कैसे अयोध्या में मस्जिद को दे दी हमारी जमीन, 'पंजाबी' बहनों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में ठोका दावा
Ayodhya news:अयोध्या में राम जन्मभूमि(Ram Janmabhoomi) पर बनी बाबरी मस्जिद (Babri Mosque) के बदले पास के धन्नीपुर गांव (Dhannipur village) में बन रही मस्जिद की जमीन को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है। दो बहनों ने इलाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court)में दावा ठोका है कि उस जमीन पर उनका मालिकाना हक है और सरकार ने गलत तरीके से यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड (Uttar Pradesh Sunni Central Waqf Board )को उनकी जमीन मस्जिद बनाने के लिए दे दी है। बता दें कि पिछले 26 जनवरी को ही उस जमीन पर पौधा लगाने के साथ ही मस्जिद निर्माण की दिशा में औपचारिक कदम बढ़ाया गया है। मस्जिद निर्माण का काम इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (Indo Islamic cultural foundation) ट्रस्ट कर रहा है।
नई मस्जिद की जमीन पर भी विवाद शुरू
9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाकर सदियों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद का मसला सुलझा दिया था। लेकिन, बाबरी मस्जिद (Babri Mosque)के नाम पर अदालत के फैसले से ही बन रही दूसरी मस्जिद भी जमीन विवाद में उलझती दिख रही है। दिल्ली में रहने वाली दो बहनों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court)में याचिका देकर उस जमीन पर मालिकाना हक जताया है। यह जमीन अयोध्या शहर के पास ही धन्नीपुर गांव (Dhannipur village)में सरकार की ओर से मस्जिद निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड (Uttar Pradesh Sunni Central Waqf Board ) को आवंटित की है। यह याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow bench of Allahabad HC)में दायर की गई है और माना जा रहा है कि अदालत इसपर 8 फरवरी को सुवाई करेगी।
दिल्ली की दो बहनों ने किया जमीन पर अपना दावा
हाई कोर्ट में यह रिट याचिका रानी कपूर उर्फ रानी बालूजा और रमा रानी पंजाबी की ओर से दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि 1947 में देश के बंटवारे के वक्त उनके पिता ग्यान चंद्र पंजाबी भारत आ गए थे और फैजाबाद (Faizabad) जिले (अब अयोध्या जिला) में बस गए थे। दोनों बहनों का दावा है कि उनके पिता को धन्नीपुर गांव में नजूल विभाग (Nazul Department) ने पांच साल के लिए 28 एकड़ जमीन आवंटित की थी, जो उसके बाद भी उनके कब्जे में रही। बाद में उनका नाम रेवेन्यू रिकॉर्ड में शामिल कर लिया गया। हालांकि, बाद में उनका नाम रिकॉर्ड से हटा दिया गया था, जिसके खिलाफ उनके पिता ने अयोध्या के एडिश्नल कमीश्नर के पास अपील की थी और दावे के मुताबिक उन्हें इसकी मंजूरी मिल गई थी।
मस्जिद को जमीन ट्रांसफर करने पर रोक लगाने की मांग
याचिकाकर्ताओं का ये भी दावा है कि चकबंदी अधिकारी (consolidation officer)ने चकबंदी के दौरान फिर से उनके पिता का नाम रिकॉर्ड से हटा दिया। इसके बाद चकबंदी अधिकारी के आदेश के खिलाफ अयोध्या सदर के बंदोबस्त अधिकारी (Settlement Officer ) के सामने अपील की गई, लेकिन उस पर विचार किए बिना ही अधिकारियों ने उनकी 28 एकड़ जमीन में से 5 एकड़ जमीन वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए दे दी। याचिकाकर्ताओं ने हाई कोर्ट से गुजारिश की है कि बंदोबस्त अधिकारी के पास विवाद के निपटारे तक सुन्नी वक्फ बोर्ड को जमीन ट्रांसफर करने पर रोक लगाई जाए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मिली है जमीन
बता दें कि 9 नवंबर, 2019 के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से राम जन्मभूमि का मालिकाना हक भगवान रामलला को सौंप दिया था और साथ ही सरकार को आदेश दिया था कि वह यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को बाबरी मस्जिद के बदले दूसरी मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ जमीन अयोध्या में ही उपलब्ध करवाए। यह जमीन अयोध्या से करीब 25 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गांव में बनाई जा रही है, जिसके निर्माण का जिम्मा इंडो-इस्लामिक कल्चरल फाउंडेशन (Indo Islamic cultural foundation) के पास है। 26 जनवरी को ही यहां पर मस्जिद निर्माण की औपचारिक शुरुआत तिरंगा फहरा कर और पौधे लगाकर की गई है। अब बड़ा सवाल है कि जिस तरह से इस जमीन पर एक नया विवाद शुरू हुआ है, उसपर अदालत का रुख क्या होता है?