सबके लिए घर?
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने वर्ष 2022 तक सभी को घर देने का वादा किया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कई कई हाउसिंग स्कीम्स जैसे राजीव आवास योजना, इंदिरा आवास योजना आदि को सम्मिलित किया गया है। इस योजना में पक्के घरों के निर्माण के लिए सरकार की ओर से अनुदान (आईएवाय के प्रावधानों के समान ही), क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम (सीएलएसएस) और राज्य सरकार के साथ मिलकर शहरी आवास के लिए फंड का निर्माण शामिल है। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों में घर खरीदने वालों को भी रियल एस्टेट रेगुलेटरी एक्ट (आरईआरए) के संचालन से सहायता मिलेगी जो रियल एस्टेट सेक्टर में उपभोक्ता को संरक्षण प्रदान करता है।
ग्रामीण आवास
वर्ष 1985 में इंदिरा आवास योजना प्रारंभ की गयी जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में घरों के निर्माण/पुन:निर्माण के लिए सहायता प्रदान करना था। वित्तीय वर्ष 2016-17 में इस कार्यक्रम को पीएमएवाय योजना में शामिल किया गया। पीएमएवाय के तहत वर्ष 2019 तक सरकार एक करोड़ लोगों को पक्का घर प्रदान करेगी जो अभी कच्चे घरों में रह रहे हैं। सरकार ने घरों का निम्नतम आकार बढाकर 20 वर्ग मीटर से बढाकर 25 वर्ग मीटर कर दिया है। इसके अलावा प्रत्येक परिवार को मिलने वाले अनुदान को 70,000 रूपये से बढाकर 1,20,000 रूपये कर दिया गया है।
यूपीए द्वितीय की तुलना में एनडीए सरकार बहुत अच्छा कर रही है
हमने पाया कि पिछले कुछ वर्षों में गाँवों में घरों के निर्माण में बहुत वृद्धि हुई है। यूपीए द्वितीय सरकार के अंतिम दो वर्षों में आईएवाय के तहत एक वर्ष में केवल लगभग 10 लाख घरों का निर्माण किया गया। इसकी तुलना में केवल पिछले वित्तीय वर्ष में पूरे देश में 28 लाख से अधिक घरों का निर्माण पूरा किया गया। जहाँ वर्ष 2014 से निर्माण पूरा होने की दर में लगातार वृद्धि हुई है वहीं पीएमएवाय प्रारंभ होने के बाद निर्माण में भी बहुत वृद्धि हुई है। अन्य कई कार्यक्रमों जैसे स्वच्छ भारत और स्किल इंडिया की तरह ही सरकार को अपने घोषित उद्देश्य को पूरा करने के लिए अपने प्रदर्शन को सुधारना होगा। यदि वर्ष 2019 तक सरकार का उद्देश्य गाँवों में 1 करोड़ घर बनाने का है तो सरकार को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिवर्ष बनने वाले घरों की संख्या में वृद्धि करनी होगी।
शहरी आवास
शहरी क्षेत्रों में क्रेडिट लिंक सब्सिडी स्कीम (सीएलएसएस) और आरईआरए जैसी योजनाओं से आवास क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। इस वर्ष नए वर्ष की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित करते हुए सीएलएसएस का विस्तार करने की घोषणा की थी। सरकार अब 9 लाख और 12 लाख के ऋण पर ब्याज में क्रमश: 4% और 3% तक की छूट देने का वादा कर रही है। कुछ दावों के अनुसार इससे प्रमुख सार्वजनिक बैंकों से ऋण लेने वाले दो तिहाई लोगों को सहायता मिलेगी। इस योजना का उद्देश्य ईडब्ल्यूएस (आर्थिक रूप से कमज़ोर) और एलआईजी (निम्न आय समूह) स्तर के लोगों को उनका खुद का घर प्रदान करना है। कार्यक्रम के विस्तार से पहले सीएलएसएस के प्रति उत्साह कम था और लाभार्थियों की संख्या बहुत कम थी। सरकार को चाहिए कि वह सुनिश्चित कर कि जानकारी के अभाव में इतना महत्वपूर्ण कदम असफल न हो जाए।
मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और जन धन खातों से सहायता मिली
पिछले तीन सालों में ऋण की लागत में कमी आई है क्योंकि ब्याज की दरें कम हुई हैं। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सरकार को जो सफलता मिली उसके कारण अप्रत्यक्ष रूप से जनता को लाभ हुआ जिससे ब्याज की दरें कम हुई। सस्ते ऋण के साथ साथ ऋण की प्रक्रिया को भी आसान बनाने के लिए भी प्रयास किये जाने चाहिए। जन धन योजना से बैंकों में पैसा तो आया परन्तु इस बात में अभी भी संशय है कि इससे लोगों को घर/व्यक्तिगत उद्देश्य के लिए ऋण मिलने में आसानी होगी अथवा नहीं।
शहरी क्षेत्रों में घर खरीदने वाले लोगों की चिंता का सबसे बड़ा कारण अधूरे प्रोजेक्ट्स और बिल्डर्स के द्वारा की जाने वाली देरी है। ग्राहक से पूरा पैसा लेने के बाद भी कई बिल्डर्स समय पर समय पर घर नहीं दे पाते और अपना प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर पाते। आरईआरए एक्ट का उद्देश्य रियल एस्टेट नियामक लाकर इसमें परिवर्तन लाना और बिल्डर्स को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाना है। केंद्र के द्वारा एक आदर्श क़ानून पास किया गया है जिसमें कई राज्यों ने अन्य कई महत्वपूर्ण मानक भी जोड़े हैं। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह सुनिश्चित करे कि सभी राज्य इसे सुदृढ़ तरीके से प्रस्तुत करें।
निष्कर्ष
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में पीएमएवाय को सफलतापूर्वक लागू करने से निर्माण के क्षेत्र में रोज़गार के अवसर भी बढ़ेंगे। आरईआरए के उचित कार्यान्वयन से रियल एस्टेट सेक्टर में आदर्श बदलाव आएगा और इससे उपभोक्ता और बिल्डर्स के बीच विश्वास की कमी दूर होगी। अंतत: सरकार द्वारा सबको घर देने के लक्ष्य की यह एक अच्छी शुरुआत है परन्तु कोई भी बड़ा अनुमान लगाने से पहले हमें अगले वित्तीय वर्ष तक प्रतीक्षा करनी चहिये।
(नितिन मेहता रणनीति कंसल्टिंग एंड रिसर्च में मैनेजिंग पार्टनर हैं। प्रणव गुप्ता एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं)