतियाँ दूर हो जाएँ. उसी तरह त्रावणकोर के महाराज ने पिछड़े वर्ग और मुसलामानों के लिए शिक्षा को मुफ़्त कर दिया था.

वरिष्ठ पत्रकार बीआरपी भास्कर ने बीबीसी हिंदी को बताया कि इस राज्य में भी लोगों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द पहले से ही रहा है. इसका मुख्य कारण वो बताते हैं कि केरल में हुए वायकोम सत्याग्रह, केरल का पुनर्जागरण काल और त्रावणकोर राज घराने का निष्पक्ष होना.

भास्कर के अनुसार केरल से भी पुजोप्रांत शिलाएँ अयोध्या भेजी गईं. लेकिन धार्मिक माहौल ही बना रहा.

धर्म का असर तो है पर उग्रता नहीं

दक्षिण की युवतियाँ
Getty Images
दक्षिण की युवतियाँ

केरल को 'भगवान का अपना देश' भी कहा जाता है. पूरे दक्षिण भारत को सुंदर और भव्य मंदिरों के लिए जाना जाता रहा है.

संघ परिवार के राजीव तुली कहते हैं कि ये कहना ग़लत है कि दक्षिण भारत के पाँचों प्रांतों में भगवान राम की जन्मभूमि को लेकर कोई उत्साह नहीं रहा. उनका कहना है कि जितने भव्य मंदिर हैं, सब दक्षिण भारत में स्थित हैं. तुली कहते हैं कि भगवान राम को विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है. कोई भी हिंदू इस बात से इनकार नहीं कर सकता.

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अलबत्ता अलग-अलग भगवानों के अलग-अलग अवतारों की पूजा दक्षिण भारत में होती है. जिनमें से एक तिरुपति स्थित बालाजी भगवान का भी मंदिर है, जिन्हें भी विष्णु का ही अवतार माना गया है.

हालांकि राजीव तुली कहते हैं कि उन्हें इस बात का आश्चर्य ज़रूर है कि जब केरल के सबरीमाला मंदिर को लेकर विवाद चल रहा था, तो उत्तर भारत में इसको लेकर बहुत ज़्यादा प्रतिक्रया नहीं देखने को मिली.

तेलंगाना के भद्राचलम, केरल के त्रिसूर और तमिलनाडु के वदावुर में भव्य राम मंदिर हैं. ये मंदिर उन्ही स्थानों पर बनाए गए हैं, जहाँ के बारे में कहा जाता है कि यहीं से होकर भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान और उनकी सेना वनवास काल के दौरान गुज़री थी.

ये बात और है कि तमिलनाडु में पेरियार का समाज में बदलाव के अभियान और द्रविड़ आंदोलन के चलते धार्मिक रूप से उग्रता नहीं देखी गई.

राजनीति और धर्म अलग-अलग

अयोध्या और राम मंदिर की दक्षिण भारत में कितनी धमक

बात अगर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की जाए, तो यहाँ धार्मिक रूप से राम मंदिर के निर्माण के लिए आम लोगों में समर्थन है. लेकिन जहाँ तक राजनीति का सवाल है, तो बीबीसी तेलुगू सेवा के संपादक जीएस राममोहन का कहना है उन इलाक़ों में ही भारतीय जनता पार्टी अपनी थोड़ी पैठ इस मुद्दे को लेकर बनाने में क़ामयाब हुई है, जहाँ कांग्रेस कमज़ोर पड़ गई या फिर वो इलाक़े, जो कभी हैदराबाद के निज़ाम के अधीन हुआ करते थे.

उनका कहना था, "अभी भी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में हिंदुत्व का कार्ड नहीं चल पाया, क्योंकि यहाँ लोग राजनीति और धर्म को अलग-अलग रूप में देखते हैं. उनका कहना है कि तेलुगू भाषी इलाक़ों में चुनाव के मुद्दे सामजिक कल्याण की योजनाओं और घोषणाओं के अलावा जाति के इर्द गिर्द घूमते रहते हैं. हिंदुओं को गर्व ज़रूर होगा कि राम मंदिर का शिलान्यास हो पाया है. लेकिन इस पर इन इलाकों में राजनीति मुश्किल ही है."

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यही हाल तमिलनाडु जैसे राज्य का भी है, जहाँ राजनीति और धर्म के बीच भी 'लक्ष्मण रेखा' दिखाई पड़ती है.

दक्षिण भारतीय राज्यों में सिनेमा का बड़ा प्रभाव है, इसलिए क्षेत्रीय सिनेमा के नायकों को लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रियता मिलती रही.

जानकारों का कहना है कि वो दक्षिण भारत ही था, जहाँ से भगवान राम आसियान देशों तक गए. चाहे वो कंबोडियो हो, इंडोनेशिया या मलेशिया हो. इंडोनेशिया में तो राम लीला का भी आयोजन किया जाता है.

राजीव तुली कहते हैं कि जितने भी धार्मिक स्थल और मंदिर हैं, चाहे वो बद्रीनाथ में हों या काशी विश्वनाथ में हों, इन महत्वपूर्ण पूजा स्थलों में जो मुख्य पुजारी हैं वो दक्षिण भारत के ही हैं. काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर में भी जो मुख्य पुजारी हैं, वो भी दक्षिण भारत के ही हैं.

BBC Hindi
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English summary
How threatening is Ayodhya and Ram temple in South India
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