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शरद पवार के लिए महाराष्ट्र की महाभारत कितनी बड़ी चुनौती?

ये कहना ग़लत न होगा कि महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक ऑर्केस्ट्रा में शरद पवार एक मंझे हुए संचालक की भूमिका में हैं.  राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक 79 वर्ष के हैं लेकिन उनमें ऊर्जा जवानों की तरह है. सियासी विश्लेषकों के अनुसार, अगर राज्य में एनसीपी-कांग्रेस-शिव सेना की मिली-जुली सरकार बनती है तो इसका काफ़ी हद तक श्रेय शरद पवार को दिया जाना चाहिए.

By ज़ुबैर अहमद
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शरद पवार
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शरद पवार

ये कहना ग़लत न होगा कि महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक ऑर्केस्ट्रा में शरद पवार एक मंझे हुए संचालक की भूमिका में हैं.

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के संस्थापक 79 वर्ष के हैं लेकिन उनमें ऊर्जा जवानों की तरह है. सियासी विश्लेषकों के अनुसार, अगर राज्य में एनसीपी-कांग्रेस-शिव सेना की मिली-जुली सरकार बनती है तो इसका काफ़ी हद तक श्रेय शरद पवार को दिया जाना चाहिए.

महाराष्ट्र में ताज़ा सियासी उथल-पथल से एनसीपी को सत्ता में वापसी का एक अवसर पैदा होता नज़र आता है. क्या ये इस कद्दावर नेता के राजनीतिक कौशल की परीक्षा मानी जाएगी?

शरद पवार को 40 साल से क़रीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रताप आसबे कहते हैं, "उनके लिए ये परीक्षा नहीं है. उन्हें गठबंधन सरकार चलाने का पुराना अनुभव है. हाँ ये ज़रूर है कि शिव सेना एक हिंदुत्ववादी पार्टी है. इसके साथ सरकार बनाने का अनुभव नया होगा." शरद पवार चार बार महारष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं जिसमें से दो बार उन्होंने मिली-जुली सरकार चलाई है.

शरद पवार
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शरद पवार

'सब पक्षों को साथ लाने का काम'

राज्य के सियासी गलियारों में लोग शरद पवार की भूमिका को ग़ौर से देख रहे हैं. तीन अलग विचारधारा वाली पार्टियों को एक मंच पर लाने का श्रेय भी लोग उन्हें ही दे रहे हैं.

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत देसाई को लगता है कि शरद पवार शिव सेना और कांग्रेस के बीच एक पुल हैं. बीबीसी मराठी से बातचीत में उन्होंने कहा, "शरद पवार के अनुभव, उम्र और सभी पक्षों के साथ उनके सौहार्दपूर्ण संबंधों को देखते हुए, वे समन्वय समिति के प्रमुख के रूप में एक ही भूमिका निभा सकते थे. जब जनता पार्टी की सरकार आई, तो जयप्रकाश नारायण ने इसी तरह की भूमिका निभाई थी."

पत्रकार प्रताप आसबे कहते हैं कि महाराष्ट्र की ताज़ा नाज़ुक राजनीतिक स्थिति में तीनों दलों को साथ लाने का काम शरद पवार ही कर सकते थे. वह कहते हैं, "सभी पक्षों को मनाने का काम तो शरद पवार ने ही किया है."

शरद पवार सभी राजनीतिक दलों के लिए स्वीकार्य चेहरा हैं. अकसर उनके प्रतिद्वंद्वी दलों के नेताओं को भी उनकी प्रशंसा करते देखा गया है.

अक्टूबर में विधानसभा चुनाव के बाद देवेंद्र फड़नवीस ने स्वीकार किया कि शरद पवार अनुभव के धनी हैं. उनकी पार्टी छोड़ कर शिव सेना में शामिल होने वालों में सचिन अहिर ने बीबीसी से कहा कि वो पार्टी ज़रूर छोड़ कर ज़रूर गए हैं शरद पवार को नहीं. उन्होंने शरद पवार के प्रति अपनी श्रद्धा को खुलकर बयान किया.

शरद पवार
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शरद पवार

विधान सभा चुनाव से पहले उन्हें अपने 50 साल के सियासी करियर का शायद सबसे बड़ा झटका उस समय लगा जब एनसीपी के वफ़ादार समझे जाने वाले नेता पार्टी छोड़कर शिव सेना और बीजेपी में जाने लगे. पार्टी के बड़े नेता ही नहीं बल्कि जिला स्तर के नेता भी दूसरी पार्टियों में चले गए. उस समय पार्टी के प्रवक्ता नवाब मालिक ने बीबीसी से बातचीत में स्वीकार किया था कि पार्टी संकट के दौर से गुज़र रही है.

पार्टी में बचे नेताओं के हौसले पस्त नज़र आ रहे थे. कई लोग एनसीपी के वजूद को ख़तरे में बताने लगे थे. मामले की नज़ाकत को देखते हुए शरद पवार कमर कसकर मैदान में कूद गए और पूरे राज्य के दौरे पर निकल पड़े.

प्रताप आसबे कहते हैं, "पवार जी ने मुझे फोन करके बुलाया और कहा कि हमारे साथ सूखा-पीड़ित क्षेत्रों में चलो. उस समय तापमान 45 डिग्री था. उन्होंने उसी गर्मी में गांवों में तीन-तीन घंटे बैठकें कीं."

शरद पवार
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शरद पवार

शरद पवार के साथ अचानक नौजवान जुड़ने लगे. नवाब मलिक ने उस समय बीबीसी से कहा था कि शरद पवार तीन पीढ़ियों को सियासत में ला चुके हैं और वो चौथी पीढ़ी को मैदान में उतार रहे हैं. नवाब मलिक ने उस समय कहा था, "हम समझते हैं कि जो लोग पार्टी छोड़ कर निकल गए हैं उससे युवाओं को अवसर मिलेगा. हम इस चुनाव के बाद और भी मज़बूत स्थति में उभर कर आएंगे."

उनकी बात सही साबित हुई. पार्टी छोड़ने वालों को वोटरों ने ख़ारिज़ कर दिया और पार्टी को 54 सीटें मिलीं जो 2014 की तुलना में 13 सीटें अधिक थीं. पार्टी के अच्छे प्रदर्शन का एक कारण ये भी था कि अमित शाह समेत समेत बीजेपी के सभी बड़े नेताओं ने शरद पवार पर निजी हमले किये थे. महाराष्ट्र की जनता ने इसे पसंद नहीं किया.

यहां तक कि जब प्रवर्तन निदेशालय की ओर से उन्हें नोटिस दिए जाने की ख़बर फैली तो लोगों ने इसे निजी हमले की तरह देखा जिसका नुकसान बीजेपी को चुनाव में उठाना पड़ा

शरद पवार
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शरद पवार

शरद पवार चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और भारत के रक्षा मंत्री और कृषि मंत्री के पद पर भी रहे हैं. लेकिन सियासी विश्लेषकों के अनुसार एक समय प्रधानमंत्री पद के उमीदवार रहे शरद पवार को उनके क़द के अनुसार देश की सियासत में जगह नहीं मिली. उन्हें अब भी महाराष्ट्र के स्ट्रॉन्ग मैन की तरह देखा जाता है.

शरद पवार का 50 वर्ष का सियासी सफ़र घटनाओं से भरा है. उन्होंने युवा कांग्रेस से अपना सियासी सफ़र शुरू किया. वो आम किसानों और शुगर कोऑपरेटिव से जुड़े बड़े किसानों के नेतृत्व की भूमिका अदा करने लगे. साल 1986 में वो कांग्रेस में वापस लौट गये. लेकिन पत्रकार प्रताप आसबे के अनुसार ये उनकी सबसे बड़ी सियासी भूल थी. वो कहते हैं, "उनका करियर और ऊपर जा सकता था अगर वो खुद को कांग्रेस से अलग रखते."

उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए जाते रहे हैं लेकिन ये आरोप साबित नहीं हो सके. उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगता है. उनकी बेटी सुप्रिया सुले सांसद हैं और उनके भतीजे अजित पवार पार्टी के लगभग नंबर दो हैं. शरद पवार के बारे में ये भी कहा जाता है कि अपनी पार्टी पर उन्होंने ऐसी पकड़ बनाई है कि दूसरों को उनके ख़िलाफ़ बोलने की हिम्मत नहीं होगी.ये कहना कि महाराष्ट्र के नेताओं के बीच उनका क़द इस समय सबसे ऊंचा है तो ग़लत नहीं होगा.

BBC Hindi
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English summary
How big is the Mahabharata of Maharashtra for Sharad Pawar?
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