महाराष्ट्र में ऑक्सीजन संकट की समस्या कितनी गंभीर
राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ऑक्सीजन की कमी को देखते हुए इसकी आपूर्ति के लिए कुछ दिन पहले केंद्र सरकार से मदद मांगी है.
नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान सबको ऑक्सीजन की अहमियत का पता चल रहा है. कोरोना संक्रमितों को नियमित तौर पर ऑक्सीजन की आपूर्ति एक चुनौती बनी हुई है. यह समस्या पूरे देश की है लेकिन महाराष्ट्र में यह कहीं ज़्यादा गंभीर है. राज्य के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने इसी सप्ताह फ़ेसबुक पर आम लोगों से बात करते हुए राज्य में ऑक्सीजन की कमी पर चिंता जताई थी. उद्धव ठाकरे ने यह भी कहा कि ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए उन्होंने केंद्र सरकार से मदद मांगी है. ऐसे में कई सवाल उठते हैं, जैसे महाराष्ट्र में ऑक्सीजन आपूर्ति की स्थिति कितनी गंभीर है? आपूर्ति में क्या समस्याएं हैं?
महाराष्ट्र में ऑक्सीजन की कितनी कमी?
महाराष्ट्र में हर रोज 1200 टन ऑक्सीजन तैयार होता है. इस ऑक्सीजन का इस्तेमाल मेडिकल और औद्योगिक कामों में होता है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के मुताबिक़, मौजूदा समय में कोविड संक्रमण की स्थिति को देखते हुए 100 प्रतिशत ऑक्सीज़न का इस्तेमाल मेडिकल सुविधाओं के लिए हो रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि 950 से 1,000 टन ऑक्सीजन का इस्तेमाल प्रतिदिन हो रहा है.
इतने बड़े स्तर पर ऑक्सीजन उत्पादन के बाद भी राज्य के कई हिस्सों में ऑक्सीजन की कमी बनी हुई है. राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है. ऐसे में आने वाले दिनों में ऑक्सीजन की ज़रूरत और बढ़ेगी. विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले सप्ताह में महाराष्ट्र को कम से कम हर रोज़ 1,500 से 1,600 टन ऑक्सीजन की ज़रूरत होगी. ऑक्सीजन की इस ज़रूरत को पूरा कर पाना इतना आसान नहीं है.
15 अप्रैल को महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा, "जिस अस्पताल में 50 से ज्यादा बेड हैं, वहां ऑक्सीजन प्लांट लगाया जाएगा, ताकि अस्पताल ऑक्सीजन के मामले मे आत्मनिर्भर हो सके. राज्य सरकार दूसरे राज्यों से ऑक्सीजन लाने का प्रयास कर रही है. कुछ व्यक्ति और निजी संस्थान भी इस मामले में मदद के लिए आगे आए हैं." हालांकि ऑक्सीजन की ज़रूरत को पूरा कर पाना इतना आसान भी नहीं है.
ऑक्सीजन का उत्पादन कैसे होता है?
वायुमंडल में ऑक्सीजन की प्रचुरता है, जहां क़रीब 21 प्रतिशत ऑक्सीजन है. ऐसे में आपको यह जानकर अचरज हो सकता है कि फिर इसे तैयार कैसे किया जाता है. दरअसल ऑक्सीजन उत्पादन करने का वैज्ञानिक तरीका काफी जटिल है. इसे सामान्य तौर पर समझें तो दबाव से हवा को तरल बनाया जाता है. तरल हवा के घटकों को अलग करना आसान होता है. इससे शुद्ध और तरल ऑक्सीजन मिलती है.
यह तरल ऑक्सीजन रंग में नीला और बेहद ठंडा होता है. इसका तापमान शून्य से 183 डिग्री सेल्सियस नीचे होता है. हालांकि इसके तापमान को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होता है पर भंडारण और आसानी से ढोने के लिए गैसों को तरल रूप में ही रखते हैं. ऑक्सीजन के मामले में इसे तरल रूप में ही सिलिंडर में रखा जाता है. भारत में ऑक्सीजन का उत्पादन करने वाली क़रीब 500 फैक्ट्रियां हैं. लेकिन यहां बनने वाली सभी ऑक्सीजन का इस्तेमाल मेडिकल क्षेत्र में नहीं होता है.
कोविड संक्रमण से पहले भारत में तैयार होने वाले कुल ऑक्सीजन का महज 15 प्रतिशत ही मेडिकल क्षेत्र में इस्तेमाल होता था. बाक़ी के ऑक्सीजन का इस्तेमाल तेल शोधक संयंत्रों, लौह इस्पात उद्योग, कार फ़ैक्ट्री और भट्टियों में किया जाता था. पिछले साल लॉकडाउन के दौरान जब सारे इंडस्ट्री बंद हो गए थे, तब अस्पतालों को ऑक्सीजन की आपूर्ति हो रही थी. लेकिन लॉकडाउन हटने के बाद इंडस्ट्री में ऑक्सीजन की मांग बढ़ गई. हालांकि प्राथमिकता अस्पतालों को दी जाती रही है.
शुरुआती अनुमान के आधार पर माना जा रहा है कि देश के ऑक्सीजन उत्पादन का आधा हिस्सा मेडिकल ज़रूरतों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. अब जबकि मांग काफ़ी बढ़ गई है, ऐसे में तत्काल नयी ऑक्सीजन फैक्ट्री लगाना संभव नहीं है. ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने के साथ यह सवाल भी है कि इसे एक जगह से दूसरी जगह कैसे पहुंचाया जाए?
ऑक्सीजन को फैक्ट्रियों से टैंकरों के ज़रिए दूसरी जगहों पर पहुंचाया जाता है. कई जगहों पर टैंकरों को सीधे अस्पताल लाया जा रहा है. फिर उसे सभी बेड तक पाइप लाइन के ज़रिए पहुंचाया जाता है. कुछ जगहों पर ऑक्सीजन को छोटे सिलिंडरों में भरकर उसकी आपूर्ति अस्पतालों में होती है. ऐसी जगहों पर सिलिंडरों को बदलने और फिर से भरने की चुनौती बनी रहती है.
इस आलेख को पढ़ते हुए यह अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता कि वास्तव में इस प्रक्रिया को अपनाते हुए कितने तरह के नियमों का पालन किया जाता है. तरल ऑक्सीजन ज्वलनशील होती है, इसलिए टैंकर दुर्घटनाग्रस्त न हो, इसे लेकर काफी सावधानी बरती जाती है. इसके लिए विशेष प्रकार के क्रायोजेनिक टैंक का इस्तेमाल होता है. ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैस मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के मुताबिक़, भारत में ऑक्सीजन ढोने वाले ट्रकों की संख्या केवल 1,500 के आसपास है.
महाराष्ट्र में ऑक्सीजन ढुलाई की क्या समस्या है?
महाराष्ट्र में तालोजा, पुणे और नागपुर में ऑक्सीजन का उत्पादन होता है. इन जगहों से ऑक्सीजन को दूसरी जगहों पर पहुंचाया जाता है. ऑक्सीजन फैक्ट्री में एक टैंकर को भरने में करीब तीन घंटे का समय लगता है. यही वजह है कि फैक्ट्रियों में खाली टैंकर कतार में लगे रहते हैं.
ऑक्सीजन से भरने के बाद टैंकर तेजी से नहीं चल सकते. ऐसे टैंकरों पर 40 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड लिमिट रहती है. सड़कों पर रात में होने वाले हादसों को देखते हुए इन्हें रात के दस बजे के बाद नहीं चलाया जाता है. महाराष्ट्र के पुणे में, प्रशासन ने ऑक्सीजन टैंकर को एंबुलेंस का दर्जा दिया है. इससे ट्रैफिक जाम की स्थिति में वह प्राथमिकता से आगे बढ़ सकता है. इन प्रावधानों के बाद भी स्थानीय स्तर पर ऑक्सीजन टैंकर चलाने वाले योगेश लातकर बताते हैं कि नांदेड जैसे इलाकों में टैंकर को देर लगती है. वे कहते हैं कि नांदेड़ तक टैंकरों को पहुंचने में 25 घंटे का समय लग रहा है जबकि पुणे से 18 घंटे लग रहे हैं और नागपुर से 15 घंटे.
नांदेड में ऑक्सीजन रिफ़िल प्लांट चलाने वाले गणेश भारतीय ने बताया, "हम रोज़ाना 150 से 200 सिलिंडर बेच रहे थे. अभी मांग 500 से 600 सिलिंडर तक की हो गई है. इंडस्ट्री के बदले अब सारे सिलिंडर अस्पतालों को भेजे जा रहे हैं." गणेश भारतीय के मुताबिक मांग पूरी करने के लिए उन लोगों को कहीं ज़्यादा काम करना पड़ रहा है. इनका यह भी मानना है कि उत्पादन बढ़ाने में महीनों लगते हैं. इसकी वजह बताते हुए वे कहते हैं कि पूंजी की कमी से लेकर टैंकरों और कुशल श्रमिकों का अभाव भी इसके लिए जिम्मेदार है. तरल ऑक्सीजन को हैंडल करने के लिए दक्ष लोगों की ज़रूरत होती है. हालांकि महाराष्ट्र के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के एक अधिकारी ने बीबीसी मराठी से कहा कि ऑक्सीजन की आपूर्ति व्यवस्था में लीकेज का होना और दक्ष लोगों की कमी के कारण क़रीब 20 प्रतिशत ऑक्सीजन बेकार हो जाती है.
क्या हैं दूसरे विकल्प?
महाराष्ट्र में ऑक्सीजन का संकट बढ़ने पर राज्य सरकार ने कुछ ऑक्सीजन गुजरात और कर्नाटक जैसे पड़ोसी राज्यों से मंगाई है. लेकिन इन राज्यों ने भी अब अपने यहां संक्रमितों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद कर दी है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने मुंबई में पत्रकारों को बताया कि अब राज्य सरकार ऑक्सीजन को बेकार होने से बचाने पर ध्यान दे रही है. हालांकि राज्य सरकार ने ऑक्सीजन आपूर्ति और सैन्य सहायता के लिए केंद्र सरकार से मदद मांगी है. वहीं ऑल इंडिया गैस मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष साकेत टिक्कू ने बताया, "ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाने के लिए हमारी सरकार से बातचीत चल रही है. इस पर जल्द ही फ़ैसला लिया जाएगा."
कोविड संक्रमितों को ऑक्सीजन क्यों चाहिए?
हम सब हवा से ऑक्सीजन लेते हैं. ऑक्सीजन हमारे फेफड़ों के ज़रिए रक्त प्रवाह में शामिल होती है. यह कोशिकाओं तक पहुंचती है, जहां यह रासायनिक ढंग से ग्लूकोज के साथ प्रतिक्रिया करती है. इसका मतलब यह है कि यह भोजन से ऊर्जा तैयार करता है. यह किसी प्राणी के जीवित रहने के लिए बहुत ज़रूरी प्रक्रिया है. अगर फेफड़े में कोई समस्या हो गई या माइक्रोबायल संक्रमण हो गया तो ऑक्सीजन के रक्त प्रवाह में शामिल होने की प्रक्रिया बाधित हो जाती है. ऐसी स्थिति में सांस से ली गई ऑक्सीजन जरूरतों को पूरा करने के लिए काफ़ी नहीं होती. ऐसे मरीज़ों को शुद्ध ऑक्सीजन देने की ज़रूरत होती है.
कुछ मामलों में ऑक्सीजन कांसन्ट्रेटर का इस्तेमाल किया जाता है. यह मशीन हवा से ऑक्सीजन को लेकर उसे शुद्ध करके मरीज़ों तक आपूर्ति करती है. इसका इस्तेमाल अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन चिकित्सकों के मुताबिक़ इस तरह से दी जाने वाली ऑक्सीजन कोविड संक्रमित मरीज़ों के लिए पर्याप्त नहीं होती.
इसे सिलेंडर और पाइप के ज़रिए देने की ज़रूरत होती है. हालांकि अभी इसे लेकर स्पष्ट जानकारी का अभाव है. महाराष्ट्र का फूड एवं ड्रग विभाग इस पहलू की जांच कर रहा है कि ऑक्सीजन कांसन्ट्रेटर से कोविड संक्रमितों को मदद मिलती है या नहीं. लेकिन एक बात स्पष्ट है कि यह डॉक्टर तय करते हैं कि संक्रमितों को ऑक्सीजन मशीन से दी जाए या सिलिंडर से. यहां यह भी जानना अहम है कि शुद्ध ऑक्सीजन की अधिकता से जोखिम भी बढ़ जाता है.
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