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पहले ही संकट से जूझ रही कांग्रेस कैसे धारा 370 पर आपस में ही बिखर गई

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नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी पिछले दो महीनों से पार्टी नेतृत्व के सवाल को हल नहीं कर पाई है। कांग्रेस का अगला नेता कौन होगा, ना तो इसकी जानकारी किसी को है और ना ही अध्यक्ष पद के लिए नए नेताओं के नामों पर लगाए जाने वाले कयास को कोई उचित बल ही मिल रहा है। इसी बीच नरेंद्र मोदी की प्रचंड बहुमत वाली सरकार लोकसभा और राज्यसभा से ऐसे बिलों को पास कर ले रही है जो मुद्दे भाजपा के कोर मुद्दे रहे हैं। इन सारे मुद्दों पर लिए गए फैसले, चाहे तीन तलाक को निरस्त करने का मामला रहा हो या फिर आर्टिकल-370 और आर्टिकल 35-A को शून्य घोषित करना, भारतीय राजनीति में 'मील का पत्थर' साबित होने वाले हैं। हालांकि इन तमाम मुद्दों पर काफी विवाद हुए हैं और इस पर लिया गया फैसला कितना जायज़ है और कितना नाजायज यह अलग मुद्दा है।

कांग्रेस का स्टैंड क्या रहा

कांग्रेस का स्टैंड क्या रहा

आर्टिकल 370 पर मचे घमासान में जब सरकार इतना बड़ा फैसला ले रही थी तब विपक्षी दल खासकर कांग्रेस मजबूती से अपनी बात नहीं रख पाई। राहुल गांधी ने इस मामले में एक ट्वीट किया था लेकिन इतने बड़े और गंभीर मसलों पर यह ट्वीट काफी नहीं था। कांग्रेस नेताओं की राय आपस मे ही बंटी हुई थी। एक ओर कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद का कहना था कि अनुच्छेद 370 ने राज्य के इलाकों, जम्मू, कश्मीर और लद्दाख़ को धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर बांध कर रखे हुए था। सरकार ने आर्टिकल 370 को समाप्त करके जम्मू-कश्मीर को ही ख़त्म कर दिया है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने इसे भारत के संवैधानिक इतिहास का सबसे बुरा दिन बताया तो वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस के कुछ नेताओं की सोच इससे बिलकुल अलग थी।

कांग्रेस के स्टैंड से अलग होना

कांग्रेस के स्टैंड से अलग होना

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, 'जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ को लेकर उठाए गए क़दम और भारत देश में उनके पूर्ण रूप से एकीकरण का मैं समर्थन करता हूँ। संवैधानिक प्रक्रिया का पूर्ण रूप से पालन किया जाता तो बेहतर होता, साथ ही कई प्रश्न खड़े नहीं होते। लेकिन ये फ़ैसला राष्ट्रहित में लिया गया है और मैं इसका समर्थन करता हूँ।' दीपेंदर सिंह हुड्डा ने लिखा, 'मेरा पहले से ये विचार रहा है कि 21वीं सदी में अनुच्छेद 370 का औचित्य नहीं है और इसको हटना चाहिए।' इसके अलावे पुराने कांग्रेसी नेताओं ने भी पार्टी के स्टैंड से अलग अपनी राय रखी। वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी ने कहा, 'एक भूल जो आज़ादी के समय हुई थी, उस भूल को देर से ही सही सुधारा गया और ये स्वागत योग्य है।' वहीं कश्मीर के राजा हरी सिंह के बेटे कांग्रेसी नेता कर्ण सिंह ने भी इस धारा 370 के हटने के पक्ष में अपनी सहमति दिखाई। उनका कहना है कि जो कुछ हुआ है वो निजी तौर पर उसकी पूरी तरह निंदा नहीं करते हैं लेकिन इसमें कुछ सकारात्मक बातें भी हैं।

बात इतनी तक ही नहीं रही। तक़रीबन चार दशकों से कांग्रेस से जुड़े रहे और असम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में कांग्रेस व्हिप भुवनेश्वर कलिता ने इस मसले की वजह से पार्टी से इस्तीफ़ा देकर सभी को आश्चर्य में डाल दिया। उनका मानना था कि एक देश में दो संविधान नहीं होने चाहिए।

कांग्रेस की दुविधा

कांग्रेस की दुविधा

इस बात में कोई दो राय नहीं कि भाजपा ने एक नयी राजनीति की शुरुआत की है जिसके हर फैसले में राष्ट्रवाद का लेप चढ़ा होता है। हालांकि भाजपा की मूल राजनीति भी यही रही है। आज के दौर में जब भाजपा द्वारा परिभाषित राष्ट्रवाद का उभार हर तरफ है, खासकर के युवाओं में, तो किसी भी दल का कोई नेता उनके इस तथाकथित राष्ट्रवाद के आड़े आना नहीं चाह रहा है। ऐसा कांग्रेस में भी है। भाजपा में नरेंद्र मोदी के उभार नें एक नयी राजनीति को 'इंट्रोड्यूस' किया है। किसी भी पार्टी के युवा नेताओं को इस नयी राजनीति के दौर में यह एहसास है कि उनके आगे लंबी राजनीति पड़ी है। देश की सोच बदल रही है। कांग्रेस खुद कभी सॉफ़्ट हिंदुत्व को स्वीकार करती दिखती है तो कभी सेक्युलरिज़्म की बात करती है। किसी मुद्दे पर वैसा स्टैंड नहीं ले पा रही है जैसा एक प्रबुद्ध विपक्ष को लेना चाहिए। कुल मिलाकर देखें तो कांग्रेस दुविधा में नजर आती है। इस मुद्दे पर अगर कांग्रेस सरकार का समर्थन खुलकर करती तो यह संदेश जाता कि कांग्रेस अब अपनी मूल विचारधारा छोड़ रही है और विडम्बना है कि यह उसकी मूल विचारधारा है नहीं। कांग्रेस इसी वैचारिक दुविधा में पड़ी रही और धीरे-धीरे आपस में ही बिखर गई।

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English summary
How Congress, already struggling with crisis, disintegrated itself on Article 370?
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