अमित शाह की रिक्वेस्ट पर रात 2 बजे निजामुद्दीन मरकज पहुंचे NSA अजित डोवाल, ऐसे की दिल्ली पुलिस की मदद
नई दिल्ली। कोरोना वायरस संकट के बीच ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज से मिले करीब 2000 लोग अब सिरदर्द साबित होते जा रहे हैं। निजामुद्दीन मरकज के मौलाना साद संकट के बीच भी दिल्ली पुलिस और सुरक्षा एजेंसियो की सुनने को तैयार नहीं थे। उन्होंने बंगलेवाली मस्जिद को खाली करने से साफ इनकार कर दिया था। इसके बाद इस संकट को सुलझाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोवाल की मदद ली गई थी।
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मौलान की जिद के आगे बेबस शाह
इंग्लिश डेली हिन्दुस्तान टाइम्स की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक मरकज के नेता सुनने को तैयार ही नहीं थे। इस बीच रात दो बजे एनएसए डोवाल को वहां पहुंचना पड़ा था। यह ऑपरेशन अब अपने दूसरे दौर में पहुंच चुका है। सुरक्षा अधिकारी अब कोशिश कर रहे हैं कि उन सभी विदेशियों की पहचान कर सकें जो भारत में है। पहले उनकी स्क्रीनिंग होगी और फिर इस बात की जांच की जाएगी कि उन्होंने कहीं वीजा नियमों को तो नहीं तोड़ा। वहीं जब मौलाना साद ने दिल्ली पुलिस और सुरक्षा अधिकारियों की फरियाद को अनसुना करके मस्जिद को खाली करने से इनकार कर दिया तो गृहमंत्री अमित शाह ने एनएसए डोवाल को कॉल किया।
डोवाल से मांगनी पड़ी मदद
शाह ने ने संकट को सुलझाने के लिए एनएसए से मदद मांगी। 28-29 की रात दो बजे डोवाल गृह मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मरकज पर पहुंचे। उन्होंने मौलाना साद को आश्वस्त किया कि वह मरकज में मौजूद सभी लोगों को कोविड-19 इंफेक्शन की टेस्टिंग कराए और उन्हें क्वारंटाइन किया जाए। अखबार की मानें तो शाह और डोवाल हालातो से वाकिफ थे। 18 मार्च को तेलंगाना के करीमनगर में नौ इंडोनेशियाई नागरिकों का पता चला और सभी कोरोना पॉजिटिव आए थे। उसके बाद से ही शाह और डोवाल को इस बात का अंदाजा था कि निजामुद्दीन मरकज में भी इस तरह की स्थितियां बन रही हैं।
मुसलमानों को है डोवाल पर भरोसा!
इसके बाद सुरक्षा अधिकारियों की तरफ से मरकज को लेकर सभी राज्य पुलिस और सब्सिडरी ऑफिसर्स को एक अलर्ट भेजा गया था। यह अलर्ट मरकज से पैदा होने वाले संभावित संक्रमण से जुड़ा था। मरकज की तरफ से 27, 28 और 29 मार्च को 167 तबलिगी कार्यकर्ताओं को अस्पताल जाने की मंजूरी दी गई। इसके बाद डोवाल के हस्तक्षेप के बाद जमात के नेतृत्व की तरफ से मस्जिद की सफाई की मंजूरी दी गई थी। डोवाल ने पिछले कई दशकों के दौरान देश और विदेश में मुस्लिम मूवमेंट्स के साथ काफी करीबी संपर्क बना लिया है। कई मुसलमान उलेमाओं की लिस्ट में किसी भी तरह की वार्ता में उनका नाम पहला है।
क्या है तबलिगी जमात
तबलिगी जमात की शुरुआत मौलाना इलियास खंडेहलवी ने की थी जो कि मौलाना साद के परदादा थे। मेवाती क्षेत्र में इसकी नींव पड़ी थी। कहते हैं कि जब सन् 1527 में राणा सांगा और बाबर के बीच भरतपुर के करीब स्थित खानवा का युद्ध चल रहा था तो उस समय तबलिगी जमात ने राणा सांगा के साथ मिलकर लड़ाई की थी। अब यह आंदोलन पाकिस्तान में भी जा पहुंचा है और वहां के कई तबलिघी संगठनों ने दक्षिण एशिया में अपनी पहुंच को मजबूत कर लिया है। दिल्ली स्थित मरकज में 216 विदेशी नागरिक थे और 800 देश के अलग-अलग हिस्सों से आए थे। ज्यादातर विदेशी नागरिक इंडोनेशिया, मलेशिया और बांग्लादेश से आए हैं।