सत्ता और AIADMK पर कब्जा करने के लिए शशिकला ने कैसे जयललिता की पसंद को किया दरकिनार
पार्टी महासचिव बनते ही शशिकला ने अपने करीबियों को पार्टी में अहम पद देना शुरू किया और उन लोगों को भी पार्टी में जगह दी जिन्हें जयललिता ने बाहर कर दिया था।
पहली बार छह महीने के लिए बनाया सीएम
पन्नीरसेल्वम को जयललिता का बेहद खास माना जाता था। खुद जयललिता ने भी यह कई मौकों पर साबित किया। सितंबर 2001 में जब जयललिता को आय से अधिक संपत्ति के केस की वजह से मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा तो उन्होंने पन्नीरसेल्वम को अपनी कुर्सी का उत्तराधिकारी चुना। पन्नीरसेल्वम मार्च 2002 तक मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया और जयललिता ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। मार्च 2002 से दिसंबर 2006 के बीच पन्नीरसेल्वम के पास लोक निर्माण और राजस्व और एक्साइज जैसे महत्वपूर्ण विभाग थे। READ ALSO: तमिलनाडु के CM पलानीसामी ने विधानसभा में जीता विश्वास मत
विपक्ष
का
नेता
भी
बनाया
मई
2006
में
जब
AIADMK
विधानसभा
चुनाव
हार
गई
तो
जयललिता
ने
उन्हें
विधायक
दल
का
नेता
घोषित
किया।
जयललिता
जब
वापस
विधानसभा
चुनाव
जीतकर
सदन
में
आईं
तो
उन्होंने
पन्नीरसेल्वम
की
जगह
ये
पद
संभाला।
दूसरी बार भी पन्नीरसेल्वम को बनाया सीएम
2011 के विधानसभा चुनाव में AIADMK सत्ता में वापस आई और जयललिता मुख्यमंत्री बनीं। पन्नीरसेल्वम इस सरकार वित्त मंत्री बने। वह मई 2011 से 27 सितंबर 2014 तक वित्त मंत्री रहे। जयललिता के आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराए जाने पर एक बार फिर पन्नीरसेल्वम ने ही उनकी जगह ली और 29 सितंबर 2014 को मुख्यमंत्री बने। वह मई 2015 तक मुख्यमंत्री रहे। कर्नाटक हाईकोर्ट से जयललिता के बरी होने के बाद उन्होंने फिर इस्तीफा दिया और अम्मा मुख्यमंत्री बनीं। जयललिता ने उन्हें वित्त विभाग और लोक निर्माण विभाग का कार्यभार सौंपा। READ ALSO: लो-प्रोफाइल नेता कहे जाते हैं तमिलनाडु के नए सीएम पलानीसामी
जयललिता के निधन के बाद फिर बने मुख्यमंत्री
लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहीं जयललिता का 5 दिसंबर 2016 को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में निधन हुआ था। जयललिता के निधन की आधिकारिक घोषणा से पहले ही उनके करीबी रहे ओ. पन्नीरसेल्वम ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। जयललिता के अस्पताल में रहने के दौरान भी वह राज्य के मुख्यमंत्री का कार्यभार देख रहे थे। 6 दिसंबर को रात में पन्नीरसेल्वम ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 10 दिसंबर को उन्होंने पूर्णकालिक मुख्यमंत्री के तौर पर पहली बार कैबिनेट बैठक ली।
शशिकला ने अम्मा की च्वाइस को क्यों किया दरकिनार?
जयललिता के निधन के साथ ही पार्टी में फूट पड़ने लगी थी। जयललिता ने अपनी कोई वसीयत नहीं छोड़ी जिससे किसी को पार्टी का असली उत्तराधिकारी बनाया जा सके। शशिकला ने मौके का फायदा उठाया और खुद को महासचिव पद पर पहुंचा लिया। पार्टी महासचिव बनते ही शशिकला ने अपने करीबियों को पार्टी में अहम पद देना शुरू किया और उन लोगों को भी पार्टी में जगह दी जिन्हें जयललिता ने बाहर कर दिया था। शशिकला की नजर मुख्यमंत्री पद पर थी और वह पन्नीरसेल्वम को भी रास्ते से हटाना चाहती थीं। शशिकला की ओर से बनाए गए दबाव के बाद पन्नीरसेल्वम ने 6 फरवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। पन्नीरसेल्वम के इस्तीफे के बाद शशिकला खुद सीएम की कुर्सी पर बैठने के सपने देख रही थीं लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ओर से आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषी ठहराए जाने की वजह से उनका ख्वाब अधूरा रह गया। READ ALSO: यूपी चुनाव के बीच बीजेपी के लिए बड़ी खुशखबरी, 71 सीटों पर दर्ज की जीत
जेल जाने से पहले भी शशिकला ने खेला दांव
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर शशिकला ने बेंगलुरु में कोर्ट के सामने सरेंडर तो किया लेकिन इसके पहले मिले 24 घंटे के वक्त में उन्होंने राजनीतिक दांव-पेंच से राज्य की सियासत बदल दी। शशिकला को सजा होने के बाद माना जा रहा था कि पन्नीरसेल्वम के मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया है लेकिन शशिकला ने ई. पलानीसामी को विधायक दल का नेता बना दिया। अम्मा के पसंदीदा रहे पन्नीरसेल्वम शनिवार को शशिकला गुट से आखिरी लड़ाई भी हार गए। पलानीसामी ने विश्वास मत हासिल कर लिया। अम्मा की च्वाइस उनकी पार्टी की अंदरूनी सियासत की वजह से ही दब गई।