दक्षिण ने दिखाई उत्तर को राह, 2019 में मोदी के लिए दिल्ली होगी दूर?
नई दिल्ली। कर्नाटक में पांच दिनों से जारी राजनीतिक उठापटक अब खत्म होती दिख रही है। येदुरप्पा के इस्तीफे के बाद अब माना जा रहा है कि जेडीएस कांग्रेस की मदद से आराम से बहुमत तक पहुंच जाएगी। कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद भाजपा के सरकार ना बना पाने का असर सिर्फ कर्नाटक तक रहेगा, ऐसा नहीं लगता है। इसका सीधा असर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों पर पड़ेगा, जो कि एक साल के भीतर होने हैं। ये पूरा घटनाक्रम विपक्ष का हौंसला बढ़ाने वाला होगा और इसकी कई वजह हैं। इस पूरे घटनाक्रम में कई संदेश छुपे हैं जो 2019 में विपक्ष को साथ लाने में अहम हो सकते हैं और मोदी से दिल्ली दूर हो सकती है।
विपक्ष को कड़वाहट भुलाने में मदद करेगा कर्नाटक!
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस और जेडीएस एक-दूसरे पर हमलावर रहे लेकिन नतीजे साफ होने से पहले ही जब रुझानों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन की बात कह दी। ये कहीं ना कहीं 2019 में विपक्ष को आपसी कड़वाहट भुलाकर साथ आने के लिए एक मैसेज की तरह से काम करेगा कि अगर भाजपा को हराना है तो साथ आना होगा और ये कारगर भी रहेगा।
अमित शाह और मोदी की जोड़ी को हराया जा सकता है
पिछले चार साल में पीएम मोदी की राजनीति से भी ज्यादा चर्चा अमित शाह के मैनेजमेंट की रही है। उन्हें चुनाव जिताने के साथ-साथ सरकार बनाने में भी एक्सपर्ट कहा जाता रहा है। गोणा और मणिपुर जैसे राज्यों में भाजपा ने कम सीटें होते हुए भी सरकार बनाई तो इसे शाह की ही रणनीति मानी गई। कर्नाटक की उठापटक के बीच दबी जुबान में ये खूब कहा गया कि शाह के होते येदुरप्पा को बहुमत से नहीं रोका जा सकेगा, कांग्रेस और जेडीएस में टूट हो जाएगी। तमाम दावे गलत साबित हुए कांग्रेस और जेडीएस ने तो अपने विधायकों को टूट से बचाया ही, एक बसपा और दो निर्दलीय को भी भाजपा के पक्ष में जाने से रोके रखा। ये सब विपक्ष के लिए टॉनिक का काम करेगा और विपक्ष के नेताओं को भरोसा दिलाएगा कि एकजुटता हो तो भाजपा के हाथ से तकरीबन जीती बाजी भी छीनी जा सकती है।
भाजपा को रोकने को 'त्याग' भी करना होगा
कर्नाटक में कांग्रेस ने 78 विधायक होते हुए भी 38 सीटों वाले जेडीएस को बिना शर्त समर्थन दिया। विपक्ष के लिए इसमें भी एक संदेश है कि भाजपा को रोकना सबसे अहम है तो फिर इस तरह के समझौतों को भी तैयार रहना होगा। इस उदाहरण को आने वाले समय में विपक्ष के नेता अपने उन साथियों को समझाने में जरूर देंगे, जो सीटों को लेकर लड़ेंगे।
यूपी-बिहार में गठबंधनों को बल मिलेगा
उत्तर प्रदेश में हालिया उपचुनावों में विपक्ष की एकजुटता दिखी है। हालांकि अभी भी सपा और बसपा में गठबंधन का आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। बिहार में भी राजद के नेतृत्व में एक बड़े गठबंध की कोशिश में विपक्ष की पार्टियां दिख रही हैं। कर्नाटक में भाजपा को सरकार बनाने से रोकना इन राज्यों के विपक्षी दलों के लिए भी ताकत देने वाला होगा।
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