स्वच्छ भारत अभियान पर यूएन की मुहर, बचाई लाखों बच्चों की जिंदगियां
नई दिल्ली। भारत में स्वच्छ भारत अभियान का सबसे बड़ा फायदा बच्चों को हुआ है। संयुक्त राष्ट्र की तरफ से हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के आंकड़े खुद इस बात की गवाही दे रहे हैं। भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की संख्या 2017 में घटकर 802,000 हो गई जो दो साल पहले लगभग 1 मिलियन थी। यानी करीब 200,000 जिंदगियां बचाई गई हैं। पीने के लिए साफ पानी, हाथ धोने, खाद्य सुरक्षा, शौचालय का इस्तेमाल और खुले में शौच से मुक्ति आदि कई ऐसे कारण हैं जिनके कारण बच्चों की मौत की संख्या 2017 में कम हुई है। यूएन द्वारा बुधवार को जारी रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया है।
सरकार का लक्ष्य है कि गांवों में लोग स्वच्छता को लेकर अधिक से अधिक जागरुक हों ताकि संक्रमण जैसी बीमारियों पर काबू पाया जा सके। गांवों में गंदगी और खराब पानी के कारण 88% बच्चों को बचपन में दस्त हो जाता है, जो उन्हें कुपोषण की ओर ले जाता है, प्रतिरोधक क्षमता को कम करता है और अक्सर वे निमोनिया और तपेदिक जैसे घातक संक्रमण का शिकार हो जाते हैं। 6 नए टीकों के कारण बचपन में दस्त आदि को रोकने में कामयाबी मिली है।
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टीकाकरण कार्यक्रम के कारण इस प्रकार के रोगों और संक्रमण से होने वाली मौत की संख्या में कमी आई है। लेकिन सबसे बड़ा अंतर स्वच्छ भारत अभियान के कारण आया है जहां, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत की संख्या 2015 के प्रति 1000 जन्मे बच्चों पर 43 से घटकर 2016 में 39 पर आ गई। ये एक साल में सबसे बड़ा सुधार रहा जो स्वच्छ भारत अभियान के कारण संभव हो सका है।
ओडीएफ-जिलों में बेहतर हो रहा जीवन स्तर
स्वच्छ भारत अभियान के जरिए खुले में शौच से मुक्ति का देशव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। स्वच्छ भारत अभियान के शुरू होने के बाद साल 2014 में 85.4 मिलियन शौचालय गांवों में बने हैं। 718 में से 459 जिले खुले में शौच मुक्त घोषित किए जा चुके हैं। जिन जिलों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है, वहां बच्चों को दस्त, संक्रमण आदि की बीमारियां कम होती हैं, उनकी तुलना में जो बच्चे नॉन-ओडीएफ जिलों में रहते हैं। इसको लेकर राजस्थान, यूपी, महाराष्ट्र, बंगाल और कर्नाटक के 10 जिलों में एक सर्वे भी किया गया।
ओडीएफ-जिलों में अधिक बच्चे स्वस्थ
साल 2017 में पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा 4000 बच्चों पर कराए गए सर्वे के मुताबिक, पिछले दो हफ्तों में 10 बच्चों में से एक में दस्त के लक्षण पाए गए, जिसमें लड़कों (11.8%) और लड़कियों (11.5%) का अनुपात लगभग समान था। पांचों राज्य में ओडीएफ जिलों में बच्चे अधिक स्वस्थ थे। इस सर्वेक्षण के पहले दो सप्ताह के दौरान गैर-ओडीएफ राज्यों में 13.9% की तुलना में ओडीएफ राज्यों में 9.3% बच्चों में डायरिया का प्रभाव पाया गया था।
कर्नाटक में दस्त का प्रसार सबसे कम 4.7% था, जबकि मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा 16.1%, वहीं, सर्वे के दौरान, ये भी पाया गया है कि जल प्रदूषण और खाने में गंदगी का बड़ा कारण खुले में शौच रहा है। संक्रमित लोगों के मल में परजीवी कीड़े दूषित मिट्टी, पानी और भोजन के माध्यम से दूसरों को शिकार बना लेते हैं।
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इस सर्वे के दौरान ये भी पाया गया है कि ओडीएफ जिलों में 62.5 फीसदी माताएं भी गैर-ओडीएफ जिलों (57.5 फीसदी) की तुलना में स्वस्थ हैं। घरों में पाइप वाटर का इस्तेमाल करने वालों में 14.7 फीसदी डायरिया के मामले जबकि, 85.3 फीसदी मामले अन्य स्रोतों से पानी का इस्तेमाल करने वालों में पाए गए। डॉक्टरों का कहना है कि साबुन से हाथ न धोने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। साबुन से हाथ धोने के कारण बैक्टिरिया का संचार रुक जाता है जिसके कारण, डायरिया आदि के मामलों में कमी आती है। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि आंगनवाड़ी केंद्रों पर भी पीने का पानी, हाथ धोने के लिए साबुन और शौचालय आदि के इस्तेमाल पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि संक्रमण रोका जा सके।
ओडीएफ प्लस अभियान पर सरकार का जोर
सरकार का लक्ष्य ओडीएफ प्लस अभियान के तहत ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को उनके स्वास्थ्य के बारे में संवेदनशील बनाना है। सरकार चाहती है कि गांव पंचायत स्तर पर सैनिटरी पैड बनाने की यूनिट होनी चाहिए। पंचायतों और स्वास्थ्य विभाग के बीच समन्वय के जरिए हम इस स्थिति में और भी सुधार कर सकते हैं। शौचालय को साफ रखने और सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फैलने से रोकने में इसके जरिए मदद मिलेगी। IIPH के डॉक्टर मवालंकर कहते हैं, 'गरीबी और सामाजिक बहिष्कार संक्रमण रोकने में बड़े बाधक हैं। शौचालय निर्माण के साथ-साथ हमें सामाजिक ढ़ांचे को मजबूत करने की जरूरत है।'