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कश्‍मीर घाटी में आतंक और दर्द के रिश्‍ते ने पूरे किए 25 बरस

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श्रीनगर। अब इसे संयोग कहें या कुछ और कि जिस समय जम्‍मू कश्‍मीर में विधानसभा चुनाव जारी हैं, उसी समय कश्‍मीर घाटी में मौजूद चरमपंथ ने अपने 25 वर्ष पूरे कर लिए हैं।

Kashmir-insurgency

चिनार की वादी हो गई खून से लाल

इस दौरान घाटी में आतंकी हमलों की जैसे बाढ़ आ गई है। एक के बाद एक होते आतंकी हमलों से घाटी सहम सी गई है। आठ दिसंबर 1989 को उस समय के गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्‍मद सईद की बेटी डॉक्‍टर रुबया सईद के अपहरण के बाद घाटी का नजारा मानों बदल सा गया। बर्फ से ढंकी और चिनार से सजी घाटी की वादियां देखते ही देखते खून से लाल होने लगी। निर्दोष जानें गईं और सुरक्षाबलों ने भी अपने बहादुरों को खोया।

क्‍या हुआ था 8 दिसंबर 1989 को

2 दिसंबर 1989 को केंद्र में वीपी सिंह की सरकार बनी और उसमें मुफ्ती मोहम्‍मद सईद को गृहमंत्रालय सौंपा गया। पाकिस्‍तान से आने वाले आतंकियों ने यूं तो 1988 से ही हरकतें तेज कर दी थीं। पड़ोसी मुल्‍क ने कश्‍मीर के रहने वाले लोगों को बहलाना, फुसलाना शुरू किया और उनका ब्रेनवॉश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

आज जो यासीन मलिक जेकेएलएफ के नेता बनकर लश्‍कर-ए-तैयबा के चीफ हाफिज सईद से मिलने पाकिस्‍तान तक पहुंच जाता है, उसी जेकेएलएफ ने एक ऐसी साजिश को अंजाम दे डाला, जिसके बारे में कभी सोचा नहीं गया था।

सईद की बेटी रुबया की उम्र उस समय 23 वर्ष की थी और वह एक मेडिकल की स्‍टूडेंट थीं और लाल देद मेमोरियल वुमेंस हॉस्पिटल में इंटर्न कर रही थीं। आठ दिसंबर 1989 को रुबया नौगाम स्थित हास्टिपल की बस से अपने घर वापस लौट रही थीं। उनके घर से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर आतंकियों ने उनका अपहरण कर लिया। एक मारुति वैन में उन्‍हें लेकर आतंकी फरार हो गए।

कश्‍मीर टाइम्‍स को किया गया फोन

जेकेएलएफ के प्रतिनिधियों की ओर से कश्‍मीर के मशहूर लोकल न्‍यूजपेपर कश्‍मीर टाइम्‍स को शाम करीब 5:30 बजे फोन कर जानकारी दी गई कि एक ग्रुप मुजाहिद्दीन ने डॉक्‍टर रुबया सईद का अपहरण कर लिया है।

जब तक सरकार जेकेएलफए के एरिया कमांडर शेख अब्‍दुल हमीद, गुलाम नबी बट, नूर मुहम्‍मद कलवाल, मुहम्‍मद अल्‍ताफ और जावेद अहमद जरगार को रि‍हा नहीं करेगी, तब तक उसे छोड़ा नहीं जाएगा।

न्‍यूजपेपर के एडीटर मुहम्‍मद सोफी ने गृहमंत्री को फोन किया और फिर केंद सरकार को इस बात की इत्तिला हुई। मुख्‍यमंत्री फारुख अब्‍दुल्‍ला लंदन में छ‍ुट्टियां मना रहे थे तुरंत भारत लौटे। आईबी के वरिष्‍ट अधिकारी के साथ ही नेशनल सिक्‍योरिटी गार्ड्स के डायरेक्‍टर जनरल वेद मारवाह श्रीनगर पहुंचे।

कश्‍मीर टाइम्‍स के जफर मेराज के जरिए आतंकियों के साथ समझौते की बात शुरू हुई। लेकिन जब बात बनती नजर नहीं आई तो इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज मोती लाल भट्ट को इसमें शामिल किया गया। वह मुफ्ती मोहम्‍मद सईद के दोस्‍त थे और उन्‍होंने आतंकवादियों के साथ सीधा संवाद शुरू किया।

नाकाम रही वीपी सरकार

13 दिसंबर 1989 को दो कैबिनेट मंत्री आईके गुजराल और आरिफ मोहम्‍मद खान श्रीनगर पहुंचे। फारुख अब्‍दुल्‍ला आतंकियों की हरािई के सख्‍त खिलाफ थे। वह मानते थे कि अगर सरकार ने आतंकियों को छोड़ा तो घाटी में इस तरह की वारदातों के जरिए आतंकी अपनी मांग मनवाने लगेंगे और नतीजे काफी भयानक हो सकते हैं।

वीपी सिंह कोई भी कड़ा फैसला नहीं ले सके और शाम सात बजे रुबया को छोड़ दिया गया। उनकी रिहाई जेल में बंद पांच आतंकियों की रिहाई के दो घंटे बाद ही हो गई थी।

फारुख अब्‍दुल्‍ला के साथ ही आज कई लोग इस बात को मानते हैं कि उस समय सरकार जिस तरह से आतंकियों के आगे झुकी उसका नतीजा आज तक घाटी और देश भुगत रहा है। रुबया के किडनैपिंग की खबर को न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स से लेकर कई प्रमुखों अखबारों ने अपनी सुर्खियां बनाया था।

आतंकवाद का नया दौर

इस अपहरण कांड के बाद 1990 से लेकर 1998 तक घाटी ने चरमपंथ और आतंकवाद का एक नया दौर देखा। यूनाइटेड नेशंस की वर्ष 2011 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक

  • दो दशकों में घाटी में 43,460 लोगों की हत्‍या हुई।
  • इनमें से 21,323 आतंकी मारे गए।
  • 13,226 लोगों की हत्‍या आतंकियों के द्वारा हुई
  • 3,642 नागरिक सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए
  • 5,369 सुरक्षा बलों और पुलिस के जवान आतंकियों की कार्रवाई में शहीद हुए।
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English summary
Insurgency completes 25 years in Jammu Kashmir valley. Experts feel that the kidnapping of Dr. Rubaiya Saeed gave moral support to terrorists in Jammu Kashmir valley.
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