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उस बैग में क्या था जो निधन के तुरंत बाद पटेल की बेटी ने नेहरू को सौंपा था?

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नई दिल्ली। आज पूरा देश अपने लौह पुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल के बताए आदर्शों और विचारों को याद कर रहा है लेकिन आज भी पटेल के बारे में कुछ ऐसी बाते हैं, जिनके बारे में लोगों को पता नहीं है और वो है उनका परिवार, देश की सियासत का बहुत बड़ा नाम रहे सरदार पटेल के निधन के बाद उनके बेटे और बेटी को राजनीति में स्थान तो मिला लेकिन वो महत्व नहीं मिला जिसके वो हकदार थे, ये खुलासा किया था अमूल के संस्थापक कूरियन वर्गीज ने अपनी किताब I Too Had A Dream में।

एक बैग और बुक लेकिन पटेल की बेटी पहुंचीं थी नेहरू के पास

एक बैग और बुक लेकिन पटेल की बेटी पहुंचीं थी नेहरू के पास

उनके मुताबिक साल 15 दिसंबर 1950 को मुंबई के बिरला हाउस में सरदार वल्लभभाई पटेल का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। वो अपने पीछे बेटे दहया और बेटी मनिबेन को छोड़ गए थे। किताब के मुताबिक पिता के निधन के बाद मनिबेन एक बुक और एक बैग लेकर दिल्ली में पंडित जवाहर लाल नेहरू के पास मिलने के लिए पहुंची थीं क्योंकि उनके पिता ने उन्हें ऐसा करने को कहा था, दरअसल वो किताब एक खाताबुक थी और उस बैग में पार्टी के 35 लाख रूपए थे।

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मनिबेन को नहीं मिली थी नेहरू से तवज्जो

मनिबेन को नहीं मिली थी नेहरू से तवज्जो

बैग और किताब देने के बाद मनिबेन काफी देर तक वहीं पंडित नेहरू के सामने कुर्सी पर बैठी रहीं लेकिन पंडित नेहरू ने उन्हें धन्यवाद के सिवाय और कुछ नहीं कहा, इस बात से मनिबने को काफी धक्का लगा था, उन्हें उम्मीद थी कि नेहरू उनसे पूछेंगे कि अब उनकी जिंदगी कैसी चल रही है, पिता के जाने के बाद, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

मनिबेन आजीवन अविवाहित रहीं

मनिबेन आजीवन अविवाहित रहीं और उन्होंने अपना पूरा जीवन बापू के बताए आदर्शों पर समर्पित कर दिया।

सारी तस्वीरें indianhistorypics के ट्विटर हैंडल से ली गई हैं

लोकसभा सांसद

लोकसभा सांसद

बाद में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और वो पहली बार दक्षिणी कैरा से सांसद चुनकर लोकसभा सांसद बनीं, इसके बाद वो आणंद से एमपी चुनी गईं, हालांकि उन्हें कांग्रेस ने राजनीति में कद तो दिया लेकिन वो महत्व के लिए तरसती रहीं।

कांग्रेस से मोह भंग

इसी वजह से उनका कांग्रेस से मोह भंग हुआ और उन्होंने कांग्रेस छोड़कर मोरारजी देसाई के साथ स्वतंत्र पार्टी ग्रहण कर ली, हालांकि बाद में उनकी कांग्रेस में वापसी हुई थी, वो 1964 से लेकर 1970 तक राज्यसभा की सदस्य भी थीं। 1977 में उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर मेहसाणा से लोकसभा चुनाव लड़ा और निर्वाचित हुईं।

दहयाभाई पटेल भी सांसद पहुंचे

सरदार पटेल के बेटे दहयाभाई पटेल भी राजनीति में सक्रिय रहे, दहयाभाई ने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया था और वो साल 1964 में वे स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा के लिए चुने गए थे, वे तीन बार राज्यसभा में रहे और 1973 में उनका निधन हो गया था।

राजनीती से पोते रहे दूर

उनके दो बेटे थे बिपिन और गौतम, उनके बड़े बेटे बिपिन का वर्ष 2004 में निधन हो गया जबकि दूसरे बेटे गौतम कुछ साल पहले तक अमेरिका में यूनिवर्सिटी में पढ़ाते थे लेकिन अब वो वडोदरा में रह रहे हैं।

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Comments
English summary
These anecdotes are from Verghese Kurien’s memoirs I Too Had A Dream. Maniben Patel,Sardar Patel’s daughter, was a woman of tremendous honesty and loyalty.She told me that when Sardar Patel passed way.
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