जगनमोहन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश में कैसे चंद्रबाबू को धूल चटाई
2009 में 15वीं लोकसभा से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले जगनमोहन का परिवार लंबे समय से राजनीति से जुड़ा रहा है. कडप्पा ज़िले के पुलिवेंदुला में 21 दिसंबर 1972 को जगनमोहन का जन्म हुआ. पुलिवेंदुला में कुछ समय पढ़ने के बाद वह हैदराबाद पब्लिक स्कूल पढ़ाई के लिए चले गए. उन्होंने कॉमर्स से स्नातक किया है. उनकी छोटी बहन शर्मिला भी राजनीति में हैं.
2009 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गई थी. इस मौत के बाद से ही उनके बेटे वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी आंध्र प्रदेश में सियासी ख़ालीपन को भरने की कोशिश कर रहे थे.
2009 में वो कडप्पा लोकसभा क्षेत्र से सांसद बने. अगर उनके पिता जीवित होते तो जगन भी कांग्रेस में होते. पिता के असामयिक निधन के बाद जगन को कांग्रेस में मन मुताबिक़ तवज्जो नहीं मिली और उन्होंने कांग्रेस से अलग राह चुन ली.
राजनीति में आते ही पिता को खोया
राजनीति में दस्तक के कुछ ही महीनों बाद जगनमोहन ने अपने पिता को खो दिया. इसके बाद कांग्रेस पार्टी के साथ उनका टकराव, वित्तीय मामलों में फँसने के बाद 16 महीनों की जेल उनके इर्द-गिर्द घूमती रहीं. हालांकि जगनमोहन ने राजनीतिक रूप से कभी सरेंडर नहीं किया.
कडप्पा ज़िले के पुलिवेंदुला में 21 दिसंबर 1972 को जगनमोहन का जन्म हुआ. पुलिवेंदुला में कुछ समय पढ़ने के बाद वह हैदराबाद पब्लिक स्कूल पढ़ाई के लिए चले गए. उन्होंने कॉमर्स से स्नातक किया है. उनकी छोटी बहन शर्मिला भी राजनीति में हैं. जगनमोहन प्रोटेस्टेंट ईसाई हैं.
2009 में 15वीं लोकसभा से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले जगनमोहन का परिवार लंबे समय से राजनीति से जुड़ा रहा है.
पहली बार वह कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में संसद पहुंचे. उनके पिता राजशेखर रेड्डी की असामयिक मृत्यु के बाद उनके पिता के कई चाहने वालों ने आत्महत्या कर ली थी.
कांग्रेस से टकराव
उस समय जगन ने सोचा कि आत्महत्या करने वाले लोगों के घरों में जाकर उन्हें सांत्वना दी जानी चाहिए. इसको लेकर उन्होंने एक सांत्वना यात्रा शुरू की. हालांकि, कांग्रेस के हाई कमान ने उन्हें इस यात्रा को समाप्त करने के निर्देश दिए लेकिन जगन ने इसकी परवाह किए बिना यात्रा जारी रखी.
उन्होंने कहा कि यह उनका व्यक्तिगत मामला था और इसके बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी को ख़ुद से अलग कर लिया.
29 नवंबर 2010 को उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया. सात दिसंबर 2010 को उन्होंने घोषणा की कि वह 45 दिनों में अपनी नई राजनीतिक पार्टी का गठन करेंगे.
पूर्वी गोदावरी में मार्च 2011 में उन्होंने घोषणा की कि उनकी पार्टी का नाम वाईएसआर कांग्रेस होगा. वाईएसआर का मतलब वाईएस राजशेखर रेड्डी से नहीं था. इसका मतलब युवजन श्रमिक रायतू कांग्रेस पार्टी है.
इसके बाद उन्होंने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी से कडप्पा चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ा और उन्होंने 5,45,043 वोट पाकर बड़ी जीत दर्ज की.
आंध्र प्रदेश के विभाजन को लेकर भूख हड़ताल
जगन के ख़िलाफ़ कई केस दर्ज किए गए और वो जेल में भी रहे. आंध्र प्रदेश को विभाजित करने का फ़ैसला जब यूपीए सरकार ने लिया तब वह जेल में ही भूख हड़ताल पर बैठ गए.
125 घंटे की भूख हड़ताल के बाद उनका शूगर और ब्लड प्रेशर का स्तर तेज़ी से नीचे चला गया. सरकार ने उन्होंने उस्मानिया अस्पताल में भर्ती कराया. जगन की मां और विधायक विजयम्मा ने भी राज्य के विभाजन के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल की.
जेल से निकलने के बाद जगन ने तेलंगाना के गठन के ख़िलाफ़ 72 घंटे का बंद का आह्वान किया. जगन और विजयम्मा ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया.
2014 में राज्य के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा. आंध्र की 175 में से वाईएसआर कांग्रेस 67 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी. जगन को विपक्ष के नेता की भूमिका मिली.
पदयात्रा से लोगों से जुड़ाव
इसके बाद 6 नवंबर 2017 को उन्होंने 'प्रजा संकल्प यात्रा' की शुरुआत की जिसमें उन्होंने आंध्र प्रदेश में 3648 किलोमीटर की यात्रा पूरी की.
430 दिनों तक यात्रा 13 ज़िलों में चली और इसमें 125 विधानसभा क्षेत्र शामिल थे. यह यात्रा 9 जनवरी 2019 को समाप्त हुई. इस यात्रा के दौरान 'हम जगन चाहते हैं, जगन को आना चाहिए' नारा गूंजा. 3648 किलोमीटर की यात्रा के दौरान लोगों के बीच उनको लेकर उत्साह देखने को मिला.
कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने केंद्रीय मंत्री बनना बेहतर नहीं समझा बल्कि वह उचित मौक़े पर मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं तलाश रहे थे.
वह दृढ़ता से अपने मक़सद में लगे रहे और किसी भी स्थिति में नहीं झुके. ऐसी क्षमता उनके समकालीन राजनीतिज्ञों में कम ही है.
जगन में बहुत सी विशेषताएं हैं, वह कार्यकर्ताओं को नेतृत्व देते हुए उनमें उत्साह भरते हैं. पार्टी बनाने के कम समय बाद ही उन्होंने चुनावों का सामना किया और उसमें उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा.
पार्टी कैडरों की झुंझलाहट और दूसरे दलों की अदला-बदली के बाद जगन ने कुछ शर्तें भी बनाईं. उन्होंने कहा कि अगर कोई दूसरी पार्टी का उम्मीदवार चुनाव जीतता है और उनकी पार्टी में शामिल होना चाहता है तो उसे इस्तीफ़ा देकर उनकी पार्टी में आना होगा.
वह इस सिद्धांत को बनाए हुए हैं. राष्ट्रीय स्तर पर यह नीति राजनीतिक दलों के लिए आदर्श है. जगनमोहन रेड्डी की उम्र को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि वह ऐसे नेता हैं जिन्हें राजनीति में एक लंबा रास्ता तय करना है.