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'ठाकरे' के ट्रेलर में बाल ठाकरे का कितना सच, कितना झूठ?

लेकिन फिर भी फ़िल्म में दर्शाया गया ये सीन हक़ीक़त में हुआ था. साल 1971 में कोहिनूर थिएटर से देवानंद की फ़िल्म का उतरना मानो 5 साल पहले एक नई पार्टी के तौर पर उभरी शिव सेना को एक और मुद्दा दे गया.

हिंदी भाषी बनाम मराठी भाषी इस मुद्दे को आज भी कभी-कभी राजनैतिक लाभ के लिए सुलगाने कि कोशिश की जाती है.

By BBC News हिन्दी
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'नफ़रत बेचना बंद करो!' दक्षिण भारतीय सिनेमा के नामचीन अभिनेता सिद्धार्थ ने 'ठाकरे' के ट्रेलर में दक्षिण भारतीयों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हुए एक डॉयलोग को लेकर अपनी आपत्ति ट्विटर पर कुछ इस तरह दर्ज़ कराई.

ठाकरे के ट्रेलर में बाल ठाकरे का कितना सच, कितना झूठ?

फ़िल्म 'ठाकरे' के ट्रेलर में बाल ठाकरे के किरदार में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी बोलते हैं 'लुंगी उठाओ, पुंगी बजाओ!' जिसके ज़रिए फ़िल्म में ये दर्शाने की कोशिश की गई है कि बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों के ख़िलाफ़ किस तरह खुलकर बोलते थे. ये डॉयलोग फ़िल्म के मराठी ट्रेलर में है लेकिन हिंदी ट्रेलर में नहीं है.

इस बात में कोई दो-राय नहीं कि बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों को पसंद नहीं करते थे लेकिन क्या ट्रेलर में दिखाई गई हर बात इतनी ही सच्ची है?

फ़िल्म के ट्रेलर में बाल ठाकरे की ज़िंदगी से जुड़े कुछ राजनैतिक पहलुओं की झलक है, और अब जब पिटारे से इतिहास के कुछ पन्नों को निकाला ही गया है तो चलिए उसकी पुष्टि भी कर ली जाए. ये पता लगाया जाए कि जिन राजनैतिक हिस्सों को ट्रेलर में दिखाया गया है वो घटित हुए भी थे या नहीं.

इसके लिए हमने शिव सेना और बाल ठाकरे पर क़िताब लिखने वालीं और वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन से बात की और पता लगाया कि ट्रेलर में कितनी सच्चाई है.

दक्षिण भारतीयों को क्यों नापसंद करते थे बाल ठाकरे?

सबसे पहले अभिनेता सिद्धार्थ की नाराज़गी पर गौर करते हैं. उनकी नाराज़गी जायज़ है क्योंकि ये सच है कि बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों के ख़िलाफ़ माने जाते थे.

सुजाता आनंदन के मुताबिक़ 1966 में शिव सेना का गठन करने के कई साल पहले बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के तौर पर 'द फ्ऱी प्रेस जर्नल' में काम करते थे. इस जर्नल में उनके अलावा कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण भी काम करते थे जो बाद में जाकर बेहद प्रसिद्ध कॉर्टूनिस्ट रहे.

बाल ठाकरे जब संपादक को अपने बनाए कॉर्टून भेजते थे तो उनके कॉर्टून से ज़्यादा आर.के.लक्ष्मण के कॉर्टून को तवज्ज़ो मिलती थी. संपादक अधिकतर आर.के.लक्ष्मण के कॉर्टून को प्रकाशित करने के लिए चुनते थे.

उन दिनों पत्रकारिता में दक्षिण भारतीयों का दबदबा बहुत था. जिसके चलते बाल ठाकरे को ये लगने लगा कि उनके साथ पक्षपात हो रहा है और आर.के.लक्ष्मण को दक्षिण भारतीय होने का फ़ायदा मिल रहा है.

फिर 1960 में अपने भाई के साथ मिलकर उन्होंने एक कॉर्टून संबंधी साप्ताहिक पत्रिका 'मार्मिक' निकालना शुरू किया.

क्या बाल ठाकरे कभी कोर्ट गए थे?

ट्रेलर के कुछ अन्य दृश्यों की बात करें तो कुछ दृश्य कोर्ट के नज़र आते हैं जिसमें एक में बाल ठाकरे 1992 में मुंबई में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों में हाथ होने का दावा कोर्ट में ठोकते हैं तो दूसरे में बाबरी मस्ज़िद गिराने वाले मामले पर राम मंदिर कि दुहाई देते दिखते हैं.

हमने सुजाता आनंदन से यही सवाल किया कि क्या कभी बाल ठाकरे कोर्ट गए थे. इसके जवाब में बाल ठाकरे और शिव सेना पर 'सम्राट' नामक किताब लिखने वाली सुजाता बताती हैं कि जहां तक उनकी जानकारी है बाल ठाकरे कभी कोर्ट गए ही नहीं.

1992 दंगों के समय वह श्रीकृष्णन कमिशन का केस (जिसके अंतर्गत 1992 के दंगों का मामला था) बतौर पत्रकार कवर कर रहीं थीं.

सुजाता ने बताया कि मुंबई हाई कोर्ट में जब भी इस केस कि सुनवाई होती तो बाल ठाकरे नज़र नहीं आते थे. बल्कि उनकी जगह शिव सेना के दो नेता, मधुकर सरपोटदार और मनोहर जोशी पेशी करने आते.

वह बाबरी मस्ज़िद के मामले को याद करते हुए बताती हैं कि उस केस से बाल ठाकरे बेहद घबराए हुए थे. जब अयोध्या से उनको समन आया तो उन्होंने हर मुमकिन कोशिश की कि वह उससे बच सके.

उस केस में भी उनकी याद में उन्होंने कभी बाल ठाकरे को कोर्ट में पहुंचते नहीं देखा. उनके वकील ही मामले को संभालते. अपने मुखबीरों के ज़रिए या मीडिया के ज़रिए ही वह बयान देते.

बाल ठाकरे ने जावेद मियांदाद को ये तो नहीं कहा था!

फ़िल्म में पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियांदाद कि बल्लेबाज़ी की तारीफ़ के साथ-साथ देश के जवानों के बलिदान की बात करते नज़र आ रहे हैं बाल ठाकरे उर्फ़ नवाज़ुद्दीन.

अब इस सीन कि हक़ीक़त आप ख़ुद भी जान सकते हैं. दरअसल, जावेद मियांदाद और बाल ठाकरे के बीच सार्वजनिक तौर पर बातचीत हुई थी. उस बातचीत के दौरान मीडिया के सामने बाल ठाकरे ने एक भी बार पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोला और ना ही देश के जवानों पर कोई टिप्पणी की.

साल 2004 में अपने घर में उन्होंने जावेद मियांदाद को आमंत्रित किया था जहां उनके बेटे ने जावेद का ऑटोग्राफ़ भी लिया था.

उन्होंने कहा था कि उन्हें खेल से कोई आपत्ति नहीं है, पाकिस्तान के लोग शांति चाहते हैं, राजनिती ने सब ख़राब कर रखा है.

उन्होंने जावेद मियांदाद के खेलने की शैली की भी तारीफ़ की.

सुजाता का कहना है कि सीन में बाल ठाकरे को जावेद मियांदाद के साथ उनके बंद कमरे में बात करते दिखाया गया है, ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि बंद कमरे में दोनों के बीच ऐसी कोई बातचीत हुई थी या नहीं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर जो भी बातचीत हुई उसमें तारीफ़ के अलावा और कुछ नहीं था.

मुसलमान से किस तरह का था बैर...

यहां आपको ये भी बताना दिलचस्प होगा कि बाल ठाकरे यूं तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ थे लेकिन 1995 के बाद उन्होंने ये स्पष्ट कर दिया था कि वह भारतीय मुसलमानों के नहीं बल्कि पाकिस्तानी मुसलमानों के ख़िलाफ़ हैं.

1995 के विधानसभा चुनाव के नतीजों में बाल ठाकरे ने देखा कि कई मुसलमानों ने उनकी पार्टी को वोट दिया जो कि हैरान करने वाली बात थी. मुसलमान समुदाय उन दिनों बाबरी मस्ज़िद के गिरने से असुरक्षित महसूस करते थे और कांग्रेस से बेहद नाराज़ थे.

इसलिए उन्हें लगने लगा कि शिव सेना जो उनके ख़िलाफ़ रहती है उससे ही सुरक्षा मांगी जाए. सुनने में अटपटा ज़रूर लग सकता है लेकिन उन दिनों रुख ही कुछ ऐसा था.

देवानंद से दोस्ती तो फिर क्यों हटाया उनकी फ़िल्म का पोस्टर

ट्रेलर में से एक सीन है जिसमें बाल ठाकरे देवानंद कि फ़िल्म 'तेरे मेरे सपने' का पोस्टर उतारकर मराठी फ़िल्म सोंगाड्या का पोस्टर लगवाते हैं.

कोहिनूर थिएटर में हुआ ये मामला इस बात को साबित करने के लिए था कि बाल ठाकरे के लिए हिंदी हो या कोई और भाषा कि फ़िल्म 'मी मराठा' सबसे आगे होगा.

सोंगाड्या सुपरहिट गई थी. यूं तो देवानंद और बाल ठाकरे कि दोस्ती बहुत पुरानी थी. जब बाल ठाकरे कॉर्टूनिस्ट थे, तबसे वह देवानंद को जानते थे और दोनों कई दफ़ा साथ में खाना खाने जाते थे, घर में आना जाना था.

लेकिन फिर भी फ़िल्म में दर्शाया गया ये सीन हक़ीक़त में हुआ था. साल 1971 में कोहिनूर थिएटर से देवानंद की फ़िल्म का उतरना मानो 5 साल पहले एक नई पार्टी के तौर पर उभरी शिव सेना को एक और मुद्दा दे गया.

हिंदी भाषी बनाम मराठी भाषी इस मुद्दे को आज भी कभी-कभी राजनैतिक लाभ के लिए सुलगाने कि कोशिश की जाती है.

फिलहाल इस ट्रेलर ने विवाद को तो जन्म दे दिया है और जब 25 जनवरी को 'ठाकरे' रिलीज़ होगी तो देखने वाली बात होगी कि बाल ठाकरे के व्यक्तित्व को लोग कैसे लेते हैं.

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English summary
How much either lies or true of Bal Thackeray in Thackeray trailer
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