कितनी बदल गई शिवसेना? हिंदू ह्रदय ही नहीं, सियासी रंग और ढंग भी बदला!
बेंगलुरू। हिंदू ह्रदय सम्राट बालासाहेब ठाकरे द्वारा वर्ष 1966 में स्थापित शिवसेना करीब 53 वर्षों का लंबा सफ़र तय कर चुकी है, लेकिन कभी पार्टी ने अपनी मूल विचारधाराओं से समझौता नहीं किया, लेकिन कभी महाराष्ट्र में किंगमेकर की भूमिका में रही शिवसेना जब से किंग की भूमिका में महाराष्ट्र की सत्ता पर सवार हुई है, उसके रंग-ढंग, चाल और चरित्र में तेजी से बदलाव महसूस किया जा रहा है।
कट्टर हिंदूवादी विचारधारा का पोषण और उसको प्रश्रय देनी वाली शिवसेना अब सियासी शतरंज की बिसात पर मूल विचारधाराओं को ऐसे छोड़कर आगे बढ़ रही है जैसे सर्प अपने केंचुल बदलकर आगे बढ़ जाते हैं। इसकी बानगी शिवसेना के मुखपत्र सामना के बदले हुए मास्टरहेड के रंग और कलेवर और हिंदू शब्द से उसकी एहतियातन दूरी में बखूबी दिख रही है।
शिवसेना गठबंधन राजनीतिक मजबूरी को आधार बनाकर खुद को पाक-साफ घोषित करने की कोशिश जरूर कर सकती है, लेकिन परस्पर विरोधी दलों के साथ गठबंधन करके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने को आतुर शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने मूल विचारों से समझौता करके शिवसेना को पतन की ओर अग्रसारित कर दिया है। महाराष्ट्र में परस्पर विरोधी दलों के साथ गठबंधन की राजनीति में उतरी शिवसेना अब तक पार्टी के मूल सिद्धांतों और विचारों से ही समझौता करके वैचारिक शून्यता की ओर बढ़ती हुई दिख रही है।
इसकी बानगी सोशल मीडिया मे वायरल हो रहे तस्वीरें हैं, जिन्होंने शिवसेना की वैचारिक शून्यता की चीख-चीखकर गवाही दे रहे हैं। महाराष्ट्र में तीन दलों की साझा सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के बाद सोशल मीडिया में एक तस्वीर तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब के तस्वीर के ऊपर हमेशा अंकित रहने वाला हिंदू ह्रदय सम्राट में हिंदू नदारद है। वायरल हो रही तस्वीर शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने की खुशी में शिवसैनिकों द्वारा मुंबई के विभिन्न चौराहों पर लगाए गए होर्डिंग और पोस्टरों के स्नैपशॉट है।
मुंबई के विभिन्न चौराहों पर लगाए गए उन पोस्टरों में शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे हमेशा की तरह दोनों हाथ जोड़कर जरूर खड़े हैं, लेकिन पोस्टर पर छपी उनकी तस्वीर के ऊपर लिखे जाने वाले 'हिंदू ह्रदय सम्राट' से इस बार हिंदू शब्द नदारद है, जिसे संभवत तीनों पार्टियों की साझा सरकार की सेक्युलर छवि के लिए हटाया गया है।
यह नजारा अद्भुत है, जिलमें शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे सेक्युलर अवतार में नजर आए। इसे शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे गठबंधन की मजबूरी से जोड़कर देखा जा सकता है, लेकिन वैचारिक और सैद्धांतिक मूल्यों को ताख पर रखकर उद्धव ठाकरे क्या हासिल करने निकले हैं यह बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है।
हालांकि इसके संकेत तभी मिल गए थे, जब पिता बालासाहेब ठाकरे का सपना पूरे करने के लिए उद्धव ठाकरे मुंबई के शिवाजी पार्क में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह मंच पर चढ़े थे। यह वही ऐतिहासिक शिवाजी पार्क था, जहां 53 वर्ष पहले बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी, लेकिन जब उनका बेटा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा था तब उनकी तस्वीर भी वहां मौजूद नहीं थी। शायद एनसीपी-कांग्रेस की इसमें सहमति नहीं थी।
दूसरी तस्वीर और भी भयानक है। यह तस्वीर शिवसेना के मुखपत्र सामना है। सोशल मीडिया में वायरल हो रहे एक तस्वीर में शिवसेना के मुखपत्र सामना के मास्टरहेड के निकट लिखे गए पंचलाइन की ओर इशारा किया गया है, जिसमें से हिंदू शब्द नदारद दिख रहा है।
वायरल तस्वीर में साफ-साफ दिख रहा है कि सामना के मास्टरहेड की पंचलाइन में बदलाव किया गया है, जो महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी जैसे सेक्युलर दलों को खुश करने की कोशिश के रूप देखा जा रहा है। 28 नवंबर को प्रकाशित सामना न्यूजपेपर के मास्टरहेड पर लिखे पंचलाइन पर गौर करने पता चलता है कि शिवसेना यहां भी सेक्युलर अवतार ले चुकी है।
28 नवंबर को प्रकाशित सामना दैनिक न्यूजपेपर के मास्टरहेड की पंचलाइन से हिंदू शब्द को हटाकर उसकी जगह पर समभावाचा को जोड़ दिया गया है। मराठी में समभावचा का अर्थ सेक्युलर यानी सभी धर्मों का सम्मान होता है। इतिहास गवाह है जब से सामना का प्रकाशन शुरू हुआ है तब से सामना के मास्टर हेड पर , 'ज्वलंत हिंदुत्वाचा पुरस्कार करणारे एकमेव मराठी दैनिक' (ज्वलंत हिंदुत्व को पुरस्कृत करने वाला एकमात्र मराठी दैनिक) लिखा जाता रहा है।
शिवसेना के इतिहास में शायद यह पहली बार हुआ है जब शिवसेना ने मास्टरहेड से हिंदू निकालकर उसकी जगह पर अब 'सर्वधर्म समभावचा पुरस्कार करणारे एकमेव मराठी दैनिक' (सभी धर्मों के धर्म को पुरस्कृत करने वाला एकमात्र मराठी दैनिक) लिख दिया है। शिवसेना महाराष्ट्र की सत्ता के लिए आगे क्या-क्या करने वाली है, यह उसकी महज बानगी भर कही जा सकती है।
सोशल मीडिया में वायरल हो रहे दोनों तस्वीरें शिवसेना के बदले हुए चाल-चरित्र और उसके रंग-ढंग की कहानी बताने के लिए काफी है। महाराष्ट्र की सत्ता के लिए परस्पर विरोधी दलों के साथ गठबंधन करके में अपने अस्तित्व के साथ समझौता कर चुकी शिवसेना सत्ता में बने रहने के लिए आगे और क्या-क्या समझौते कर सकती है इसका अंदाजा वायरल हो रहे दोनों तस्वीरों से आसानी से लगाया जा सकता है।
यह वही सामना है, जो कभी अपने संपादकीय में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देश बतला चुकी है और अब इतनी बदल चुकी है कि अपने मूल सिद्धांतों से मुंह मोड़ लिया है। हालांकि शिवसेना चीफ और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे अभी भी शिवसेना को हिंदूवादी पार्टी बताने से नहीं कतरा रहे हैं।
वजह साफ है, क्योंकि शिवसेना को डर है कि उसके हिंदू बहुसंख्यक वोटर उससे छिटक जाएंगे। यह एहसास शिवसेना चीफ को तब हुआ मीडिया में शिवसेना के ह्रदय परिवर्तन की खबरें सुर्खियां बनने लगी थीं, लेकिन शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे भूल गए कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने पहले प्रेस कांफ्रेंस में खुद हिंदूवादी विचार धाराओं को भुला चुके थे।
महाराष्ट्र की जनता ने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए हिंदूवादी पार्टी बीजेपी और शिवसेनाको दोबारा जनादेश दिया था, लेकिन सियासी मकसद के लिए शिवसेना जनादेश का अपमान किया। कहते हैं जनता सब जानती है और वह यह भी देख रही है कि उसके जनादेश के साथ क्या हुआ है। शायद इसी बात से डरे-सहमे उद्धव मीडिया से यह कहते हुए नजर आए कि शिवसेना अभी भी हिंदूवादी पार्टी है।
निः संदेह शिवसेना महाराष्ट्र की सत्ता के लिए पार्टी के सिद्धांतों और विचाराधारा को ताख पर रखकर आगे बढ़ रही है। विचारों से यह समझौता शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे ने शायद इस मकसद किया है ताकि महाराष्ट्र में गठित साझा सरकार अगले पांच वर्ष का अपना कार्यकाल पूरा कर सके।
लेकिन वह भूल गई हैं परस्पर विरोधी लोग जब साथ नहीं चल सकते हैं तो पूरी की पूरी पार्टी को साथ लेकर चल पाना कितना मुश्किल होगी और वह भी तब जब सभी स्वहितों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना चाह रहीं हों। यह कांग्रेस और एनसीपी का दवाब ही था कि शिवसेना को अपने मूल विचारधारा और सिद्धांतों को उठाकर किनारे रखना पड़ा है।
शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे को सरकार चलाने का अनुभव बिल्कुल नहीं है और माना जा रहा है कि वो एनसीपी चीफ शरद पवार के इशारों पर काम कर रहे हैं। महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पर बैठने के बाद उद्धव ठाकरे द्वारा लिए गए फैसलों में इसकी झलक स्पष्ट देखी जा सकती है।
मुंबई मेट्रो के कार शेड निर्माण प्रोजेक्ट पर रोक के आदेश और महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट पर रोड़ा अटकाने को कोशिश बतलाती है कि शिवसेना के हाथों से कांग्रेस और एनसीपी रानजीतिक खेल रह हैं, जिसका सीधा नुकसान महाराष्ट्र की जनता को है और महाराष्ट्र का होगा।
यह भी पढ़ें- क्या महाराष्ट्र में बाकी है कुछ सियासी ड्रामा, फ्लोर टेस्ट से पहले शिवसेना में दिखा डर?