फिजिकल नहीं डिजिटल: क्या बिहार विधानसभा चुनाव से बदलेगी देश में चुनावों की तस्वीर ?
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) की तारीखों का ऐलान हो गया है। तीन चरणों में 28 अक्टूबर, 3 नवम्बर और 7 नवम्बर को वोट डाले जाएंगे। ये बातें तो अब तक आपको पता चल ही गई होंगी। इस बार के चुनाव में मुकाबला नीतीश की अगुवाई वाले सत्ताधारी एनडीए और राजद-कांग्रेस नीत महागठबंधन के बीच ही रहने वाला है।
पिछले कई चुनावों की तरह इस बार भी कुछ बाते तो वहीं रहने वाली हैं। जैसे कि बीते 15 साल से मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार (बीच में जीतनराम मांझी के छोटे से कार्यकाल को छोड़कर) फिर से मुख्यमंत्री का चेहरा हैं। अलग बात है कि पिछली बार महागठबंधन के मुख्यमंत्री का चेहरा थे तो इस बार एनडीए की अगुवाई कर रहे। हर बार की तरह ही सत्ताधारी पार्टी अपनी उपलब्धियां बताएगी तो विपक्ष सरकार की नाकामियां गिना रहा होगा। लेकिन इन सबसे अलग इस बार का चुनाव हटकर भी होने वाला है। अलग इतना कि एक तरीके से ये आगामी चुनावों में आयोग और राजनीतिक पार्टियों के लिए मिसाल बन सकता है। शायद एक बार फिर बिहार देश को नई राह दिखाने के लिए तैयार है।
बिहार के चुनाव पर होगी देश की नजर
वैसे तो बिहार के विधानसभा चुनाव सभी चुनावों की तरह की स्थानीय चुनाव हैं लेकिन प्रदेश की राजनीति का मूड ही कुछ ऐसा है कि उस पर पूरे देश की नजर रहती है। याद कीजिए 2015 का विधानसभा चुनाव, जब बिहार की सियासी चाल में उलझकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चला भाजपा का विजय रथ रुक गया था। खैर वो बात पुरानी है। इस बार का मामला पिछली बार के चुनावों से अलग है। बिहार पहला राज्य है जहां कोविड-19 महामारी फैलने के बाद चुनाव कराए जा रहे हैं। खास तौर पर तब जबकि अभी महामारी पूरे जोर पर है। देश में रोजाना जितने केस आ रहे हैं उतने पूरी दुनिया के किसी भी देश में नहीं आ रहे हैं। ऐसे माहालौ में प्रदेश में विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा की गई है।
बिहार के लोग देखेंगे पहली बार ऐसा चुनाव
कोरोना के असर को देखते हुए निर्वाचन आयोग ने नामांकन से लेकर प्रचार, वोटिंग और मतगणना के लिए गाइडलाइन जारी की है। आयोग का पूरा फोकस चुनाव को फिजिकल मोड से हटाकर डिजिटल मोड में ले जाने पर है। बिहार के लोगों के लिए ये थोड़ा अलग होगा क्योंकि वे पहली बार ऐसा चुनाव देखने जा रहे हैं जहां डोर-टू-डोर कैंपेन और बड़ी रैलियों की जगह वर्चुअल रैली, सोशल मीडिया और मोबाइल पर प्रचार होगा। नए नियमों के मुताबिक नामांकन ऑनलाइन भी किया जा सकता है। डिपॉजिट भी ऑनलाइन भरने की व्यवस्था की गई है। ऐसे में सभी की नजर इस बार के प्रचार के तरीकों को लेकर है। खास तौर पर जब ऐसे ही माहौल में शायद अगले साल बंगाल के विधानसभा चुनाव भी होंगे।
फिजिकल नहीं डिजिटल होंगे ये चुनाव
पहली बार देश में कोई चुनाव हो रहा होगा जहां फिजिकल चुनाव प्रचार की संभावना सबसे कम है। प्रत्याशियों को प्रचार के दौरान भी कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करना होगा। प्रत्याशी सिर्फ 5 लोगों के साथ डोर-टू-डोर जाकर प्रचार करेगा। बड़े नेता डिजिटल रैलियां करेंगे। रोड शो में भी पांच से ज्यादा वाहन नहीं होंगे। ऐसे में इस चुनाव में तकनीक का रोल सबसे ज्यादा होगा। सभी पार्टियों ने काफी पहले से ही इसकी तैयारी भी शुरू कर दी थी। बिहार का चुनाव सभी पार्टियों के लिए एक सीख भी लेकर आएगा। मजबूरी में हो रहा ये प्रयोग आने वाले समय में देश में डिजिटल चुनाव प्रचार के लिए रोडमैप भी तैयार करेगा जिसमें तकनीक एक बड़ा रोल अदा करेगी। ऐसे में जरा देखते हैं कि राजनीतिक पार्टियों इस माहौल में खुद को कैसे तैयार किए हुए हैं।
बीजेपी की क्या है तैयारी ?
बात चुनाव में तकनीक यानि डिजिटल माध्यमों की हो तो इसकी शुरुआत बीजेपी से करना ही सही होता है। वैसे तो पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले ही डिजिटल माध्यमों की ताकत को समझ लिया था। आज भी पार्टी की आईटी टीम सबसे मजबूत मानी जाती है। फिर भी पार्टी बड़ी रैलियों और रोड शो करती रही है। इस बार डिजिटल माध्यम ही प्रमुख हैं तो पार्टी भी तैयार है। द क्विंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी ने 1 लाख व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं। एक ग्रुप में 256 लोग जोड़े जा सकते हैं। हर ग्रुप में 230-240 लोग जुड़े हुए हैं। इस पर यकीन करें तो पार्टी सीधे व्हाट्सएप के माध्यम से 2 करोड़ से अधिक वोटर से जुड़ी हुई है। पार्टी के करीब 20 हजार के ज्यादा पार्टी कार्यकर्ता सोशल मीडिया के जरिए मतदाता का मूड बदलने की कोशिश में लगे हुए हैं। पार्टी के बड़े नेता डिजिटल रैलियों के जरिए जब लोगों को संबोधित करेंगो तो ये कार्यकर्ता जनता तक उसे पहुंचाएंगे।
डिजिटल अखाड़े में आरजेडी का दांव ?
चुनाव में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन जरूरी हो गया है ऐसे में आरजेडी ने भी डिजिटल मूड में चुनाव लड़ने के लिए पूरी तैयारी कर रखी है। पार्टी की तीन सोशल मीडिया टीमें काम कर रही हैं। दो पटना में जबकि एक टीम दिल्ली में मनोज झा के नेतृत्व में काम करती है। यही नहीं बूथ कमेटियों को भी ऑनलाइन माध्यम से जोड़ा जा रहा है। प्रखंड स्तर तक के पार्टी कार्यकर्ताओं को डिजिटल तकनीक का प्रशिक्षण देकर तैयार किया गया है। पार्टी ने हर जिले में प्रखंड स्तर से लेकर राज्य तक अलग-अलग व्हाट्सएप ग्रुप बनाए हैं। आरजेडी ने सभी 38 जिलों का अलग-अलग वेरीफाइड ट्विटर पेज बनाया है। इसके साथ ही पार्टी के प्रमुख नेताओं ने सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ा दी है। यहां तक कि जेल में बंद लालू प्रसाद यादव का ट्विटर एकाउंट से भी लगातार ट्वीट किए जाते रहे हैं। शुक्रवार को चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही लालू यादव के ऑफिशियल अकाउंट से ट्वीट किया गया जिसमें लिखा गया था उठो बिहारी करो तैयारी। इससे ये समझ में आता है कि पार्टी इस बार नए माध्यम के लिए तैयार है।
नीतीश की जेडीयू भी इस बार डिजिटल मोड में
नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड भी इस बार डिजिटल मोड में है। हालांकि जेडीयू तब से ही डिजिटल की ताकत को समझ रही है जब उसके साथ प्रशांत किशोर जुड़े थे। प्रशांत किशोर ही थे जो पहली बार मोदी के साथ थे और बीजेपी ने सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया था। मोदी की डिजिटल रैलियों ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। नीतीश कुमार भी इस बार लगातार वर्चुअल मीटिंग और रैली के जरिए शिलान्यास और उद्घाटन कर रहे थे। जेडीयू ने इस बार प्रचार के लिए हाईटेक रथ बनवाए हैं जिनमें बड़े-बड़े एलईडी स्क्रीन लगे होंगे जिसके माध्यम से पार्टी अपना संदेश लोगों तक पहुंचाएगी।
डिजिटल महासमर में कांग्रेस की तैयारी
चुनाव के इस डिजिटल महासमर में तैयार है। पार्टी लगातार सोशल मीडिया पर नीतीश कुमार और एनडीए की कमियां गिना रही है। जनता तक पहुंचने के लिए भी पार्टी वर्चुअल माध्यमों का सहारा ले रही है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ वर्चुअल सम्मेलन आयोजित कर रही है। पार्टी के बड़े नेता पहले से ही सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। पार्टी की रैलियां फेसबुक और यूट्यूब पर लाइव दिखाई जाएंगी।
हालांकि सभी दल कितना भी दावा कर लें लेकिन डिजिटल अभियान में लड़ाई आसान नहीं होगी। खास तौर पर तब जब बिहार में एक बड़ी आबादी डिजिटल इंडिया के सपने से काफी दूर है। आज भी ग्रामीण इलाके जहां पर ज्यादा आबादी रहती है, इंटरनेट स्पीड की कमी से जूझ रहे हैं। बड़ी संख्या खास तौर पर महिलाओं की एक बड़ी आबादी के पास आज भी अपना अलग मोबाइल नहीं है। इस मामले में वे घर के दूसरे सदस्यों के सहारे ही हैं। साथ ही लोगों में डिजिटल लिटरेसी की भी कमी है। बावजूद इसके डिजिटल चुनावों का आगाज हो चुका है। इन सब मजबूरियों के बीच ही बिहार को अपना नेता चुनना है।
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