भारत की स्पेस पावर पाकिस्तान के लिए कितनी ख़तरनाक
विशेषज्ञों का मानना है कि बुधवार को जिस उपग्रह को निशाने पर लिया गया वो शायद माइक्रोसैट-आर था, जिसे जनवरी में छोड़ा गया था. बताया जा रहा है कि यह सैटलाइट पृथ्वी से 260 से 280 किलोमीटर की दूरी पर था और यह तुलनात्मक रूप से कम दूरी का टारगेट था.
फ़रवरी 2017 में जब इसरो ने एक रॉकेट के ज़रिए 104 सैटलाइट को सफलता पूर्वक अंतरिक्ष में भेजा तो सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था अमरीका बनाम रूस भूल जाइए क्योंकि अंतरिक्ष में असली रेस तो एशिया में चल रही है.
इस रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत ने मंगलयान भेजने के बाद एक और कमाल कर दिखाया. एक रॉकेट के ज़रिए एक साथ 104 उपग्रह आज तक किसी देश ने सफलता पूर्वक अंतरिक्ष में नहीं भेजे थे. इससे पहले 2014 में रूस ने 37 उपग्रह भेजे थे.
ऑब्जर्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन में न्यूक्लियर एंड स्पेस पॉलिसी के प्रमुख राजेश्वरी पिल्लई राजगोपालन ने भारत की इस कामयाबी पर कहा था कि यह बहुत बड़ी उपलब्धि है और इससे साबित होता है कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम काफ़ी आगे निकल चुका है.
एशिया में भारत, चीन और जापान अंतरिक्ष में एक लंबा सफ़र तय कर चुके हैं. इस मामले में दक्षिण कोरिया भी काफ़ी कुछ कर रहा है. कहा जा रहा है कि एशिया में अंतरिक्ष प्रोग्राम को लेकर जो गतिविधियां चल रही हैं वो 20वीं सदी के मध्य में शीत युद्ध के दौरान की अंतरिक्ष होड़ की याद दिलाता है.
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बुधवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा करते हुए बताया कि भारत ने एंटी-सैटलाइट मिसाइल का सफलता पूर्वक परीक्षण किया है. इस परीक्षण में भारत ने 300 किलोमीटर दूर एक उपग्रह को मार गिराया.
दावा किया गया कि लंबे समय से भारत का यह परीक्षण अटका हुआ था. इस सफलता के साथ ही भारत अमरीका, रूस और चीन की पंक्ति में खड़ा हो गया है.
बुधवार को 11 बजकर दस मिनट पर ओडिशा के अब्दुल कलाम द्वीप से भारत ने थ्री-स्टेज इंटरसेप्टर मिसाइल से इसका परीक्षण किया. इसके एक घंटे बाद पीएम मोदी ने 'मिशन शक्ति' की सफलता की घोषणा की.
दो रॉकेट बुस्टर के साथ 18 टन की मिसाइल से 740 किलो के उपग्रह को लो अर्थ ऑर्बिट में तीन मिनट में मार गिराया गया.
भारत की इस कामयाबी का रणनीतिक महत्व भी बताया जा रहा है. सैटलाइट किलर मिसाइल से भारत अपने दुश्मन के उपग्रह को नष्ट कर सकता है.
हालांकि चीन ने इस क्षमता को 12 साल पहले ही हासिल कर लिया था. भारत ने इसका परीक्षण 300 किलोमीटर की ऊंचाई पर किया है लेकिन डीआरडीओ के वैज्ञानिकों का मानना है कि ज़रूरत पड़ने पर 1000 किलोमीटर तक भी जाया जा सकता है.
सेक्युर वर्ल्ड फाउंडेशन में प्रोग्राम और प्लानिंग के निदेशक ब्रायन वीडेन ने अमरीकी वेबसाइट एनपीआर से कहा है कि भारत 2007 से ही एंटी-सैटलाइट मिसाइल के परीक्षण की कोशिश कर रहा था.
वीडेन ने कहा है, ''चीन के पास यह क्षमता 2007 में ही आ गई थी और भारत तबसे इसे हासिल करने की कोशिश कर रहा था. भारत ने यह परीक्षण चीन को देखते हुए किया है. भारत इस मामले में चीन से पिछड़ने के कारण परेशान था.''
मैसाच्युसेट इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलजी में असोसिएट प्रोफ़ेसर विपिन नारंग का कहना है कि इस परीक्षण से भारत बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम से आगे बढ़ेगा.
उन्होंने कहा, ''उपग्रह को मार गिराने वाली मिसाइल के परीक्षण में सफलता भारत के लिए एक उम्मीद है कि वो बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस टेस्ट में छलांग लगा आगे निकलेगा.''
नारंग ने एनपीआर से कहा है, ''भारत की मिसाइल डिफेंस में दिलचस्पी एक और क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को लेकर भी है. इसके संकेत हैं कि भारत अपनी परमाणु नीति को बदल रहा है. भारत पूरी तरह से युद्ध शुरू होने से पहले पाकिस्तान के ज़्यादातर परमाणु हथियारों को नष्ट करना चाहेगा. भारत को पाकिस्तान के रणनीतिक परमाणु सिस्टम को नष्ट करना होगा लेकिन इसके साथ ही बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस की भी ज़रूरत पड़ेगी. दूसरे शब्दों में कहें तो संभव है कि अगर पाकिस्तान परमाणु मिसाइल दागता है तो भारतीय डिफेंस सिस्टम उसे लैंड करने से पहले ही नष्ट कर दे.''
In the journey of every nation there are moments that bring utmost pride and have a historic impact on generations to come.
One such moment is today.
India has successfully tested the Anti-Satellite (ASAT) Missile. Congratulations to everyone on the success of #MissionShakti.
— Chowkidar Narendra Modi (@narendramodi) 27 March 2019
नारंग कहते हैं कि इस परीक्षण की घोषणा का समय महज एक संयोग नहीं है. कुछ ही दिनों में भारत में आम चुनाव होना वाला है और भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा को बड़े मुद्दे के तौर पर पेश कर रही है.
नारंग का कहना है कि प्रधानमंत्री ने टीवी पर घोषणा की जबकि चीन ने जब इसे अंजाम दिया था तो गोपनीय रखा था. नारंग के अनुसार यह परीक्षण बहुत ही राजनीतिक है.
विशेषज्ञों का मानना है कि बुधवार को जिस उपग्रह को निशाने पर लिया गया वो शायद माइक्रोसैट-आर था, जिसे जनवरी में छोड़ा गया था. बताया जा रहा है कि यह सैटलाइट पृथ्वी से 260 से 280 किलोमीटर की दूरी पर था और यह तुलनात्मक रूप से कम दूरी का टारगेट था.
इसका मतलब ये है कि इसका कचरा जल्दी पृथ्वी पर गिर जाएगा. वीडेन का मानना है कि ये बड़े ख़तरनाक हथियार होते हैं क्योंकि इससे बेशुमार कचरा पैदा होता है.
नेशनल इंटरेस्ट में रक्षा विशेषज्ञ जॉर्ज लियोपोल्ड ने लिखा है कि एंटी-सैटलाइट मिसाइल सिस्टम हासिल होने से सैन्य क्षमता में बढ़ोतरी लाज़िमी है.
जॉर्ज ने लिखा है कि इससे नेविगेशन, संचार और ख़ुफ़िया जानकारी मुकम्मल होती है. ज़ॉर्ज से अनुसार एयरफ़ोर्स के लिए यह काफ़ी मायने रखता है. 1962 में भारत ने अंतरिक्ष प्रोग्राम शुरू किया था और अब मंगयलान तक की यात्रा तय कर चुका है.
भारत ने इसे स्पेस में 2014 में महज 7.4 करोड़ डॉलर खर्च कर भेजा था. इसका खर्च हॉलीवुड की फ़िल्म 'ग्रैविटी' से भी कम आया. मंगलयान अब भारत का गर्व बना चुका है और इसे 2000 के नोट पर जगह दी गई है.
दिल्ली स्थित थिंक टैंक सोसायटी फोर पॉलिसी स्टडीज के निदेशक उदय भास्कर ने सीएनएन से कहा है कि बाक़ी देशों की तुलना में भारत अंतरिक्ष में उपग्रह 60 फ़ीसदी से 70 फ़ीसदी कम क़ीमत पर भेजता है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां एरोस्पस इंजीनियरों को बहुत कम सैलरी मिलती है. सीएनएन के अनुसार भारत में उच्च स्तर के एरोस्पेस इंजीनियरों की सैलरी महज 70 हज़ार प्रति महीने है.
चीन और रूस की एयरसैटलाइट क्षमता से भविष्य में मुक़ाबला करने के लिए अमरीका ने 2015 में 32 अरब डॉलर का निवेश किया था. चीन, रूस और अमरीका में इसे लेकर पहले से ही होड़ थी और इसमें अब भारत भी शामिल होता दिख रहा है.