ग़रीब सवर्णों को आरक्षण देना कितना संभव है?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील गोपाल प्रासारन कहते हैं, "आर्थिक पिछड़ेपन की पहचान आप कैसे कर सकते हैं. हर एक सरकार आरक्षण में अधिक जटिलताएं पैदा करने की कोशिश कर रही है और यह निश्चित रूप से देश के लिए अच्छा नहीं है."
प्रासारन को भरोसा है कि हालिया फ़ैसला चुनाव को दिमाग में रखकर लिया गया है.
वह कहते हैं, "अगर संविधान संशोधन पास भी हो जाए तब भी इसे चुनौती दी जा सकती है और इसे रद्द कराया जा सकता है."
केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के फ़ैसले को क़ानूनी विशेषज्ञों ने 'करोड़ों बेरोज़गारों को सपने बेचने' वाला बताया है.
कर्नाटक राज्य में वैधानिक रूप से बने पिछड़ा वर्ग आयोग के एक पूर्व चैयरमेन का इस मुद्दे पर कहना है कि भारत में आरक्षण केवल 'सामाजिक रूप से पिछड़ेपन के आधार' पर ही दिया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने बीबीसी हिंदी से कहा, "मेरे हिसाब से यह आकाश में एक विशाल चिड़िया की तरह है जो चुनावी मौसम में आएगी. शायद सरकार इस तथ्य को स्वीकार कर चुकी है कि न्यायालय इसे गिरा देगा लेकिन अगली सरकार के लिए इस मुद्दे से निपटना मुश्किल होगा. अभी यह करोड़ों बेरोज़गारों को सपने बेच रहे हैं."
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पहले भी मिला था आरक्षण
कर्नाटक पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व चैयरमेन और पूर्व महाधिवक्ता रवि वर्मा कहते हैं, "अगर हम पीछे देखें तो पाएंगे की पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने अपने कार्यकाल में मंडल आयोग की रिपोर्ट के प्रावधानों को लागू करते हुए अगड़ी जातियों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने इसे ख़ारिज कर दिया था."
लेकिन केंद्र सरकार की योजना है कि वह संविधान में संशोधन करके आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करे जिसके ज़रिए सवर्णों को नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण की सुविधा मिल पाए.
हेगड़े कहते हैं, "अगर सरकार यह सोच रही है कि वह संविधान में बदलाव कर 50 फ़ीसदी से अधिक आरक्षण की व्यवस्था कर देती है तो इसको कई सवालों का सामना करना पड़ेगा."
वह कहते हैं, "सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या संविधान में तब कोई बदलाव किया जा सकता है जब समानता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि संविधान की मूल संरचना को बदला नहीं जा सकता है."
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संविधान सभा में हुई थी चर्चा
पेरियार रामास्वामी द्वारा बनाई गई पार्टी द्रविड़ कड़गम (डीके) के महासचिव और वकील सैद अरुलमोझी कहते हैं, "संविधान सभा में आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी. आर्थिक आधार का पैमाना बेहद लचीला था जो कोई भी आर्थिक स्थिति प्रदान नहीं कर सकता."
अरुलमोझी ने कहा, "एक परिवार में एक भाई बहुत अधिक कमा सकता है जबकि बहन बहुत कम कमा सकती है. तो अब हम कह सकते हैं कि एक अगड़ा है और एक पिछड़ा है."
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील गोपाल प्रासारन कहते हैं, "आर्थिक पिछड़ेपन की पहचान आप कैसे कर सकते हैं. हर एक सरकार आरक्षण में अधिक जटिलताएं पैदा करने की कोशिश कर रही है और यह निश्चित रूप से देश के लिए अच्छा नहीं है."
प्रासारन को भरोसा है कि हालिया फ़ैसला चुनाव को दिमाग में रखकर लिया गया है.
वह कहते हैं, "अगर संविधान संशोधन पास भी हो जाए तब भी इसे चुनौती दी जा सकती है और इसे रद्द कराया जा सकता है."
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