कैसे पूर्वी यूपी से पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के रास्ते आसानी से लखनऊ पहुंचना चाहती है बीजेपी ? जानिए
लखनऊ, 16 नवंबर: पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की शुरुआत के साथ ही एक तरह से दिल्ली से बिहार की सीमा तक एक्सप्रेसवे कनेक्टिविटी मिल गई है। क्योंकि, यह एक्सप्रेसवे ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे, ताज एक्सप्रेसवे और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का ही पूर्वी यूपी में गाजीपुर तक विस्तार है। हालांकि, सुल्तानपुर में मंगलवार को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे उद्घाटन के मौके पर जिस तरह का नजारा दिखा, वैसा पांच साल पहले भी दिख चुका है। अंतर यही है कि तब उत्तर प्रदेश में सरकार अलग थी। लेकिन, सिर्फ इस तथ्य को छोड़कर बीजेपी के लिए पूर्वांचल एक्सप्रेसवे बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि, इसपर उसकी सरकार ने काफी निवेश तो किया ही है, पार्टी ने पूर्वी यूपी में बहुत ही ज्यादा राजनीतिक निवेश भी कर रखा है।

पांच साल बाद कितना बदला उत्तर प्रदेश ?
पांच साल पहले 2016 में वह नवंबर महीना ही था, जब 302 किलोमीटर लंबा आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस का आगाज हुआ था। तब भी भारतीय वायुसेना के जहाजों ने उसपर उतरकर दिखाया था और लड़ाकू विमानों ने भी माहौल को उत्साहित कर दिया था। 341 किलोमीटर लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के लोकार्पण के मौके पर हम सबने देखा कि किस तरह से सुल्तानपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद एयर फोर्स के विमान सी-130 हरक्यूलिस से एक्सप्रेसवे पर उतरे। उसके बाद एयर शो में भी भारतीय वायुसेना के विमानों मिराज 2000 , जगुआर ने करतब दिखाते हुए भारत की सैन्य क्षमता का बेहतरीन प्रदर्शन किया। उस समय पूर्व सीएम अखिलेश यादव के साथ सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव थे, तो मंगलवार को सीएम योगी के साथ खुद पीएम मोदी की मौजूदगी थी। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर ने इसे सपा की नकल बताकर तंज भी कसा है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए है बहुत ही महत्वपूर्ण
यूपी विधानसभा चुनाव में मुश्किल से तीन महीन ही बचे हैं। अगर पिछले चुनाव में आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस के उद्घाटन के बाद उस इलाके में समाजवादी पार्टी के प्रदर्शन को देखें तो वह पूरी तरह से फ्लॉप हो गई थी। उस एक्सप्रेसवे से लगे 10 जिलों में पार्टी सिर्फ 10 विधानसभा सीटें ही जीत पाई थी। जबकि, तब बीजेपी को वहां 48 सीटें मिली थीं। बीएसपी और कांग्रेस भी एक-एक सीट ही जीत सकी थी। लेकिन, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे भाजपा के लिए उससे बिल्कुल अलग महत्त्व का है। कम से कम पिछले सात-आठ वर्षों में बीजेपी ने यहां बहुत ही ज्यादा फोकस किया है, राजनीतिक रूप से भी बहुत ज्यादा निवेश कर रखा है। पीएम मोदी और सीएम योगी दोनों का गढ़ भी यहीं है। पिछले तीन चुनावों से भाजपा ने यहां पूरी तरह से अपना दबदबा बनाकर रखा है और यह सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद बरकरार रहा।

पूर्वांचल एक्सप्रेस लखनऊ पहुंचने का आसान रास्ता!
उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 सीटों में पूर्वांचल में कुल 164 हैं, जो कि करीब एक-तिहाई बैठती हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां क्लीन स्वीप किया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी इनमें से 115 सीटें जीत गई थीं। सपा महज 17 सीटें ले पाई थी और उसकी तब की सहयोगी कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं। बसपा 14 और अन्य के खाते में 16 सीटें आई थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने जीत में अपना दबदबा कायम रखा और पूर्वांचल की ज्यादातर सीटें जीत गई। ऐसे में बीजेपी लखनऊ तक पहुंचने के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश को नजरअंदाज नहीं कर सकती, जिसे पूर्वांचल एक्सप्रेस और आसान बनाएगा वह यही उम्मीद लेकर चल रही है। यही वजह है कि पीएम मोदी और सीएम योगी के अलावा भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह का भी इधर लगातार आना-जाना लगा हुआ है।

पूर्वांचल पर पीएम मोदी का फोकस
अक्टूबर में पीएम मोदी ने 5 दिनों के अंदर पूर्वांचल के दो दौरे किए और मंगलवार को सुल्तानपुर पहुंचना उनका महीने भर में इस इलाके का तीसरा दौरा है। इससे पहले उन्होंने कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट का उद्घाटन किया था, जो कि राज्य का तीसरा इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। इसके अलावा वो वाराणसी में 5,229 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं का लोकार्पण पहले ही कर चुके हैं। सिद्धार्थनगर में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर समेत वे 9 मेडिकल कॉलेजों और 2,500 बेड वाले अस्पातल की भी घोषणा कर चुके हैं।

पूर्वांचल एक्सप्रेस से किसे साधना चाहती है बीजेपी ?
341 किलोमीटर लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के निर्माण पर 22,497 करोड़ रुपये की लागत आई है, जिसे तीन वर्षों में बनाया गया है। यह सड़क लखनऊ के चौदसराय से यूपी-बिहार सीमा से 18 किलोमीटर पहले नेशनल हाइवे-31 पर स्थित गाजीपुर के हैदरिया को जोड़ती है। उत्तर प्रदेश के जिन जिलों से होकर यह एक्सप्रेस गुजरता है वे हैं- लखनऊ, बाराबंकी, अमेठी, अयोध्या, सुल्तानपुर, अंबेडकर नगर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर। इनमें से कई तो वही इलाके हैं, जिसे ध्यान में रखकर भाजपा ने अपना दल और निषाद पार्टी जैसे छोटे जाति आधारित दलों से गठबंधन किया है और इस तरह की सोशल इंजीनियरिंग का उसे पिछले तीनों चुनावों में फायदा भी मिल चुका है। (एक को छोड़कर बाकी तस्वीरें सौजन्य: उत्तर प्रदेश एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी के ट्विटर हैंडल से)