फांसी के दिन क्या-क्या होता है और कैसे
16 दिसंबर 2012. देश के लगभग हर ज़हन में दर्ज ये वही तारीख़ है, जब निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. सात साल बाद मुजरिमों को 22 जनवरी को फांसी हो सकती है. दिल्ली में तिहाड़ जेल नंबर-3 में फांसी दी जाती है. देश के दूसरे हिस्सों में और भी कई ऐसी जेल हैं, जहां दोषियों को फांसी दी जाती है.
16 दिसंबर 2012. देश के लगभग हर ज़हन में दर्ज ये वही तारीख़ है, जब निर्भया के साथ सामूहिक बलात्कार के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई थी.
सात साल बाद मुजरिमों को 22 जनवरी को फांसी हो सकती है.
दिल्ली में तिहाड़ जेल नंबर-3 में फांसी दी जाती है. देश के दूसरे हिस्सों में और भी कई ऐसी जेल हैं, जहां दोषियों को फांसी दी जाती है.
दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और दिल्ली सेंटर ऑन द डेथ पेनल्टी के डायरेक्टर अनुप सुरेंद्रनाथ के मुताबिक़ भारत की 30 से ज़्यादा जेलों में फांसी का तख्ता है. यानी यहां फांसी देने के इंतज़ाम हैं.
कैसे दी जाती है फांसी
हर राज्य का अपना अलग जेल मैनुअल होता है. दिल्ली के जेल मैनुअल के मुताबिक़ ब्लैक वॉरंट सीआरपीसी (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) के प्रावधान के तहत जारी किया जाता है.
इसमें फांसी की तारीख़ और जगह लिखी होती है. इसे ब्लैक वॉरंट इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके चारों ओर (बॉर्डर पर) काले रंग का बॉर्डर बना होता है.
फांसी से पहले मुजरिम को 14 दिन का वक़्त दिया जाता है ताकि वो चाहें तो अपने परिवार वालों से मिल लें और मानसिक रूप से अपने आप को तैयार कर ले. जेल में उनकी काउंसलिंग भी की जाती है.
अगर क़ैदी अपनी विल तैयार करना चाहता है तो इसके लिए उसे इजाज़त दी जाती है. इसमें वो अपनी अंतिम इच्छा लिख सकता है.
अगर मुजरिम चाहता है कि उसकी फांसी के वक़्त वहां पंडित, मौलवी या पादरी मौजूद हो तो जेल सुप्रिटेंडेंट इसका इंतज़ाम कर सकते हैं.
क़ैदी को एक स्पेशल वॉर्ड की सेल में अलग रखा जाता है.
फांसी की तैयारी की पूरी ज़िम्मेदारी सूपरिटेंडेंट की होती है. वो सुनिश्चित करते हैं कि फांसी का तख़्ता, रस्सी, नक़ाब समेत सभी चीज़ें तैयार हों. उन्हें देखना होता है कि फांसी का तख्ता ठीक से लगा हुआ है, लीवर में तेल डला हुआ है, सफ़ाई करवानी होती है, रस्सी ठीक हालत में है.
फांसी के एक दिन पहले शाम को, फांसी के तख़्ते और रस्सियों की फिर से जाँच की जाती है. रस्सी पर रेत के बोरे को लटकाकर देखा जाता है, जिसका वज़न क़ैदी के वज़न से डेढ़ गुना ज़्यादा होता है.
जल्लाद फांसी वाले दिन से दो दिन पहले ही जेल आ जाता है और वहीं रहता है.
फांसी देने का वक़्त
फांसी हमेशा सुबह-सुबह ही होती है.
- नवंबर से फ़रवरी - सुबह आठ बजे
- मार्च, अप्रैल, सितंबर से अक्टूबर - सुबह सात बजे
- मई से अगस्त - सुबह छह बजे
सूपरिटेंडेंट और डेप्युटी सूपरिटेंडेंट फांसी के तय वक़्त से कुछ मिनटों पहले ही क़ैदी के सेल में जाते हैं.
सूपरिटेंडेंट पहले क़ैदी की पहचान करता है कि वो वही है, जिसका नाम वॉरंट में है. फिर वो क़ैदी को उसकी मातृभाषा में वॉरंट पढ़कर सुनाते हैं.
उसके बाद सूपरिटेंडेंट की ही मौजूदगी में मुजरिम की बातें रिकॉर्ड की जाती है. फिर सूपरिटेंडेंट, जहां फांसी दी जानी है, वहां चले जाते हैं.
डिप्टी सूपरिटेंडेंट सेल में ही रहते हैं और उनकी मौजूदगी में मुजरिम को काले कपड़े पहनाकर, उसके हाथ पीछे से बांध दिए जाते हैं. अगर उसके पैर में बेड़ियां हैं तो वो हटा दी जाती हैं.
फिर आता है वह पल
फिर उसे फांसी के तख्ते की तरफ़ ले जाया जाता है. उस वक़्त डेप्युटी सूपरिटेंडेंट, हेड वॉर्डन और छह वॉर्डन उसके साथ होते हैं. दो वॉर्डन पीछे चल रहे होते हैं, दो आगे और एक-एक तरफ़ से मुजरिम की बांह पकड़ी जाती है.
मुजरिम फांसी वाली जगह पहुंचता है. उस जगह सूपरिटेंडेंट, मैजिस्ट्रेट और मेडिकल ऑफ़िसर पहले से मौजूद होते हैं.
सूपरिटेंडेंट, मैजिस्ट्रेट को बताता है कि उन्होंने क़ैदी की पहचान कर ली है और उसे वॉरंट उसकी मातृभाषा में पढ़कर सुना दिया है.
क़ैदी को फिर हैंगमैन (जल्लाद) के हवाले कर दिया जाता है.
अब अपराधी को फांसी के तख्ते पर चढ़ना होता है और उसे फांसी के फंदे के ठीक नीचे खड़ा किया जाता है. उस वक़्त तक वॉर्डन उसकी बांहे पकड़कर रखते हैं.
इसके बाद जल्लाद उसके दोनों पैर टाइट बांध देता है और उसके चेहरे पर नक़ाब डाल देता है. फिर उसे फांसी का फंदा पहनाया जाता है.
जिन्होंने बाहें पकड़ रखी थी, अब वो वॉर्डन पीछे हो जाते हैं.
फिर जैसे ही जेल सूपरिटेंडेंट इशारा करते हैं, हैंगमैन (जल्लाद) लीवर को खींच देता है.
इससे मुजरिम जिन दो फट्टों पर खड़ा होता है वो नीचे वेल में गिर जाते हैं और मुजरिम फंदे से लटक जाता है.
रस्सी से मुजरिम की गर्दन जकड़ जाती है और धीरे-धीरे वह मर जाता है.
बॉडी आधे घंटे तक लटकती रहती है. आधे घंटे के बाद डॉक्टर उसे मरा हुआ घोषित कर देता है.
उसके बाद उसकी बॉडी को उतार लिया जाता है और पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया जाता है.
सूपरिटेंडेंट अब फांसी का वॉरंट लौटा देता है और ये पुष्टी करता है कि फांसी की सज़ा पूरी हुई.
हर फांसी के तुरंत बाद सूपरिटेंडेंट, इंस्पेक्टर जनरल को रिपोर्ट देता है. फिर वो वॉरंट उस कोर्ट को वापस लौटा देते हैं, जिसने ये जारी किया था.
पोस्टमॉर्टम के बाद मुजरिम की बॉडी परिवार वालों को सौंप दी जाती है.
अगर कोई सुरक्षा कारण है तो जेल सूपरिटेंडेंट की मौजूदगी में शव को जलाया या दफ़नाया जाता है.
यहां ये ध्यान देने वाली बात है कि फांसी की सज़ा पब्लिक हॉलीडे यानी सरकारी छुट्टी के दिन नहीं होती.
(ये जानकारी दिल्ली के जेल मैनुअल और तिहाड़ के पूर्व जेलर सुनिल गुप्ता से बातचीत पर आधारित है. सुनिल गुप्ता के सामने आठ फांसी हुई हैं - रंगा-बिल्ला, करतार सिंह-उजागर सिंह, सतवंत सिंह-केहर सिंह, मक़बूल भट्ट, अफ़ज़ल गुरु की फांसी.)