कश्मीर और लद्दाख में कैसे पांव पसार रही है बीजेपी
अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए को निरस्त किए जाने के 100 से ज्यादा दिनों के बाद भी कश्मीर घाटी में पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का मुख्यालय बंद पड़ा हुआ है. श्रीनगर के लाल चौक इलाके में चिनार के पेड़ों के नीच पार्टी मुख्यालय का दरवाज़ा नुकीले तारों के बीच बंद है. वहां तैनात पैरामिलिट्री के जवान हमारी मौजूदगी से सक्रिय होते हैं.
अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए को निरस्त किए जाने के 100 से ज्यादा दिनों के बाद भी कश्मीर घाटी में पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का मुख्यालय बंद पड़ा हुआ है.
श्रीनगर के लाल चौक इलाके में चिनार के पेड़ों के नीच पार्टी मुख्यालय का दरवाज़ा नुकीले तारों के बीच बंद है. वहां तैनात पैरामिलिट्री के जवान हमारी मौजूदगी से सक्रिय होते हैं. बंकर में बनी एक छोटी सी खिड़की से आवाज़ आती है, "पत्रकार हो?"
उनकी बंदूक की नली सामने सड़क की ओर तनी हुई है. जब उन्होंने हमारी पहचान सुनिश्चित कर ली तो कहा, "आपको यहां नहीं होना चाहिए. इमारत की तस्वीर मत लो."
हालांकि थोड़ी देर मनाने के बाद उन्होंने हमें न्यूज़ स्टोरी के लिए कुछ विजुअल बनाने की इजाज़त दे दी.
पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रवक्ता ताहिर सईद बताते हैं, "जब पार्टी के सभी सदस्य कथित तौर पर नजरबंद हों तो कोई कार्यालय कैसे काम कर सकता है."
5 अगस्त, 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करके जम्मू एवं कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था.
इसके बाद से ही कश्मीर में इंटरनेट बंद है जबकि आधे मोबाइल फ़ोन काम नहीं कर रहे हैं. आम परिवहन और ज़्यादातर कारोबारी संस्थान बंद हैं.
सड़कों पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन की भी इजाज़त नहीं है, ऐसा करने पर लोग हिरासत में लिए जा सकते हैं, गिरफ़्तार हो सकते हैं और रिहाई के लिए उन्हें बॉन्ड भरना पड़ रहा है.
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद भारत सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर राज्य का पुनर्गठन करते हुए इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया.
पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रवक्ता सईद बताते हैं, "5 अगस्त के बाद जो भी हो रहा है वह लोकतंत्र के लिए मजाक से कम नहीं है. मैं तो इसे डेमोक्रेसी की जगह 'डेमोन क्रेज़ी' कहूंगा."
सईद उन गिने चुने नेताओं में हैं जो हिरासत में नहीं हैं.
यहां तक कि अब तक भारत की हिमायत करने वाले जम्मू कश्मीर के मुख्य राजनीतिक दलों- नेशनल कांफ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और पीपल्स कांफ्रेंस के ज़्यादातर नेता या तो नजरबंद हैं या हिरासत में हैं.
उन्हें पार्टी के दूसरे सदस्यों या फिर किसी राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने के इजाज़त नहीं है. इससे पहले कश्मीर के सबसे बड़े सामाजिक-धार्मिक संगठन जमाते-इस्लामी के हजारों सदस्यों को हिरासत में लिया गया था.
वहीं दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के श्रीनगर स्थित राज्य कार्यालय में रौनक दिखती है, पार्टी के अधिकारी-कार्यकर्ता तो हैं ही, विज़िटर्स भी आ जा रहे हैं.
दफ़्तर के बाहर गाड़ियों का बेड़ा दिखता है. जब हम बीजेपी दफ़्तर पहुंचे उस वक्त जम्मू कश्मीर बीजेपी के महासचिव अशोक कौल दफ़्तर पहुंचे और उनसे मिलने के लिए लोग इंतज़ार कर रहे हैं, इनमें से ज़्यादातर पार्टी के कार्यकर्ता हैं.
अशोक कौल बताते हैं, "पिछले कुछ सालों से, हम लोग जम्मू-कश्मीर में पार्टी को मज़बूत बनाने के लिए काम कर रहे थे. अब हमें लोगों का समर्थन मिल रहा है. श्रीनगर पार्टी कार्यालय में मैं इसे महसूस करता हूं. जब भी यहां आता हूं, कश्मीरी लोग मिलने के लिए आते हैं, वे बीजेपी से जुड़ना चाहते हैं और बड़ी संख्या में पार्टी में शामिल हो रहे हैं."
अपनी ज़मीन तैयार कर ही है बीजेपी?
बीजेपी कश्मीर में अपने आधार को मज़बूत करने की कोशिशों में जुटी है, वहीं पीडीपी के प्रवक्ता ताहिर सईद बताते हैं कि बीजेपी देश भर में लोकतांत्रिक व्यवस्था का मज़ाक उड़ा रही है.
ताहिर सईद कहते हैं, "बीजेपी राष्ट्र हित के बदले अपनी पार्टी का हित देख रही है. उन्हें अगर देश की परवाह होती तो वे ना तो किसी राजनीतिक दल पर अंकुश लगाते और ना ही राजनीतिक गतिविधि पर. यहां तक कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी बैठक करने की इजाज़त नहीं है. यह लोकतंत्र का मज़ाक ही तो है."
90 के दशक से ही, कश्मीर में ना तो विधानसभा और ना ही लोकसभा में बीजेपी को किसी सीट पर जीत मिली है लेकिन पार्टी ज़मीनी स्तर पर अपने काडरों को तैयार करना चाहती है.
बीजेपी के अशोक कौल बताते हैं, "2015 में, कश्मीर में हमारे 2.5 लाख सदस्य थे. 6 जुलाई, 2019 से हमने सदस्यता अभियान चलाया. तब इंटरनेट चल रहे थे, पार्टी में 46 हज़ार नए सदस्य ऑनलाइन से जुड़े. इंटरनेट पर पाबंदी के बाद हमने ऑफ़ लाइन सदस्यता अभियान चलाया. कल ही हमने सदस्यों की संख्या जोड़ी है, ऑफ़ लाइन हमने 60 हज़ार सदस्यों को जोड़ा यानी हम कश्मीर घाटी में हमारे सदस्यों की संख्या 3.5 लाख तक पहुंच चुकी है."
बीजेपी का सदस्यता अभियान पूरा हो चुका है. अब बीजेपी बूथ स्तर तक के ढांचे को अंतिम रूप देने में जुटी है, बीजेपी कश्मीर घाटी में पहली बार यह काम करने जा रही है.
कौल बताते हैं, "3.5 लाख कार्यकर्ता बूथ अध्यक्ष के चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं. यह 5000 पोलिंग बूथ के लिए होने वाला है. इसके बाद हम विधानसभा अध्यक्ष और फिर ज़िला अध्यक्ष का चुनाव करेंगे. हमारी कोशिश है कि हम दिसंबर, 2019 तक यह चुनाव करा लें."
'दूसरों दलों को नहीं मिल रहा बढ़ने का मौक़ा'
राशिदा मीर बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की सदस्य हैं. वे बीते तीन से साल पार्टी से जुड़ी हैं और उन्हें कश्मीर में पार्टी का भविष्य बेहतर दिख रहा है.
राशिदा मीर कहती हैं, "अनुच्छेद-370 को हटाने के बाद हमें ज़मीनी स्तर पर लोगों को समझाने में मुश्किल हो रही थी लेकिन जब हम लोगों को ये बताते कि इससे कैसे उनका फ़ायदा होने वाला है तो लोग समझ जाते थे."
विपक्षी राजनीतिक दलों के नेताओं के हिरासत में होने से बीजेपी को अपना अभियान चलाने के लिए ज़्यादा स्पेस मिलने के सवाल पर राशिदा मीर ने कहा, "जो भी दोषी होगा, वह तो हमेशा हिरासत में होगा, लेकिन सच यही है कि हमें कश्मीर में अपनी स्थिति मज़बूत करने का अवसर मिला है."
एक ओर बीजेपी अगले कुछ महीनों में अपने पार्टीगत ढांचे को अंतिम रूप देने जा रही है वहीं दूसरी ओर विपक्षी पार्टियां जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन होने के बाद अपने पार्टीगत ढांचे पर काम नहीं कर सकी हैं.
राज्य के तीन मुख्यमंत्री, राजनीतिक नेता और कश्मीर में बीजेपी को छोड़कर मुख्यधारा की सभी पार्टियों के कार्यकर्ता बीते पांच अगस्त से ही हिरासत में हैं.
कश्मीर यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के अस्सिटेंट प्रोफेसर एजाज़ अशरफ़ वानी के मुताबिक़ जब अंकुश लगा लोकतंत्र हो तो सतारूढ़ दल को फ़ायदा पहुंचता है.
वे बताते हैं, "जब आपको कोई राजनीतिक चुनौती नहीं मिल रही हो तो यह किसी भी लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होता. कश्मीर के मामले में, यह अभूतपूर्व स्थिति है, जिसमें आप लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धी को पनपने का मौका नहीं दे रहे हैं, इसे आप नियंत्रित लोकतंत्र या अंकुश वाला लोकतंत्र कह सकते हैं. ऐसे में बीजेपी मजबूत होगी. कश्मीर में ऐसी स्थिति पहले भी रही है. इससे पहले यही काम कांग्रेस कर रही थी, अब बीजेपी कर रही है."
एजाज़ अशरफ़ वानी के मुताबिक़, "कश्मीर में बीजेपी की ताकत और बढ़ेगी. सभी क्षेत्रीय राजनीतिक दल अपने मेनिफेस्टो में ऐतिहासिक तौर पर कश्मीरी पहचान और अनुच्छेद 370 की बात करते आए हैं, अब उनकी कोई जगह नहीं बचेगी. यह भी कहा जा रहा है कि कश्मीरी नेताओं ने लोगों को धोखा दिया है. उन्होंने हमेशा अनुच्छेद 370 को निश्चित कराने की बात कही थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ऐसे में अगर वे लोग ये कहेंगे कि हमलोग अनुच्छेद 370 को बहाल किए जाने के लिए संघर्ष करेंगे, तो कोई उनसे प्रभावित नहीं होगा."
अक़बर लोन उत्तर कश्मीर के बारामुला ज़िले से नेशनल कांफ्रेंस के सांसद हैं. उनका दावा है कि कश्मीर का कोई भी समझदार व्यक्ति बीजेपी नहीं जॉइन करेगा और जो लोग पार्टी से जुड़ने का दावा कर रहे हैं वो झूठा दावा कर रहे हैं.
अक़बर लोन कहते हैं, "हमारी पार्टी का भविष्य सुरक्षित है. वे लोग कह रहे हैं कि लोग बीजेपी जॉइन कर रहे हैं, किन लोगों ने उन्हें जॉइन किया है? जिन लोगों ने बीजेपी जॉइन किया है वे या तो सरकार की ओर तैनात आतंकी लड़ाके हैं या फिर कुछ बदमाश लोग."
अक़बर लोन के मुताबिक़, "लद्दाख में, लोग किसी पार्टी को जॉइन नहीं कर रहे हैं. नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के काडर अपनी अपनी पार्टियों के साथ जुड़े हुए हैं. पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के करगिल में कुछ लोगों ने जरूर बीजेपी जॉइन की है लेकिन लद्दाख में पीडीपी पार्टी बहुत मज़बूत नहीं है. इन सबसे कोई बदलाव नहीं होने वाला है."
बदला लद्दाख, करगिल भी बदला
लद्दाख भी अब केंद्रशासित प्रदेश बन चुका है. यहां के लोगों में भारत सरकार के जम्मू कश्मीर को लेकर उठाए गए कदम पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं. करगिल में भारत सरकार के फ़ैसले के विरोध में प्रदर्शन हुआ लेकिन करगिल में ही पीडीपी के पांच बड़े नेताओं ने बीजेपी जॉइन कर ली है.
काटचो गुलजार बीजेपी का सदस्य बनने से पहले पीडीपी के सदस्य थे. वे करगिल इलाके में पीडीपी अध्यक्ष थे, उनका मानना है कि दो केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख में सब कुछ बदल गया है.
वे कहते हैं, "पीडीपी का करगिल में आधार ख़त्म हो गया है. लद्दाख नया केंद्र शासित प्रदेश है. जो राजनीतिक दल कश्मीर केंद्रित हैं उनकी लद्दाख में उपस्थिति नहीं हो सकती."
काटचो गुलजार बताते हैं, "हम भी जम्मू एवं कश्मीर को दो भागों में विभक्त किए जाने के ख़िलाफ़ थे. लेकिन यह लद्दाख या फिर कश्मीर में बिना किसी सलाह लिए कर दिया गया. हमारे पास बीजेपी जॉइन करने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं रह गया था. अगर पीडीपी के नेता हिरासत में नहीं भी होते तो भी लद्दाख में पार्टी ख़त्म होती सी दिख रही है."
करगिल के पत्रकार मुतर्जा फ़ाज़ली बताते हैं, "5 अगस्त के बाद से करगिल में पीडीपी पूरी तरह से बाहर दिख रही है, जबकि बीजेपी लगातार मज़बूत हो रही है."
फ़ाज़ली के मुताबिक़, "हाल में हुए बीडीसी चुनावों में, बीजेपी के टिकट पर लड़ रहे दो उम्मीदवारों ने जीत हासिल की जबकि दो निर्दलीय उम्मीदवार भी उनका समर्थन कर रहे हैं. बीते कुछ चुनावों को अगर आधार मानें तो यह अच्छा प्रदर्शन है. अनुच्छेद 370 को निरस्त करना बीजेपी के लिए रणनीतिक क्षण भी साबित हुआ है, क्योंकि इसके बाद से हाजी इनायत अली जैसे पीडीपी नेताओं ने बीजेपी का दामन थाम लिया. इसलिए करगिल की राजनीतिक फिज़ा धीरे धीरे बदल रही है जबकि लेह में बदल चुकी है."
कश्मीर के साथ कश्मीरी राजनीति भी निर्णायक दौर से गुज़र रही है, यह ऐसा दौर है जहां से कोई कश्मीर के भविष्य के बारे में ठीक ठीक नहीं बता सकता.