अहमद पटेल के साथ कितने अहमद, कितने पटेल?
कांग्रेस के सबसे बड़े रणनीतिकार माने जाने वाले अहमद पटेल अपने ही राज्य गुजरात में पार्टी को क्यों नहीं जीत दिला पाते?
अहमद पटेल या तो दिल्ली में रहते हैं या अपने गांव पिरामल में. पिरामल कोई सुदूर का गांव नहीं है जहां जाने के लिए आपको हिचकोले खाने होंगे.
अहमदाबाद से भरूच क़रीब तीन घंटे का सफर और भरूच से पिरामल एक घंटे का. उनके गांव में जाने के बाद ऐसा नहीं लगता है कि यह कोई गांव हैं. अगर आपके मन में गांव को लेकर खेत और खलिहान की छवि है तो निराशा हाथ लगेगी.
मैंने उनके गांव में जितने लोगों से बात की उनमें से किसी ने अहमद पटेल की शिकायत नहीं की. सबकी ज़ुबान पर अहमद भाई हैं. वो चाहे हिन्दू हों या मुसलमान. उनके गांव के पास का शहर अंकलेश्वर है. अंकलेश्वर में पारसियों के 26 परिवार रहते हैं और माना जाता है कि पारसी परिवार भी पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ रहते हैं.
'अहमद भाई सभी के नेता'
भरूच को इंदिरा गांधी के पति फ़िरोज़ गांधी का जन्मस्थान कहा जाता है. हालांकि, इसे लेकर भी एक राय नहीं है.
भरूच में एमके कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स के पूर्व प्रिंसिपल बोमिन कोविन पारसी हैं और वो अभी पत्नी के साथ अंकलेश्वर में रहते हैं. उनका कहना है कि फ़िरोज़ गांधी का जन्म मुंबई (पहले बॉम्बे) में हुआ था और उनके नाना का घर भरूच में था.
बोमिन कोविन इस बात से ख़ुश हैं कि उनकी तीनों बेटियों ने पारसी लड़कों से ही शादी की. वो इस बात को लेकर चिंता ज़ाहिर कर रहे थे कि गुजरात में पिछले तीस सालों में कई पारसी लड़कियों ने मुसलमान लड़कों से शादी की.
हालांकि, वो अहमद पटेल से ख़ुश हैं और कहते हैं अहमद भाई किसी क़ौम के नेता नहीं हैं बल्कि सभी के नेता हैं.
बोमिन ने यह भी बताया कि 2002 के दंगे में उन्होंने अपने घर में तीन मुसलमान परिवारों को रखा था और फ़ायर ब्रिगेड को फ़ोन कर बुलाया था.
बोमिन के अनुसार जब फ़ायर ब्रिगेड वालों को पता चला कि जिन घरों में आग लगाई गई है वो मुसलमानों के हैं तो वे वापस चले गए थे.
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2002 दंगों का खुलकर विरोध नहीं किया
एक बात कई हलकों में अक्सर की जाती है कि गुजरात में 2002 में जब दंगे हुए तो उसके ख़िलाफ़ अहमद पटेल को जिस तरह से खुलकर सामने आना चाहिए था, वो नहीं आए.
इस पर भरूच के सीनियर पत्रकार हरीश जोशी कहते हैं, ''जब आप एक लेवल पर पहुंच जाते हैं तो कोई एक क़ौम की पहचान के साथ ही नहीं रहना चाहते हैं. हालांकि उन्होंने दंगों की कड़ी निंदा की थी और बयान भी जारी किया था.''
हरीश जोशी कहते हैं कि अहमद पटेल के साथ व्यक्तिगत प्रतिबद्धता ज़्यादा जुड़ी हुई है.
जोशी कहते हैं, ''अहमद पटेल की पहचान कांग्रेस में एक रणनीतिकार को तौर पर भले है, लेकिन उनकी रणनीति गुजरात में नाकाम रही है. अगर वो अपनी रणनीति को पारिभाषित करेंगे तो पाएंगे कि उससे गुजरात को फ़ायदा नहीं मिला. वो अपनी रणनीति को पार्टी कार्यकर्ता तक पहुंचा पाते हैं या नहीं, बड़ा सवाल तो यह है.''
जोशी कहते हैं, ''आप 2002 के बाद देखेंगे तो पता चलेगा कि बीजेपी ने कैसे सांगठनिक रणनीति के तहत काम किया है, लेकिन अहमद पटेल की रणनीति इसमें नाकाम रही है.''
गुजरात, कांग्रेस या मुसलमान किसके नेता हैं अहमद पटेल?
अहमद पटेल को इस बार राज्यसभा जाने से रोकने के लिए बीजेपी ने पूरा ज़ोर लगा दिया था, लेकिन यहां बीजेपी पर अहमद पटेल की रणनीति भारी पड़ी.
हरीश जोशी कहते हैं यहां बीजेपी को अहमद पटेल से निजी तौर पर समस्या नहीं थी, बल्कि ये कांग्रेस को जड़ से उखाड़ फेंकने की रणनीति का हिस्सा था.
क्या अहमद पटेल गुजरात के बड़े नेता हैं या मुसलमानों के या फिर कांग्रेस के बड़े नेता हैं? अहमदाबाद के वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई कहते हैं कि वो बैकरूम रणनीति तैयार करने वाले नेता हैं और ऐसे लोगों की हर पार्टी में ज़रूरत होती है.
दर्शन देसाई कहते हैं कि यूपीए-एक और यूपीए-दो सरकार को 10 सालों तक चलाने में अहमद पटेल का अहम योगदान रहा है. देसाई का कहना है कि सीपीएम द्वारा यूपीए से समर्थन वापस लेने के बाद अहमद पटेल ने सरकार बचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी.
गुजरात में अहमद पटेल की रणनीति क्यों फेल?
सवाल उठता है कि अहमद पटेल इतने बड़े रणनीतिकार हैं तो गुजरात में क्यों पिछले 22 सालों उनकी नीति चारों खाने चित हो जा रही है?
दर्शन देसाई कहते हैं, ''गुजरात में तो किसी की रणनीति काम नहीं करती है. वो भी तब जब सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो और आपका नाम अहमद पटेल हो.''
''जहां तक दंगे के दौरान अहमद पटेल की भूमिका की बात है तो मैं यह मानता हूं कि एक विपक्ष के तौर पर कांग्रेस को जो करना चाहिए था उसने नहीं किया.''
क्या गुजरात के मुसलमान अहमद पटेल को अपना नेता मानते हैं?
दर्शन देसाई कहते हैं, ''नहीं, मुसलमान अहमद पटेल को अपने नेता के रूप में नहीं देखते हैं. दूसरी तरफ़ अहमद पटेल भी ख़ुद को मुस्लिम नेता नहीं मानते हैं.''
''उनकी सबसे मजबूत चीज़ है कि वो लोकप्रियता के दायरे से ख़ुद को बाहर रखते हैं. अहमद पटेल अपने विरोधियों की भी मदद करते हैं फिर भी वो श्रेय नहीं लेना चाहते हैं. यही उनकी पर्सनल स्ट्रॉन्ग साइड है.''
दर्शन देसाई कहते हैं कि अहमद पटेल अगर खुलकर मुसलमानों को संबोधित करेंगे तो गुजरात में सांप्रदायिक राजनीति की ज़मीन और उर्वर होगी. इस डर के कारण भी वो खुलकर सामने नहीं आते हैं.
'अहमद पटेल वफ़ादारों से घिरे हुए नेता हैं'
अहमदाबाद में सीपीएम सेंट्रल कमिटी के सदस्य अरुण मेहता अहमद पटेल का आकलन दूसरे तरीक़े से करते हैं. अरुण मेहता ने कहा, ''अहमद पटेल का ज़मीन से कोई संबंध नहीं है. उन्हें लगता है कि लोगों को व्यक्तिगत मदद पहुंचा देना ही काफ़ी है. अगर मैं एक लाइन में टिप्पणी करूं तो वो ये होगी कि अहमद पटेल वफ़ादारों से घिरा हुआ नेता है.''
मेहता ने कहा, ''अभी कांग्रेस में तीन गुट हैं. अहमद पटेल ने कभी गुजरात में कांग्रेस को एक करके नहीं रखा. अभी वो शक्ति सिंह गोहिल गुट को बढ़ावा दे रहे हैं. इसके साथ ही गुजरात प्रदेश अध्यक्ष भारत सिंह सोलंकी का एक गुट है और तीसरा गुट सिद्धार्थ पटेल का है.''
80 के दशक में भरूच कांग्रेस का गढ़ हुआ करता था. अहमद पटेल यहां से तीन बार लोकसभा सांसद बने. इसी दौरान 1984 में पटेल की दस्तक दिल्ली में कांग्रेस के संयुक्त सचिव के रूप में हुई. जल्द ही उन्हें पार्टी में प्रमोशन मिला और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव बनाए गए.
गांधी परिवार के विश्वासपात्र
1986 में अहमद पटेल को गुजरात कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर भेजा गया. 1988 में गांधी-नेहरू परिवार द्वारा संचालित जवाहर भवन ट्रस्ट के सचिव बनाए गए. यह ट्रस्ट सामाजिक कार्यक्रमों के लिए फंड मुहैया कराता है.
धीरे-धीरे अहमद पटेल ने गांधी ख़ानदान के क़रीबी कोने में अपनी जगह बनाई. वो जितने विश्वासपात्र राजीव गांधी के थे उतने ही आज की तारीख़ में सोनिया गांधी के हैं.
21 अगस्त 1949 को मोहम्मद इशाक पटेल और हवाबेन पटेल की संतान के रूप में अहमद पटेल का जन्म हुआ. पिरामल के कुछ बुज़ुर्गों से मैंने बात की तो उन्होंने बताया कि अहमद पटेल बचपन से ही विनम्र और अनुशासित थे.
पिरामल गांव के महेश भाई मेहता ने बताया, ''जब अहमद भाई घर से निकलते हैं तो सबका हालचाल लेना नहीं भूलते हैं. हम सब इंतज़ार करते हैं कि अहमद भाई दिल्ली से कब आएंगे.''
भरूच कांग्रेस के प्रवक्ता नाजु भाई बताते हैं कि अहमद पटेल नमाज़ पढ़ना नहीं भूलते हैं. उन्होंने कहा कि वो अपने गांव के मंदिरों में दान देना और मरम्मत कराने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं.
गुजरात यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी से मैंने पूछा कि गुजरात में मुसलमान पटेल टाइटल क्यों लगाते हैं? इस पर जानी ने कहा, ''पटेल कोई जाति सूचक टाइटल नहीं है. यह ओहदे को इंगित करता है. गांव का जो मुखिया होता है उसे पटेल कहते हैं और अहमद पटेल का साथ भी ऐसा ही है. यहां कोई हिन्दू से मुसलमान बनने का मामला नहीं है.''
अमहद पटेल के साथ त्रासदी यह है कि वो कांग्रेस की गुजरात में खोई ज़मीन वापस नहीं दिला पाए. उनके अपने ही इलाक़े भरूच में कांग्रेस पिछले चार लोकसभा चुनाव हार रही है.
2012 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पांच में से एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. ऐसा तब है जब अहमद पटेल अपने पसंद के उम्मीदवारों को टिकट दिलवाते हैं