प्रज्ञा ठाकुर की जीत को कैसे देख रहे भोपाली
भोपाल गैस पीड़ितों के लिए शुरू की गई समाज सेवी संस्था 'स्वाभिमान केंद्र' के संयोजक अब्दुल जब्बर को लगता है कि इस चुनाव में जीतने के लिए भाजपा ने 'तगड़ा ध्रुवीकरण' किया. वो कहते हैं, "प्रज्ञा ठाकुर पर जेल में हुए कथित अत्याचारों का हवाला देकर और उनकी रोती तस्वीरें दिखाकर भाजपा ने लोगों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किया है.
भोपाल लोकसभा सीट 2019 के आम चुनाव की सबसे चर्चित और विवादित सीटों में से एक रही.
वजह हैं भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर. इस लड़ाई में प्रज्ञा ठाकुर ने दिग्विजय सिंह को साढ़े-तीन लाख से भी ज़्यादा मतों के अंतर से हरा दिया.
प्रज्ञा ठाकुर 2008 के मालेगांव ब्लास्ट की मुख्य अभियुक्त हैं और मामले की सुनवाई के वक़्त कुल 9 साल जेल में रह चुकी हैं. फ़िलहाल ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियमन यानी यूएपीए के तहत मुंबई की एक अदालत में उन पर मुक़दमा चल रहा है और वह बेल पर बाहर हैं.
प्रज्ञा आज़ाद भारत की पहली शख़्स हैं जिन पर आतंकवाद के संगीन आरोप में मुक़दमा है फिर भी सत्ताधारी पार्टी ने चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया.
चुनाव से एक महीने पहले बीजेपी में शामिल होने वाली प्रज्ञा चुनावी राजनीति में बिल्कुल नई हैं. वो अपने चुनावी कैम्पेन की शुरुआत से ही विवादों में रहीं. कांग्रेस के ख़िलाफ़ धर्मयुद्ध' बताकर अपना प्रचार अभियान शुरू करने वाली प्रज्ञा कभी 'गो-मूत्र पीने से कैंसर के ठीक होने' का दावा करके तो कभी महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को 'देशभक्त' बताकर लगातार विवादों में रहीं.
साध्वी प्रज्ञा ने महात्मा गांधी और नाथूराम गोडसे को लेकर जो भी बातें कही हैं, वो बातें पूरी तरह से आलोचना के लायक हैं।
सभ्य समाज में इस प्रकार की बातें नहीं चलती हैं।
उन्होंने माफी मांग ली है, लेकिन मैं अपने मन से उन्हें कभी माफ नहीं कर पाऊंगा: पीएम मोदी #DeshKaGauravModi pic.twitter.com/VJdfCiyeti
— BJP (@BJP4India) 17 May 2019
अपने विवादस्पद बयानों के चलते प्रचार के दौरान उन्हें चुनाव आयोग से नोटिस मिले और आचार संहिता का उल्लंघन करने की वजह से चुनाव आयोग ने उन पर 72 घंटे का बैन भी लगा दिया था.
प्रज्ञा ने अपने कैंपेन की शुरुआत ही ध्रुवीकरण की कोशिश से की. भोपाल में छठे चरण में मतदान के दिन तक पहुँचते-पहुँचते लामबंदी तेज़ हो गई थी.
16 मई को पत्रकारों से बातचीत में नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने वाली प्रज्ञा से पार्टी अध्यक्ष अमित शाह समेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी असहमति जताई. बीजेपी ने लिखित में जवाब माँगा है.
हालांकि बाद में प्रज्ञा ने माफ़ी मांगी और मौन की घोषणा की. जीत के बाद प्रज्ञा ने इसे 'धर्म' की जीत बताते हुए भोपाल की जनता को धन्यवाद दिया.
दिग्विजय सिंह सिंह की हार
दूसरी ओर 5,01660 वोट हासिल करने वाले दिग्विजय सिंह ने नतीजों ने बाद अपनी हार स्वीकार करते हुए मीडिया से बातचीत में कहा, 'आज इस देश में गांधी की विचारधारा हार गई और उनके हत्यारों की विचारधारा जीत गई'.
10 साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले दिग्विजय सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. 2003 में मध्य प्रदेश में अपनी पार्टी की हुई बड़ी हार के बाद उन्होंने चुनावी राजनीति से 10 साल का संन्यास लेने की घोषणा की थी और इसका पालन भी किया था.
लगभग 15 साल के लंबे अंतराल के बाद मध्य प्रदेश के भोपाल से चुनावी मैदान में उतरे दिग्विजय के लिए यह चुनाव राजनीति में उनकी दूसरी पारी की तरह था, जो प्रज्ञा की इस बड़ी जीत के साथ ही लगभग ख़त्म हो गयी सी लगती है.
ध्रुवीकरण की राजनीति
23 मई को आए चुनावी नतीजों के बाद से ही भाजपा के राज्य मुख्यालय में जश्न का माहौल थमने का नाम नहीं ले रहा. राज्य के पूर्व मुखमंत्री और प्रदेश में भाजपा के बड़े नेता शिवराज सिंह चौहान ने नतीजों के बाद बीबीसी से बातचीत में राज्य की कांग्रेस सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा, "जनता को 6 महीनों में ही कांग्रेस की सच्चाई का अंदाज़ा हो गया. इसलिए कांग्रेस से तंग आकर उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी को भारी बहुमत से जिताया".
वहीं राज्य की कांग्रेस प्रवक्ता शोभा ओझा ने इन नतीजों को लोकतंत्र के लिए निराशाजनक बताते हुए कहा, "यह रिज़ल्ट इस बात की ओर साफ़ इशारा करता है कि इस चुनाव में बेरोज़गारी, महंगाई और लोगों की बुनियादी ज़रूरतें चुनावी मुद्दों के रूप में सामने ही नहीं आ पाईं. हिंदू राष्ट्रवाद और बालकोट के नाम पर जनता को लामबंद करके बीजेपी ने यह चुनाव जीता है".
वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीवान बीजेपी की इस प्रचंड जीत के लिए कुछ हद तक कांग्रेस नेतृत्व को ज़िम्मेदार मानते हैं. वो कहते हैं, "कांग्रेस को व्यावहारिक और सैद्धांतिक बिंदुओं पर ख़ुद में बदलाव लाने की ज़रूरत है. जहाँ तक भाजपा का सवाल है, उन्होंने भोपाल में यह पूरा चुनाव एक तय रणनीति से लड़ा. आलोक संजर 2014 में यहां से भाजपा के सांसद चुने गए थे. भारी बहुमत से जीत थे. बीजेपी ने प्रज्ञा ठाकुर को प्रत्याशी बनाकर अपने इरादे साफ़ कर दिए थे. हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर ध्रुवीकरण हुआ. इसमें प्रज्ञा के साथ दिग्विजय भी शामिल हुए. कम्प्यूटर बाबा नाम के किसी आदमी के सामने दिन भर यज्ञ करने के साथ-साथ गाय को रोटी खिलाने, नर्मदा परिक्रमा करने और मंदिरों में जाने के तक उन्होंने सब कुछ किया."
20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले भोपाल शहर के लोग नतीजों के बारे क्या सोचते हैं. जेपी नगर में रहने वाली और गैस-पीड़ित शांता बाई मानती हैं कि उन्होंने प्रज्ञा को नहीं, नरेंद्र मोदी को वोट दिया है.
प्रज्ञा की जीत क्यों?
वो कहती हैं, "प्रज्ञा पर मुक़दमे चले और वो तो कितने साल जेल में रह कर आ गईं. मैं उन्हें नहीं, मोदी को जानती हूं. नरेंद्र मोदी को वोट दिया है. इसलिए जिताया है ताकि ग़रीबों का कुछ भला हो सके. गैस पीड़ितों को भी उनका हक़ मिल सके. अब उन्हें पिछड़े ग़रीबों के लिए काम करना चाहिए."
वाहिब बुधवारे में दवाइयों की एक दुकान चलाने वाले शमीम को लगता है कि इस चुनाव के बाद शहर की 20 प्रतिशत मुस्लिम आदमी में असुरक्षा बढ़ जाएगी.
वो कहते हैं, "उम्मीद तो यही करते हैं की सब अमन और चैन से रहें. प्रज्ञा पर आतंकवाद के मुक़दमे रहे और फिर वह इतने ज़्यादा वोटों से जीत गईं. यह देखकर थोड़ा डर तो लगता है. विकास की बजाय वो हिंदू-मुस्लिम की बात ज़्यादा करती हैं इसलिए थोड़ी असुरक्षा महसूस होती है."
वहीं भोपाल गैस पीड़ितों के लिए शुरू की गई समाज सेवी संस्था 'स्वाभिमान केंद्र' के संयोजक अब्दुल जब्बर को लगता है कि इस चुनाव में जीतने के लिए भाजपा ने 'तगड़ा ध्रुवीकरण' किया. वो कहते हैं, "प्रज्ञा ठाकुर पर जेल में हुए कथित अत्याचारों का हवाला देकर और उनकी रोती तस्वीरें दिखाकर भाजपा ने लोगों को भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल किया है. बहुत संभव है कि आगे आने वाले वक़्त में इस ध्रुवीकरण का फ़र्क़ इस शहर की गंगा-जमुनी तहजीब पर पड़े".
चुनाव ख़त्म हो गया है और अब लोगों को इंतज़ार है कि शहर की बुनियादी समस्याएं दूर हों. खानूगाँव के वसीम अपने मोहल्ले के पीने के गंदे पानी की शिकायत करते हुए कहते हैं, "भाजपा हो या कांग्रेस, हम तो पाँच साल पहले भी गंदा पानी ही पीते थे और अगले पाँच साल भी गंदा पानी ही पीने को मजबूर हैं. जब इतने साल में हमारे हालात नहीं बदले तो अब क्या बदलेंगे."
चुनावी नतीजों के बाद भोपाल की जनता में प्रशासनिक उदासीनता को लेकर निराशा तो है, लेकिन नई प्रतिनिधि से विकास के साथ साथ अमन की भी उम्मीद है.