लेह तक रेल लाइन बिछाना कितना मुश्किल होगा?
राष्ट्रीय परियोजना घोषित होने पर इस रेल लाइन को बिछाने में आने वाला अधिकतर खर्च केंद्र सरकार को उठाना होगा.
रेलवे द्वारा इस प्रॉजेक्ट के लिए किए गए पहले चरण के सर्वे के मुताबिक़ हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर और मनाली से होते हुए लेह को जोड़ने वाली यह प्रस्तावित रेल लाइन रोहतांग, बारालाचा और तांगला दर्रों से होकर गुज़रेगी.
भारतीय रेलवे ने केंद्र सरकार से सिफ़ारिश की है कि भारत-चीन सीमा के साथ प्रस्तावित बिलासपुर-मनाली-लेह रेल लाइन को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए.
अगर यह रेल लाइन बनकर तैयार होती है तो दुनिया की सबसे ऊंची रेल लाइन बन जाएगी. इसका ट्रैक ऐसे क्षेत्र से होकर गुज़रेगा जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई 5,360 मीटर है.
अभी चीन की चिंगहई-तिब्बत रेल लाइन दुनिया की सबसे ऊंची रेल लाइन है. इसकी समुद्र तल से अधिकतम ऊंचाई 5,072 मीटर है.
उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विशेष चौबे ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया है इस बिलासपुर-मनाली-लेह परियोजना के लिए सर्वे का पहला चरण पूरा हो गया है और शुरुआती अनुमान बताते हैं कि 465 किलोमीटर लंबी रेल लाइन बिछाने में 83,360 करोड़ रुपये का खर्च आएगा.
मुश्किलों भरा होगा निर्माण कार्य
ख़ास बात ये है कि बिलासपुर-मनाली-लेह रेल लाइन के निर्माण में भी कमोबेश वैसी ही जटिलताएं आएंगी, जैसी मुश्किलें चिंगहई-तिब्बत रेल लाइन को बनाने के दौरान आई थीं. दोनों का रास्ता हिमालय के बेहद सख़्त हालात वाले इलाक़े से होकर गुज़रता है.
ऊंची पहाड़ियां, गहरी खाइयां, बर्फ़, जमी हुई मिट्टी, बेहद ठंडा मौसम और ऑक्सिजन की कमी. ऐसे क्षेत्र में ट्रेन चलाना तो दूर, पटरी बिछाना भी चुनौतीपूर्ण है.
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उत्तर रेलवे के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी (निर्माण) आलोक कुमार ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा है इस परियोजना के लिए कई सुरंगों और पुलों का निर्माण करना पड़ेगा.
उन्होंने सर्वे के हवाले से बताया, "इसमें कुल 74 सुरंगें, 124 बड़े पुल और 396 छोटे पुल बनाने पड़ेंगे."
हालांकि उनका कहना है कि 465 किलोमीटर लंबी इस परियोजना के तहत अभी हिमाचल के उपशी से लेह के फ़ी तक का 51 किलोमीटर का हिस्सा दो साल में पूरा किया जा सकता है क्योंकि बाक़ी हिस्सों के मुक़ाबले यहां पर निर्माण थोड़ा करना थोड़ा आसान रहेगा."
चिंगहई-तिब्बत रेल मार्ग
चीन का चिंगहई-तिब्बत रेल मार्ग इस समय दुनिया का सबसे ऊंचा रेल मार्ग है. बिलासपुर-मनाली-लेह मार्ग की तुलना इसी रेल मार्ग से की जा रही है क्योंकि जिस ऊंचाई पर यह रेल मार्ग प्रस्तावित है, उतनी ऊंचाई के आसपास चिंगहई-रेल मार्ग ही काम कर रहा है.
वीरान पहाड़ों से होते हुए तिब्बत के पठार तक रेल पहुंचाने में चीन को भी काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हिमालयी क्षेत्र में रेल प्रॉजेक्ट पूरा करने में कितनी दिक़्क़त आ सकती है.
1,100 किलोमीटर लंबा चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग दुनिया के सबसे पेचीदा बीहड़ों से होकर बनाया गया है. इस ट्रैक की समुद्र तल से अधिकतम ऊंचाई 5,072 मीटर है.
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इस क्षेत्र में तामपान बहुत नीचे गिर जाता है और मौसम भी बहुत सख़्त है. बदलते मौसम और तापमान में परिवर्तन के कारण पटरियां प्रभावित न हों, इसलिए ट्रैक के लंबे हिस्से एलिवेटेड हैं यानी ज़मीन से ऊपर बनाए गए हैं.
चिंगहई-तिब्बत रेल मार्ग में हाई टेक इंजिनियरिंग के इस्तेमाल का दावा किया गया है ताकि रेल ट्रैक जमी हुई मिट्टी में भी स्थिर रहें.
ठंड से जमी हुई मिट्टी तापमान बढ़ने पर पानी छोड़ सकती है और इससे पटरियों को नुक़सान पहुंच सकता है. वह पिघले न, इसके लिए कुछ जगहों पर कूलिंग पाइप लगाए गए हैं.
पटरियों का निर्माण पूरा होने के बाद रेल चलाना भी आसान नहीं था. इस ट्रैक पर पूरी तरह हवारोधी डब्बे इस्तेमाल होते हैं ताकि यात्री ठंड और ऊंचाई पर ऑक्सिजन की कमी से बचे रहें. इसके लिए डब्बों के अंदर ऑक्सिजन की मात्रा नियंत्रित की जाती है.
इसके साथ ही ट्रेन की खिड़कियों पर अल्ट्रा वायलट फिल्टर लगे हैं ताकि बर्फ़ पर सूरज की रोशनी से होने वाली चकाचौंध से सुरक्षा हो सके.
पर्यावरण को लेकर चिंताएं
चीन ने जब चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग पर काम शुरू किया था तो कई पर्यावरणविदों ने चिंता जाहिर की थी. उनका कहना था कि हिमालय के संवेदनशील पर्यावरण को इससे नुकसान पहुंचेगा.
हालांकि, चीन का कहना था कि इस लाइन के निर्माण में इस बात का ख़ास ध्यान रखा गया कि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे. चीनी प्रशासन का दावा था कि जानवरों के एक जगह से दूसरी जगह जाने के प्राकृतिक समय के दौरान कोई मुश्किल न आए, इसके लिए काम को रोक दिया गया था.
चीन का कहना था कि पांच साल में इस रेल लाइन के निर्माण पर 4.2 अरब डॉलर की लागत आई है. साल 2006 में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ ने इसका उद्घाटन किया था.
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लेह तक कब तक बिछेगी पटरी?
रेलवे का लक्ष्य है कि 2022 तक बिलासपुर-मनाली-लेह प्रॉजेक्ट को पूरा कर लिया जाए. लेकिन इस पूरी रेल लाइन को बनाने के लिए रेलवे को अत्याधुनिक तकनीक की भी ज़रूरत है.
इसके लिए अमरीका से उपग्रहों की तस्वीरों की ज़रूरत पड़ेगी और साथ ही पूरे ट्रैक के रास्ते के भूगोल को समझने के लिए लेज़र आधारिक लिडार टेक्नॉलजी की भी ज़रूरत पड़ेगी.
भारतीय रेल का कहना है कि उसकी यह रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण पांच परियोजनाओं में से एक है. इसे चीन की साथ लगती सीमा की सुरक्षा के लिए बेहद अहम समझा जा रहा है. इसलिए रेलवे चाहता है कि इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए.
उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विशेष चौबे ने पीटीआई से कहा है, "इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि एक बार पूरा हो जाने के बाद यह हमारी सेनाओं के लिए मददगार होगा और पर्यटन को भी बढ़ाएगी. इससे क्षेत्र के विकास में मदद मिलेगी."
राष्ट्रीय परियोजना घोषित होने पर इस रेल लाइन को बिछाने में आने वाला अधिकतर खर्च केंद्र सरकार को उठाना होगा.
रेलवे द्वारा इस प्रॉजेक्ट के लिए किए गए पहले चरण के सर्वे के मुताबिक़ हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर और मनाली से होते हुए लेह को जोड़ने वाली यह प्रस्तावित रेल लाइन रोहतांग, बारालाचा और तांगला दर्रों से होकर गुज़रेगी.
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