केरल की महिलाओं ने ऐसे जीता 'बैठने का अधिकार'
महिलाओं को घंटों खड़े रह कर काम करना होता था. इसके ख़िलाफ उन्होंने अभियान चलाया था.
कुछ लोगों को यह बात ग़ैरमामूली बात लग सकती है या फिर कुछ के लिए ये शायद चकित करने वाला हो सकता है, लेकिन केरल की कुछ महिलाओं के लिए यह जंग में जीत से कम नहीं है.
ये वो महिलाएं हैं जिन्हें अपने काम के घंटों के दौरान बैठने की इजाज़त नहीं थी.
इन महिलाओं ने राज्य सरकार को उस नियम में बदलाव लाने के लिए मजबूर कर दिया, जिसके तहत रिटेल आउटलेट में नौकरी के दौरान उन्हें बैठने से रोका जाता था. महिलाओं ने इसके ख़िलाफ अभियान चलाया था.
राज्य के श्रम सचिव के. बीजू ने बीबीसी हिंदी को बताया, "बहुत कुछ ग़लत हो रहा था, जो नहीं होना चाहिए था. इसलिए नियमों में बदलाव किया गया है. अब उन्हें अनिवार्य रूप से बैठने की जगह मिलेगी. साथ ही महिलाओं को शौचालय जाने के लिए भी पर्याप्त समय दिया जाएगा."
इस प्रस्ताव के मुताबिक़ अब महिलाओं को उनके काम करने की जगह पर रेस्ट रूम की सुविधा दी जाएगी और अनिवार्य रूप से कुछ घंटों का ब्रेक भी मिलेगा. और जिन जगहों पर महिलाओं को देर तक काम करना होता है, वहां उन्हें हॉस्टल की भी सुविधा देनी होगी.
अधिकारियों के मुताबिक़ अगर इन नियमों का उल्लंघन होता है तो व्यवसाय पर दो हज़ार से लेकर एक लाख रुपए तक जुर्माना लगाया जा सकता है.
ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन की महासचिव और वकील मैत्रेयी कहती हैं, "यह बुनियादी ज़रूरत है, जिसके बारे में किसी ने लिखने की ज़रूरत ही नहीं समझी. हर किसी को बैठना, शौचालय जाना और पानी पीना होता है."
आठ साल बाद मिला बैठने का हक़
महिला अधिकार के इस मुद्दे को साल 2009-10 में कोझिकोड की पलीथोदी विजी ने उठाया था.
विजी कहती हैं, "बैठने को लेकर क़ानून बनना, नौकरी देने वाले लोगों के घमंड का ही परिणाम है. वो महिलाओं से पूछते थे कि क्या कोई ऐसा क़ानून है जिसके तहत आपको बैठने के लिए कहा जाए. नया क़ानून उनके इसी घमंड का ही तो नतीजा है."
"केरल की तपती गर्मी में महिलाएं पानी तक नहीं पी पाती थीं क्योंकि उन्हें दुकान छोड़ कर जाने की इजाज़त नहीं होती थी. यहां तक की उन्हें शौच के लिए जाने तक का वक़्त नहीं दिया जाता था. वो अपनी प्यास और शौच रोक कर काम करती थीं, जो कई बीमारियों को जन्म देती थी."
इस तरह की महिलाएं एकजुट हुईं और उन्होंने संघ का निर्माण किया. कोझिकोड से शुरू हुआ अभियान अन्य ज़िलों में भी फैलने लगा.
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ऐसे ही एक संघ की अध्यक्ष माया देवी बताती हैं, "जो पहले से स्थापित कर्मचारी संघ थे उन्होंने यह मुद्दा कभी नहीं उठाया. यहां तक कि महिलाओं को भी इस अधिकार के बारे में मालूम नहीं था."
पलीथोदी विजी सिलाई की एक दुकान में काम करती थीं. माया देवी त्रिशूर के कपड़े के शोरूम में नौकरी करती थी, जहां उनके अलावा 200 से अधिक और लोग भी काम करते थे.
माया कहती हैं, "दुकान में ग्राहकों के न रहने की स्थिति में भी हम लोगों को बैठने की इजाज़त नहीं थी. पीएफ़ और स्वास्थ्य बीमा के पैसे सैलरी से काट लिए जाते थे लेकिन उन्हें स्कीम के तहत जमा नहीं किया जाता था."
साल 2012 में माया को 7500 रुपए प्रति महीना वेतन पर नौकरी दी गई थी, लेकिन उन्हें कभी भी 4200 रुपए से ज्यादा का वेतन नहीं मिला.
जब उन्होंने इसका विरोध किया, उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी. साल 2014 में वो और उनकी जैसी 75 महिलाएं एक साथ आईं और मिल कर इन अनियमितताओं के ख़िलाफ अपना अभियान शुरू किया.
इसके बाद प्रबंधन ने उन्हें और अन्य छह कर्मियों का स्थानांतरण कर दिया और बाद में नौकरी से वो सभी नौकरी से निकाल दी गईं.
पुरुषों को भी मिल फायदा
केरल सरकार के बनाए नए नियमों का फायदा सिर्फ महिलाओं को ही नहीं, पुरुषों को भी मिला है. अब वो भी अपनी नौकरी के दौरान बैठ सकेंगे.
जल्द ही सरकार इस संबंध में एक नोटिफिकेशन जारी करने वाली है.
विजी का कहना है कि नोटिफिकेशन जारी होने के बाद वो नियमों को देखेंगी और अगर उसमें कोई कमी लगती है तो वो आगे भी अपना आंदोलन जारी रखेंगी.
लेकिन फिलहाल के लिए केरल की महिलाओं ने बैठके के अधिकार की अपनी लड़ाई जीत ली है.
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