राज्यपाल के ऑफिस के हस्तक्षेप के बाद सुलझ सका कश्मीर घाटी में अपहरण संकट!
पिछले दिनों कश्मीर घाटी में आतंकियों ने जम्मू कश्मीर पुलिस के एक के बाद एक 11 रिश्तेदारों को अगवा करके सनसनी फैला दी थी। 36 घंटे के अंदर आतंकियों ने इन सभी 11 लोगों का अपहरण किया था। इसके बाद पुलिस की ओर से हुई कार्रवाई के बाद आतंकियों को पुलिस के रिश्तदारों को रिहा करना पड़ गया।
श्रीनगर। पिछले दिनों कश्मीर घाटी में आतंकियों ने जम्मू कश्मीर पुलिस के एक के बाद एक 11 रिश्तेदारों को अगवा करके सनसनी फैला दी थी। 36 घंटे के अंदर आतंकियों ने इन सभी 11 लोगों का अपहरण किया था। इसके बाद पुलिस की ओर से हुई कार्रवाई के बाद आतंकियों को पुलिस के रिश्तदारों को रिहा करना पड़ गया। द हिंदू की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक इस अपहरण संकट को सुलझाने के लिए राज्यपाल सत्यपाल मलिक के ऑफिस को भी हस्तक्षेप करना पड़ गया था। आपको बता दें कि हिजबुल मुजाहिद्दीन के चीफ सैय्यद सलाहउद्दीन के बेटे सैय्यद शकील अहदम को दरअसल राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गिरफ्तार कर लिया था। एनआईए की इस कार्रवाई के बाद आतंकियों ने बदला लेने के लिए अपहरण की घटना को अंजाम दिया था। ये भी पढ़ें-जैसे को तैसा: जम्मू कश्मीर में आतंकियों के रिश्तेदार हिरासत में तो पुलिस के सभी 11 रिश्तेदार हुए रिहा
हिजबुल कमांडर के पिता को लिया गया हिरासत में
पिछले दिनों हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने राज्य पुलिस की 'जैसे को तैसा' कार्रवाई के बाद यह कदम उठाया। दरअसल पुलिस ने हिजबुल के तीन आतंकियों के रिश्तेदारों को हिरासत में ले लिया था। जिन रिश्तेदारों को पुलिस ने हिरासत में लिया था उसमें हिजबुल कमांडर रियाज नाइकू के पिता भी शामिल थे। रियाज के पिता अशादुल्ला को जब पुलिस ने हिरासत में लिया तो राज्यपाल के ऑफिस की ओर से पुलिस के इस कदम पर आपत्ति भी दर्ज कराई गई। अशादुल्ला को हिरासत में लेने पर ही आतंकी हरकत में आए थे और उन्होंने सभी रिश्तेदारों को रिहा कर दिया था।
फिर से न बनें 90 के हालात
द हिंदू ने करीबी सूत्रों के हवाले से जानकारी दी है कि राज्यपाल के ऑफिस में मौजूद सीनियर ऑफिसर्स के हस्तक्षेप के बाद नाइकू के पिता को पुलिस ने हिरासत से रिहा किया था। एक सीनियर ऑफिसर की ओर से कहा गया कि अब तक घाटी में 32 पुलिसकर्मियों की हत्या हो चुकी है। इन सभी हत्याओं को निशाना बनाकर अंजाम दिया गया है। इस ऑफिसर के मुताबिक इस तरह की कोई भी 'अनावश्यक प्रतिक्रिया' नहीं होनी चाहिए जिससे दहशत में और इजाफा हो। साथ ही सरकार नहीं चाहती थी कि 90 के दशक जैसे हालातों की पुनरावृत्ति हो जिसमें कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ गया था।
स्थानीय पुलिसकर्मियों का ध्यान
20 जून को जम्मू कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन के टूटने के बाद से ही राज्य में राज्यपाल शासन लगा हुआ है। द हिंदू ने राज्यपाल के ऑफिस में कार्यरत इस ऑफिसर के हवाले से लिखा है, 'पुलिस के लोअर रैंक्स में जो कर्मी हैं वे सभी दूसरे पहलुओं से भली-भांति परिचित हैं। उन्हें स्थानीय भाषा, जगह और निवास स्थान का फायदा हासिल है। ऐसे में हम उन्हें अलग-थलग नहीं कर सकते हैं। कश्मीरी पंडितों के केस में ऐसा ही हुआ था। जब उन पर हमले हुए तो दहशत में आकर वे जम्मू और देश के दूसरे हिस्सों में चले गए।' इस ऑफिसर के मुताबिक नाइकू को 29 अगस्त को अल्ताफ काचरू की मौत के बाद काफी नुकसान उठाना पड़ गया है।