जानिए, ओम प्रकाश राजभर ने पूर्वी यूपी में कैसे बिगाड़ दिया है, बीजेपी का सियासी गणित?
नई दिल्ली- 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बड़ी जीत के अहम किरदार रहे हैं। उनकी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) और अपना दल के साथ गठबंधन ने पूर्वांचल में दोनों ही चुनावों में भाजपा को अजेय बढ़त दिलाने में मदद की थी। ऐसे में उनकी पार्टी अगर 39 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ती है, तो वहां बीजेपी का सारा सियासी समीकरण बिगड़ने की आशंका है। क्योंकि, महागठबंधन की जातीय गोलबंदी ने पार्टी को पहले से ही असहज कर रखा है। आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि राजभर का ऐलान पूर्वांचल की धरती पर बीजेपी के लिए कितना बड़ा झटका है?
यूपी की राजनीति में कितनी बड़ी ताकत हैं राजभर?
राजभर समाज का पूर्वांचल में एक बड़ा वोट बैंक है। राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) पहली बार 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव लड़ी थी। तब उसने 52 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे। हालांकि, तब उसका एक भी उम्मीदवार नहीं जीता था, लेकिन वह 5.6% वोट शेयर हासिल करने में सफल रही थी। कुछ सीटों पर पार्टी को काफी वोट मिले थे। खुद ओम प्रकाश राजभर गाजीपुर की जहूराबाद सीट से लड़े थे और 49,600 वोट हासिल किया था। गाजीपुर, आजमगढ़, वाराणसी में भी पार्टी को 18 से 30 हजार तक वोट मिले थे। बलिया की 4 विधानसभा क्षेत्रों में तो उसे 26 हजार से 42 हजार तक वोट मिले थे। इसी आधार पर 2014 में बीजेपी ने इस पार्टी के साथ समझौता किया और 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे 8 सीटें दीं। राजभर की पार्टी ने उनमें से आधी यानी 4 सीटें जीत लीं और उसने 34.14% वोट हासिल किए। इसके बाद ओम प्रकाश राजभर को योगी कैबिनेट में जगह मिली।
कहां-कहां होगा बीजेपी को नुकसान?
एक आंकड़े के मुताबिक पूर्वांचल समेत उत्तर प्रदेश के कम से कम 15 जिलों में राजभर अच्छी-खासी हैसियत रखते हैं। निश्चित तौर पर अगर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) 39 सीटों पर अलग से चुनाव लड़ती है, तो सीधा नुकसान भाजपा को होना तय है। गाजीपुर, बलिया, मऊ,आजमगढ़ और वाराणसी में वह अपनी ताकत 2012 से ही दिखा रही है। इसबार पार्टी ने जिन सीटों से अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में, गृहमंत्री राजनाथ सिंह के खिलाफ लखनऊ में और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रयोगशाला कही जाने वाली गोरखपुर की सीट भी शामिल है। वाराणसी से उसने सिद्धार्थ राजभर और लखनऊ से बब्बन राजभर को टिकट दिया है। पिछले चुनावों का रिकॉर्ड देखने से इतना तो तय है कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) अपने दम पर एक भी जगह चुनाव जीतने की ताकत नहीं रखती है, लेकिन वह बीजेपी की राह बहुत ही मुश्किल जरूर कर सकती है और इतनी बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतारने के पीछे दबाव वाली उनकी राजनीति का मकसद भी यही है।
वैसे बीजेपी के इन बड़े नेताओं के अलावा राजभर ने दूसरी हाइप्रोफाइल सीटों पर भी अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है। इनमें अभय पटेल (रायबरेली), जीतेंद्र सिंह (अमेठी), शिवकुमार प्रजापति (प्रयागराज), रमाकांत कश्यप (फैजाबाद) और यशवंत सिंह (आजमगढ़) शामिल हैं। यानी हर सीट पर उनकी पार्टी की मौजूदगी से भाजपा को ही नुकसान होने जा रहा है।
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सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गेमप्लान
ओम प्रकाश राजभर ने 2019 के चुनाव से कई महीने पहले से ही अपना बागी तेवर दिखाना शुरू कर दिया था। वह ओबीसी (OBC)को मिलने वाले 27% आरक्षण को तीन श्रेणी में बांटकर सबसे पिछड़ी जातियों को लाभ दिलाने की मांग कर रहे थे। इन्हीं मुद्दों को लेकर वो बार-बार योगी सरकार पर दबाव बना रहे थे। तब बीजेपी ने उनकी मांगों को तो नजरअंदाज कर दिया था। लेकिन, चुनाव तारीखों के ऐलान से ठीक पहले राज्य सरकार ने उनकी पार्टी के 9 लोगों को अलग-अलग आयोगों का उपाध्यक्ष और अध्यक्ष बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया। इसके बाद कुछ दिनों के लिए उनके तेवर जरूर नरम पड़ गए। लेकिन, फिर से उन्होंने अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को एडजस्ट करने पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। वह लोकसभा की कम से कम 2 सीटें लेने के लिए दबाव बना रहे थे। इसपर बीजेपी ने उन्हें घोसी से भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ने का ऑफर भी दिया। लेकिन यह बात उन्हें नागवार गुजरी और उन्होंने अपने दम पर मैदान में जाने का फैसला कर लिया।