प्रधानमंत्री पद के लिए कितने दावेदार - लोकसभा चुनाव 2019
अगर कांग्रेस या भाजपा को बहुमत नहीं मिलता है और तीसरे मोर्चे की नौबत आई तो क्षेत्रीय दलों के कुछ नेता हैं, जो 2019 में पीएम पद के दावेदार हो सकते हैं.
इंद्र कुमार गुजराल या एचडी देवगौड़ा जैसे नेता भी राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति नहीं कर रहे थे जब उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौक़ा मिला. अगर कांग्रेस या भाजपा को बहुमत नहीं मिलता है और तीसरे मोर्चे की नौबत आई तो क्षेत्रीय दलों के कुछ नेता हैं, जो 2019 में पीएम पद के दावेदार हो सकते हैं.
ममता बनर्जी
ममता बनर्जी ख़ुद कांग्रेस का भी हिस्सा रही हैं, फिर उनकी पार्टी भी यूपीए का हिस्सा रही. हाल ही में सीबीआई को लेकर केंद्र के साथ टकराव में कई विपक्ष के नेताओं ने उनका साथ दिया जैसे राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, तेजस्वी यादव, मायावती और अखिलेश यादव. चंद्रबाबू नायडू के केंद्र के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन को भी उन्होंने अपना समर्थन दिया.
2014 के लोकसभा चुनाव में 42 सीटों में से 32 सीटों पर तृणमूल की जीत हुई थी. यानी ममता बनर्जी ने अपनी तैयारियां पूरी कर रखी हैं. जनवरी में तृणमूल कांग्रेस की 21वीं सालगिरह पर तृणमूल के नेताओं ने ममता का नाम पीएम पद के लिए आगे बढाया. उनके पूरी प्रोफाइल आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.
लेकिन ममता बनर्जी एकमात्र विकल्प नहीं हैं.
मायावती
बहुजन समाज पार्टी भी अपनी प्रमुख मायावती को पीएम पद पर देखना चाहती है और उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर चुकी है. जनता दल सेक्यूलर और इंडियन नेशनल लोकदल ने भी उन्हें सहयोग दिया है. उनके नए-नए साथी अखिलेश यादव भी कह चुके हैं कि मायावती के प्रधानमंत्री बनने पर उन्हें ख़ुशी ही होगी.
अगर तीसरे मोर्चे से प्रधानमंत्री चुनने का मौक़ा आया तो कांग्रेस को भी मायावती को समर्थन देने में गुरेज़ नहीं होगा क्योंकि पार्टी पहले भी देश में कई महत्वपूर्ण पदों पर पहला दलित नेता देने का श्रेय लेती रही है.
चाहे पहले दलित राष्ट्रपति के आर नारायणन हों या पहली दलित महिला लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार या दलित गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे. मायावती की पार्टी का खुद भी देश के 18 राज्यों में सपोर्ट बेस है.
नवीन पटनायक
ओडिशा में 4 बार मुख्यमंत्री रहे नवीन पटनायक कह चुके हैं कि फ़िलहाल वो भाजपा और कांग्रेस दोनों से दूरी बनाए रखेंगे. लेकिन चुनाव के नतीजे क्या ना करवा दें.
हालांकि, ओडिशा से सिर्फ 21 सदस्य ही लोकसभा जाते हैं. दूसरी बात ये कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में भी वे नहीं गए जहां बहुत से ग़ैर-बीजेपी दल गए थे. दिल्ली में चंद्रबाबू नायडू की बुलाई बैठक में भी नहीं गए. एक तरह से उन्होंने अपनी दूरी सभी से बना कर रखी, तो ये बात बाद में उनके हक़ में भी जा सकती है और शायद उन्हें इसका नुकसान भी हो सकता है.
नवीन पटनायक पिछले 18 सालों से क्यों नहीं हारे, जानने के लिए यहां क्लिक करें.
शरद पवार
शरद पवार नरेंद्र मोदी के लिए लंच होस्ट कर चुके हैं तो राहुल गांधी, ममता बनर्जी और मायावती के लिए डिनर भी. अगर किसी को बहुमत नहीं मिला, तो शरद पवार ही एक ऐसे नेता हैं जिनके संबंध सभी दलों से अच्छे ही रहे हैं और उनके नाम पर समझौता होना आसान है.
नितिन गडकरी
कुछ महीनों से ये चर्चा चल रही है कि अगर बीजेपी को बहुमत नहीं मिला और गठबंधन सरकार बनाए जाने की नौबत आई तो एनडीए के सहयोगी दल शायद नितिन गडकरी के नाम पर राज़ी हों.
नितिन गडकरी तो कह चुके हैं कि वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं लेकिन मोदी से रिश्ते और उनके बयान किस तरफ़ इशारा कर रहे हैं, आप यहां पढ़ सकते हैं.
राजनाथ सिंह
साल 2014 में बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने चुनावों से पहले एनडीए का पुनर्गठन शुरू किया था जो कि एक आसान काम नहीं था. तब राजनाथ सिंह आख़िरकार 30 अलग-अलग दलों को एनडीए के झंडे तले लाने में कामयाब हो गए.
राजनाथ सिंह ने अपनी कोशिशों से जिस एनडीए का गठन किया वो उनके राजनीतिक गुरु अटल बिहारी वाजपेयी से भी बड़ा था.
ऐसे में कई लोगों ने राजनाथ सिंह को भविष्य के वाजपेयी के रूप में देखना शुरू कर दिया. यहां पढ़िए कि वे क्यों हो सकते हैं प्रधानमंत्री पद के दावेदार.
राहुल गांधी
जबसे राहुल गांधी की राजनीतिक पारी शुरू हुई है, कांग्रेस उन्हें प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में ही देखती आ रही है.
उन्हें विरोधियों ने बच्चा कह कर, पप्पू जैसे नाम देकर ख़ारिज करने की कोशिश की. उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता की बात आम होने लगी.
लेकिन पिछले कुछ वक्त से उनमें बदलाव के संकेत भी नज़र आने लगे. कैसा रहा है राहुल का अब तक का राजनीतिक सफ़र, यहां पढ़िए.
नरेंद्र मोदी
भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री भी अगली बार फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए ज़ोर लगा रहे हैं.
लेकिन क्या वे फिर से लाल किले पर तिरंगा फहरा पाएंगे, यहां पढ़िए.