झारखंड में भाजपा-आजसू मिलकर लड़ते चुनाव तो पलट जाते नतीजे, मिलती कितनी सीटें? जानिए
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नई दिल्ली- झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस और आरजेडी ने पिछले चुनाव से सबक लेकर इस बार महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ा और बाजी पलट दी। लेकिन, पांच साल तक साथ चलने के बाद ठीक चुनाव से पहले बीजेपी और एजेएसयू के बीच सीटों पर तालमेल नहीं हुआ और दोनों अलग-अलग मैदान में उतरीं और परिणाम देश के सामने आए। लेकिन, हमनें झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों का जो गहन विश्लेषण किया है, उसके कुछ चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। दोनों दलों के वोटों को जोड़ने से पता चलता है कि अगर ये दोनों दल मिलकर चुनाव लड़े होते तो बीजेपी की सरकार फिर से बन सकती थी और हेमंत सोरेन की उम्मीदों पर पानी फिर सकता था। जानिए, भाजपा-आजसू के साथ लड़ने पर कैसे बदल जाते झारखंड चुनाव के नतीजे।
भाजपा-आजसू 40 सीटें जीत सकते थे
अगर झारखंड में भाजपा और आजसू इस बार विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़े होते तो वे 40 सीट जीत सकते थे, जो कि बहुमत के अंक गणित से सिर्फ एक सीट कम है। हालांकि, 81 सीटों वाली विधानसभा में तब भाजपा गठबंधन के लिए एक विधायक का जुगाड़ करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता और महागठबंधन इस दौड़ में बीजेपी-एजेएसयू गठबंधन से काफी पीछे छूट सकता था। यह आंकड़ा झारखंड की सभी 81 सीटों पर भाजपा और आजसू को मिले वोट और झामुमो-कांग्रेस-राजद महागठबंधन को मिले वोट की तुलना कर निकाला गया है। इस आधार पर हमनें ये भी पाया है कि दोनों दलों को बेहतर परिणाम के लिए कितनी-कितनी सीटों का बंटवारा करना चाहिए था? हमनें विश्लेषण में पाया है कि आजसू को कुल 8 सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी से ज्यादा वोट मिले हैं, जिनमें उसकी जीत वाली दो सीटें भी शामिल हैं। यानि बेहतर रिजल्ट के लिए भाजपा को 73 और आजसू को 8 सीटों पर समझौता करके चुनाव लड़ना फायदे का सौदा साबित हो सकता था।
गठबंधन करने से बीजेपी को होता ज्यादा फायदा
अलग-अलग चुनाव लड़ने पर झारखंड विधानसभा में बीजेपी के 25 और एजेएसयू के 2 विधायक जीते सके हैं। लेकिन, ये दोनों मिलकर चुनाव लड़ होते और हम मानकर चलें कि इन्हें अलग-अलग मतदाताओं ने जो वोट दिए हैं, वह सारा का सारा वोट दोनों पार्टियों के गठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में ही ट्रांसफर हो गया होता तो भाजपा को 9 सीटों का फायदा होता और उसकी टैली 25 से बढ़कर 34 तक पहुंच सकती थी। जबकि, आजसू की सीटें 2 से बढ़कर 6 तक पहुंच सकती थी।
महागठबंधन को होता कितना नुकसान?
इस बार के चुनाव में महागठबंधन को कुल 47 सीटें मिली हैं, जिनमें जेएमएम की 30, कांग्रेस की 16 और आरजेडी की 1 सीट शामिल है। लेकिन, अगर बीजेपी और एजेएसयू में चुनाव से पहले ही सीटों का तालमेल हो जाता तो इन पार्टियों को 13 सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता था और उन्हें सिर्फ 34 सीटें ही मिल पातीं, जिससे वह सत्ता की रेस से बाहर हो सकती थीं। अगर ऐसा होता तो झामुमो की सीटें 30 से घटकर 21 और कांग्रेस की 16 से घटकर 12 तक पहुंच सकती थी, अलबत्ता आरजेडी तब भी 1 सीट हासिल करने में कामयाब होती यानि उसे भाजपा-आजसू के गठबंधन से भी कोई फर्क नहीं पड़ता।
गठबंधन होने पर वोट शेयर में होता बड़ा अंतर
वोट शेयर के विश्लेषण के बाद आम समझ ये कहता है कि दोनों दलों को गठबंधन होने से इन्हें बहुत ज्यादा सीटें मिल सकती थीं। क्योंकि, झारखंड में बीजेपी-एजेएसयू का साझा वोट शेयर 41.5% होता है, जो कि जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी के साझा वोट शेयर 35.4% से काफी ज्यादा है। लेकिन, दिलचस्प बात ये है कि 6.1% वोट के इस भारी अंतर को भी जब सीटों पर मिले वोटों के मुताबिक गणना करते हैं तो यह सिर्फ 13 सीटों के अंतर में ही तब्दील होता दिख रहा है।
बाकी पार्टियों पर होता क्या असर?
झारखंड में सभी 81 विधानसभा सीटों के परिणामों का विश्लेषण करने पर यह भी बात सामने आई कि बीजेपी-एजेएसयू के बीच चुनावपूर्व गठबंधन होने पर आरजेडी की तरह ही बाबूलाल मरांडी की जेवीएम, एनसीपी, सीपीआई (एमएल) और निर्दलीय उम्मीदवारों की ओर से जीती गईं 7 सीटों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां तक की जिस अकेली सीट पर एनसीपी जीती है और वहां बीजेपी ने अपना उम्मीदवार नहीं दिया था, वहां भी परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ता। हालांकि, यह सब सिर्फ वोटों के अंकगणित पर आधारित विश्लेषण है, वास्तविक चुनावी माहौल में दो और दो बराबर चार होना कोई जरूरी नहीं है।
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