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कृषि बिल से पंजाब की राजनीति में कितना गर्माया किसानों का मुद्दा

अकाली दल किसानों के आंदोलन को अपने लिए फिर से खड़े होने के मौक़े के तौर पर देख रहा है.

By अरविंद छाबड़ा
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पंजाब की राजनीति में कितना गर्माया किसानों का मुद्दा

क्या हरसिमरत बादल के केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देने से अकाली दल को राज्य के राजनीतिक गलियारों में लौटने का मौका मिला है? या वे इस बाज़ी में बहुत पिछड़ गए हैं? यह वो सवाल है जो नए कृषि क़ानूनों के कारण पंजाब की गर्माई हुई राजनीति में हर किसी की ज़बान पर है.

फिलहाल राज्य की राजनीति काफ़ी दिलचस्प बनी हुई है. पंजाब के अधिकांश राजनीतिक दल एक ही तरफ़ हैं यानी इन नए कृषि बिलों के ख़िलाफ़. हरसिमरत बादल पहले ही इस्तीफा दे चुकी हैं. नवजोत सिद्धू समेत कई नेता किसानों के साथ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. राज्य की राजनीति किसानी के इर्द-गिर्द घूम रही है. पहले हम जानते हैं कि कौन सी पार्टी कहां खड़ी है और यह आगे क्या कर सकती हैं.

किस पार्टी का क्या स्टैंड है?

भाजपा को छोड़ कर सभी प्रमुख दल खुलकर एक ही तरफ़ आ चुके हैं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ पहले ही दिन से बोल रहे हैं. अकाली दल, जो कुछ सप्ताह पहले तक अध्यादेशों का बचाव कर रहा था, अब प्रदर्शनकारी किसानों में शामिल हो गया है. दरअसल, राज्य में फरवरी-मार्च 2022 में चुनाव होने हैं. कोई भी पार्टी किसानों को नाराज़ नहीं करना चाहती है. पंजाब के किसान पिछले तीन महीनों से इन अध्यादेशों का विरोध कर रहे हैं.

किसान संगठनों का कहना है कि एमएसपी किसानों की आय का एकमात्र स्रोत है और ये नए क़ानून इसे ख़त्म कर देंगे. वह कहते हैं कि वे मौजूदा बाज़ार प्रणाली को भी ख़त्म करने जा रहे हैं.

क्या अकाली दल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है?

राज्य में किसानी अकाली दल वोट बैंक की रीढ़ है. पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने यहां तक कहा कि "हर अकाली किसान है और हर किसान एक अकाली है". हरसिमरत बादल के इस्तीफ़े के बाद, एनडीए सरकार में एकमात्र पार्टी मंत्री और सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत ने कहा कि वह अपने घर के बाहर प्रदर्शनकारी किसानों के साथ प्रदर्शन करेंगी.

पंजाब की राजनीति में कितना गर्माया किसानों का मुद्दा

लेकिन हरसिमरत के इस्तीफ़े के साथ, पार्टी राज्य के राजनीतिक क्षेत्र में दोबारा से लौट आई है. कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इससे पार्टी को एक नया मौक़ा मिला है. वह कहते हैं कि यह इस्तीफ़ा और किसानों का साथ देना पार्टी की मजबूरी थी क्योंकि पार्टी किसानों को नाराज़ नहीं कर सकती है और इस कदम में पार्टी को पुनर्जीवित होने का अवसर दिखाई देता है.

राजनीतिक विश्लेषक डॉ प्रमोद कुमार कहते हैं कि खेती उनका मुख्य आधार था क्योंकि पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है.

वो कहते हैं, अब जब कृषि पर संकट है और संघीय ढांचा हिल गया है और अगर ऐसे में कोई क्षेत्रीय पार्टी इस मुद्दे पर रुख नहीं लेती है, तो यह हाशिए पर चला जाती है. अगर अकाली दल ने इस पर कोई स्टैंड नहीं लिया होता, इसका विरोध नहीं किया होता, हरसिमरत बादल ने इस्तीफा नहीं दिया होता, तो मुझे लगता है कि उनका ख़ुद का अस्तित्व ख़तरे में आ जाता."

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी को किसानों का समर्थन तब तक नहीं मिल सकता है जब तक वे भाजपा के साथ हैं. लेकिन भाजपा से अलग होकर अकाली दल के लिए अन्य समीकरण बदल जाएंगे.

क्या आम आदमी पार्टी अकाली दल को हुए नुक़सान का फायदा उठा सकती है?

कांग्रेस की तरह ही आम आदमी पार्टी भी इस मुद्दे पर किसानों के साथ खड़ी है. पार्टी नेता सड़क पर विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं. उनका कहना है कि इन कृषि विरोधी काले क़ानूनों के साथ, सरकार ने किसान को पीठ में छुरा घोंपा है. लेकिन पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष का कहना है कि आम आदमी पार्टी को इस मुद्दे से ज्यादा फ़ायदा नहीं होगा क्योंकि पार्टी के पास पंजाब में नेतृत्व और एजेंडे की कमी है.

क्या इस मुद्दे से भाजपा को नुकसान होगा?

पंजाब की राजनीति में कितना गर्माया किसानों का मुद्दा

भाजपा का वोट बैंक शहरी और व्यवसायिक लोग रहे हैं. भाजपा के पास पहले से ही गाँवों में आधार कम था. अब, इन क़ानूनों से उसने पंजाब में अपना रास्ता और भी मुश्किल बना दिया है. कई किसान संगठन पार्टी के नेताओं को गांवों में प्रवेश नहीं करने देने की बात कर रहे हैं. पार्टी के नेता हाल में अकेले यानी अकाली दल के अलग चुनाव लड़ने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव इसके लिए शायद सही समय न हों .

अब तक, पार्टी कृषि बिलों का ज़ोरदार समर्थन करती आ रही है और यह दावा करती रही है कि किसान गुमराह हैं और इसलिए सड़कों पर हैं.

किसान
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लेकिन प्रोफ़ेसर आशुतोष का कहना है कि राज्य में भाजपा के पास खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है. वो कहते हैं, "प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इन क़ानूनों के लिए सही समय देखा है क्योंकि हरियाणा में कोई चुनाव नहीं हैं और बिहार में ये कोई मुद्दा नहीं है जहां चुनाव होने जा रहे हैं."

उधर डा प्रमोद का कहना है कि इस पर लिए गए रुख से पंजाब में भाजपा का नहीं बल्कि अकाली दल का फ़ायदा है. वो कहते हैं, "शायद यह गठबंधन अब भाजपा के लिए उनकी मजबूरी होगा, न कि अकाली दल की."

क्या इस मुद्दे से कांग्रेस को फायदा होगा?

पंजाब की राजनीति में कितना गर्माया किसानों का मुद्दा

आने वाले चुनावों में, कांग्रेस को पिछले पाँच वर्षों में अपने प्रदर्शन का लेखा जोखा दे कर गवरनेंस के मुद्दे पर लडना पड़ता जो किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं होता. लेकिन इन बिलों की वजह से उन्हें घर बैठे एक मुद्दा मिल गया है. पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आशुतोष कुमार कहते हैं कि कांग्रेस, खासकर कैप्टन अमरिंदर सिंह, इस समय एक मज़बूत स्थिति में है. किसानों का समर्थन करके उन्होंने दावा किया है कि वह किसानों के साथ हैं जबकि विपक्षी दल उनके ख़िलाफ़ हैं.

दूसरी ओर, इस मुद्दे को लेकर मुख्य विपक्षी पार्टी अकाली दल और भाजपा के बीच दरार पड़ चुकी है. अकाली दल के भीतर भी दरार है. वह कहते हैं कि अमरिंदर को कुछ और करने की कोई जरूरत नहीं है.

2022 के चुनावों के लिए अभी भी समय है और विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे ने अकालियों को एक मौका दिया है और अब वे भी राजनीतिक क्षेत्र में बाकी दलों के साथ खड़े हैं. अधिकांश दल दावा कर रहे हैं कि वे किसानों और राज्य के लोगों के साथ हैं, भले ही उन्हें सड़कों पर उतरना पड़े.

लेकिन सवाल यह है कि चुनाव में किसान और बाकी लोग कौन सी पार्टी के लिए खड़े होंगे?

BBC Hindi
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English summary
How much farmers' issue has caused in the politics of Punjab due to agriculture bill
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