बढ़ते कद को रोकने के लिए संघ ने अपने संगठन में मोदी समर्थकों को किया किनारे?
नई दिल्ली। क्या आरएसएस और बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है? ये सवाल इसलिए क्योंकि हाल ही में आरएसएस ने कुछ ऐसे फैसले लिए हैं जिससे ये माना जा रहा है कि संघ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समर्थकों के बढ़ते कद पर लगाम लगाने की कवायद में जुटा हुआ है। इसके पीछे वजह ये है कि संघ के एक धड़े को लगता है कि नरेंद्र मोदी जिस तरह से आगे बढ़ रहे हैं, कहीं संगठन पर भी उनकी पकड़ मजबूत न हो जाए। ऐसा नहीं हो इसलिए 10 मार्च को आरएसएस की अहम बैठक में सुरेश भैयाजी जोशी को चौथी बार संगठन का सरकार्यवाह चुना गया। सुरेश भैयाजी जोशी मोदी विरोधी खेमे के माने जाते हैं, उनको सरकार्यवाह बनाए जाने से पहले ऐसी अटकलें लगाई जा रही थी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की टॉप लीडरशिप में बदलाव होगा।
इस बार संघ में नंबर दो का रुतबा रखने वाले सरकार्यवाह का पद पर सुरेश भैयाजी जोशी की जगह उन्हीं के डिप्टी और पीएम मोदी के समर्थक माने जाने वाले सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की नियुक्ति होगी। हालांकि नागपुर में हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में तमाम अटकलों को विराम देते हुए भैयाजी जोशी को ही सरकार्यवाह के पद पर चुन लिया गया। ये कोई अकेला मामला नहीं है आरएसएस ने कई और फैसले लिए हैं, जिनके खास सियासी मायने हैं।
संघ की नई रणनीति की क्या है वजह?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने केवल सरकार्यवाह के लिए नरेद्र मोदी की पहली पसंद दत्तात्रेय होसबले का रास्ता नहीं रोका। इसके साथ-साथ सरकार्यवाह के बाद सह-सरकार्यवाह के पद पर भी संघ में मोदी विरोधी खेमे यानी नागपुर धड़े ने अपनी उपस्थिति मजबूत की। संघ के छह सह-सरकार्यवाह में से चार संघ के नागपुर धड़े के करीबी हैं। नरेंद्र मोदी पर दबाव बनाने के लिए सबसे बड़ा फैसला जो संघ की ओर से लिया गया वो ये था कि मोदी की वजह से गुजरात प्रांत प्रचारक पद से हटाए गए डॉ. मनमोहन वैद्य को सह-सरकार्यवाह बनाया गया। डॉ कृष्णगोपाल भी सह-सरकार्यवाह हैं, ये केंद्र की बीजेपी सरकार और आरएसएस के बीच अधिकृत कड़ी हैं। कृष्णगोपाल भी संघ के नागपुर धड़े के करीबी माने जाते हैं।
इसलिए भैयाजी जोशी चुने गए सरकार्यवाह
संघ ने जिस तरह से सरकार्यवाह के पद को लेकर अहम फैसला लिया इसके पीछे कई खास वजहें हैं। दरअसल आरएसएस में सबसे बड़ा पद सरसंघचालक का होता है। वर्तमान में ये पद मोहन भागवत के पास है। सरसंघचालक को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संविधान के मुताबिक मार्गदर्शक और पथप्रदर्शक का दर्जा मिला है। यही वजह है कि वो संघ की रोजमर्रा की गतिविधियों में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते हैं। उनके ही मार्गदर्शन में संघ का पूरा कामकाज सरकार्यवाह (महामंत्री) और उनके साथ चार सह-सरकार्यवाह (संयुक्त महामंत्री) ही देखते
सरकार्यवाह के लिए दत्तात्रेय होसबोले मोदी खेमे की थे पहली पसंद
संघ की इस पांच सदस्यीय टीम के मुखिया सरकार्यवाह ही होते हैं। ऐसे में आप उनके कद का अंदाजा साफ तौर से लगा सकते हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक माने जाने वाले सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले की नियुक्ति की चर्चाएं इस पद के लिए काफी तेज थी, हालांकि नागपुर में संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में संघ ने इन तमाम अटकलों को विराम देते हुए भैयाजी जोशी को ही सरकार्यवाह के पद पर चुना।
संघ में नागपुर खेमे ने और मजबूत की पकड़
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस फैसले के पीछे अहम वजह ये भी है कि संघ ने अब तक अपने इतिहास में आरएसएस की मौलिक पृष्ठभूमि से आने वाले को ही हमेशा इस पद की जिम्मेदारी सौंपी है। दत्तात्रेय होसबोले को सरकार्यवाह जैसी अहम ज़िम्मेदारी नहीं सौंपने के पीछे एक वजह ये भी बताई जा रही है। जानकारी के मुताबिक दत्तात्रेय होसबोले प्रचारक बनने से पहले ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में सक्रिय थे। एबीवीपी, बीजेपी और आरएसएस की छात्र इकाई है। होसबोले मूल रूप से कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं और एबीवीपी से आरएसएस में आए। इसी वजह से संघ के एक धड़े ने उनको सरकार्यवाह बनाने का विरोध किया।