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मोदी सरकार का जीडीपी पैमाने को बदलना कितना सही

नीति आयोग और इसके आला अधिकारियों का पिछली सरकार की नियुक्तियों पर लगातार हमलावर रुख़ का रिकॉर्ड रहा है, जैसे कि रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम.

हालांकि कुल मिलाकर ये संशोधन असामान्य रूप से बड़े हैं और इस डेटाबेस के समर्थन में जो स्पष्टीकरण दिए गए हैं वो बेहद सतही हैं.

By BBC News हिन्दी
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इस साल की शुरुआत में नरेंद्र मोदी सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी पर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) की तकनीकी कमेटी के अनुमानों को ख़ारिज कर दिया था, फिर नीति आयोग और केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) ने वैकल्पिक आंकड़ों को जारी किया. इसके बाद से कई विवाद खुलकर सामने आए.

नीति आयोग और सीएसओ के जारी किए गए अनुमानों में आर्थिक मोर्चे पर यूपीए सरकार (मनमोहन सिंह सरकार) की तुलना में मोदी सरकार के प्रदर्शन को काफ़ी बेहतर बताया गया है.

इन अनुमानों के मुताबिक़, यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान जीडीपी ने कभी 9% के आकड़ें को नहीं छुआ.

हालांकि इसके उलट राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी) की कमेटी ने 2007-08 में 10.23% और 2010-11 में 10.78% की जीडीपी का अनुमान दर्शाया था.

कमेटी ने दो अन्य वर्षों में भी 9% से अधिक की वृद्धि दर्शायी थी. 2005-06 में 9.6% और 2006-07 में 9.7%.

इस मसले पर वित्त मंत्री अरुण जेटली और उनके पूर्ववर्ती पी. चिदंबरम के बीच राजनीतिक द्वंद्व के अलावा, पूरी प्रक्रिया पर सीएसओ के पूर्व अधिकारियों और स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों ने कई परेशान करने वाले सवाल उठाए हैं.

लेकिन मोदी सरकार, सीएसओ या नीति आयोग इन सवालों पर मौन रही.

मोदी को क्यों पसंद हैं 'नॉन परफॉर्मिंग' जेटली?

जीडीपी आंकड़े, भारतीय अर्थव्यवस्था
Getty Images
जीडीपी आंकड़े, भारतीय अर्थव्यवस्था

चलिए समझते हैं कि ये आंकड़े क्या हैं?

जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट) यानी सकल घरेलू उत्पाद की दर एक 'आधार वर्ष' के उत्पादन की क़ीमत पर तय होता है.

अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलावों के मद्देनज़र आधार वर्ष की अवधि में समय-समय पर बदलाव किए जाते हैं.

2015 में इसी बदलाव के तहत आधार वर्ष को 2004-05 से अपडेट कर 2011-12 किया गया.

इससे जीडीपी के दो अनुमान मिले- 2004-05 के आधार वर्ष के साथ पुरानी सिरीज़ और 2011-12 के नए आधार वर्ष पर नई सिरीज़.

भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही आधार पर होती है.

जब आधार वर्ष में बदलाव किया गया तो नई सिरीज़ में प्रणाली संबंधी कई सुधार भी किए गए. लेकिन वहां एक समस्या थी.

पुरानी सिरीज़ से 1950-51 से 2014-15 तक के जीडीपी अनुमान मिले जबकि नए जीडीपी सिरीज़ ने 2011-12 तक का ही अनुमान दिया.

नतीजतन, 2011-12 से पहले के ट्रेंड का कोई सार्थक शोध नहीं किया जा सकता था, यह अकादमिक शोध के साथ ही नीतियां बनाने और इसके मूल्यांकन को अंधेरे में रखता है.

https://twitter.com/NITIAayog/status/1067758910424182789

पहले कैसे किया जाता था आकलन?

पहले के दशकों में, आधार वर्ष में जब भी बदलाव किया गया, जैसे कि जब 2004-05 में आधार वर्ष बदला गया, तो जीडीपी सिरीज़ ने 1950-51 तक की जीडीपी का अनुमान लगाया था.

फिर, सांख्यिकी विशेषज्ञों वाली एनएससी कमेटी ने इस साल अगस्त में एक और बैक सिरीज़ जारी की. इसमें यह दर्शाया गया कि मोदी कार्यकाल के पहले चार वर्षों की तुलना में यूपीए के 2004-05 से 2013-14 की अवधि में अर्थव्यवस्था में कहीं तेज़ वृद्धि हुई थी.

जैसे ही मीडिया में बैक सिरीज़ की ख़बर दी गई, सांख्यिकी मंत्रालय की वेबसाइट पर इसे जारी किए जाने के क़रीब 15 दिनों बाद, मोदी सरकार में घबराहट मच गई. उसने आनन-फानन में इन अनुमानों को 'अनौपचारिक' बताते हुए इस रिपोर्ट में 'ड्राफ्ट' शब्द डाल दिया.

बुधवार को सरकार या सीएसओ ने यह नहीं बताया कि एनएससी कमेटी ने बैक सिरीज़ को ख़ारिज क्यों किया.

जीडीपी आंकड़े, बीबीसी कार्टून
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जीडीपी आंकड़े, बीबीसी कार्टून

सीएसओ के पास उचित डेटा का अभाव था और उसने यूपीए सरकार के 10 साल के कार्यकाल के अधिकतर वर्षों के दौरान जीडीपी में वृद्धि दर के आंकड़ों को घटा दिया.

ख़ास कर दो सालों में यह कटौती असामान्य रूप कहीं अधिक की गई. 2007-08 में इसे 9.8% से घटाकर 7.7% कर दिया गया तो 2010-11 में तो 10.3% के दहाई अंकों के आंकड़े को भी घटाकर 8.5% कर दिया गया. यह यूपीए सरकार के कार्यकाल का वो एकमात्र वर्ष था जब देश ने दहाई अंक में वृद्धि दर्ज की थी.

गुरुवार को यह बात भी सामने आई कि नीति आयोग और सीएसओ ने इस पर साथ काम किया था. और यही वजह है कि नीति आयोग के मंच पर बैक सिरीज़ जारी की गई थी, इसके उपाध्यक्ष राजीव कुमार के ट्वीट्स से यह बात सामने आयी.

https://twitter.com/RajivKumar1/status/1067747945997451264

मोदी सरकार ख़ामोश क्यों?

नीति आयोग का इससे जुड़ना बेमिसाल होने का साथ ही विवादास्पद भी था और सीएसओ और भारतीय सांख्यिकी की विश्वसनीयता पर बड़ी चोट है. सीएसओ के पूर्व प्रमुखों ने नीति आयोग की भागीदारी पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, उसने (नीति आयोग ने) कहा था कि सीएसओ ने जीडीपी अनुमानों को स्वतंत्र रूप से तैयार और जारी किया है.

महज दो घंटे पहले इन आंकड़ों को केवल तीन व्यक्तियों प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और नीति आयोग के उपाध्यक्ष के साथ शेयर किया गया था.

सीएसओ को सांख्यिकी के जानकारों द्वारा चलाई जाने वाली पेशेवर संस्था माना जाता है. दूसरी तरफ़ नीति आयोग की अध्यक्षता प्रधानमंत्री के हाथों में होती है और इसकी स्थिति सरकार के पक्षकार के रूप में रहती है.

नीति आयोग और इसके आला अधिकारियों का पिछली सरकार की नियुक्तियों पर लगातार हमलावर रुख़ का रिकॉर्ड रहा है, जैसे कि रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम.

हालांकि कुल मिलाकर ये संशोधन असामान्य रूप से बड़े हैं और इस डेटाबेस के समर्थन में जो स्पष्टीकरण दिए गए हैं वो बेहद सतही हैं.

भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रोनब सेन ने इंडियन एक्सप्रेस अख़बार को एसएनए और बैक सिरीज़ में कुछ विसंगतियों के बारे में बताया है.

मोदी सरकार को पिछले कुछ समय से अर्थव्यवस्था को लेकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है और वित्त मंत्री की ओर से इस पर कोई जवाब भी आता नहीं दिख रहा है कि लोकसभा चुनावों से महज कुछ महीनों पहले ही एक आधीअधूरी बैक सिरीज़ क्यों जारी की गई.

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English summary
How Much Changing Modi Governments GDP Scale
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